
मधुप्रकाश लड्ढा, राजसमन्द
mpladdha@gmail.com
“लता मंगेशकर”……….।।
हिंदुस्तान ने आज एक ऐसा हीरा खो दिया जो अनमोल ही नहीं स्वरों का सरताज भी था। लिखते हुए बड़ा दर्द हो रहा है कि भारत रत्न से नवाजित स्वर कोकिला के कंठ ने आज आवाज देना बंद कर दिया है। मंद्र से लेकर तार सप्तक तक के सभी सुर आज दर्द में डूबे हैं। वो आवाज जो बचपन से लेकर उम्र के इस दौर में भी, मन को ‘राग-संतोष’ में भिगोए हुए थी, उसी मन में आज ‘राग-दर्द’ के आलाप उठ रहे हैं।
स्वर कोकिला के गीतों में हर उम्र के व्यक्ति ने अपनी व्यथा, कथा और प्यार के उस मुकाम को हासिल किया है जो लबों से कहने में कतराते हैं। बरसों से शाम की महफ़िल को अपने प्यार भरे गीतों से सराबोर कर देने वाली आवाज ने हम सबकी पलकों को उन अश्कों के सागर के अनन्त में डुबो दिया है, जहां से अब उन जैसा अनमोल हीरा मिलना मुश्किल ही नहीं असम्भव है।
पूरे राष्ट्र में शोक की लहर है। संगीत की बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले लोग न जाति-पंथ में विश्वास रखते हैं न धर्म और मजहब में। राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोने की सबसे सहज और सुलभ कड़ी है ‘संगीत’। ये वो बंदिशें है जो अनेक वाद्यों को साथ आने का मौका देती है। शायद यही वजह है कि आज भी लोग मुकेश और रफी साहब जैसे फ़नकारों को धर्म और जाति से ऊपर उठ कर सेल्यूट करते हैं।
लताजी के गीतों में वो जादू था जो हर एक के सर चढ़कर बोलता था। आज सभी उदास और ग़मगीन हैं। पूरा राष्ट्र पूरी संवेदनाओं के साथ अंतिम विदाई दे रहा है। आप खूब याद आओगे। अपने गीतों में आप अजर हो। आप शांत हो गए हो लेकिन आपकी आवाज अमर है। शैलेन्द्र रचित फ़िल्म ‘आह’ का वो गीत जिसे आपने ही स्वरबद्ध किया था, लोग सदियों तक लोग गुनगुनाते रहेंगे…
जिस राह से तुम आने को थे
उसके निशां भी मिटने लगे
आये न तुम सौ सौ दफ़ा
आये गए मौसम…
ये शाम की तन्हाइयाँ
ऐसे में तेरा ग़म।।