पाश्चात्य संस्कृति ने बर्बाद की हमारी संस्कृति और संस्कार

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मुनि पूज्य सागर की डायरी से


भीलूड़ा.

अंतर्मुखी की मौन साधना का 25 वां दिन
रविवार, 29अगस्त, 2021 भीलूड़ा

पाश्चात्य संस्कृति ने बर्बाद की हमारी संस्कृति और संस्कार

मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मौन साधना का 25 वां दिन। यह बात शाश्वत सत्य है कि स्वार्थ के साथ किया धर्म कभी पुण्य और आत्मिक शांति नहीं देता। स्वार्थी व्यक्ति सदैव पुण्य की तरफ जाने के बजाए पाप की ओर ही अग्रसर होता है। स्वार्थ में दया, करूणा, प्रेम, वात्सल्य न होकर लाभ और प्रतिलाभ की भावना ही बनती है। धर्म की कोई कीमत नहीं होती वह तो बेशकीमती होता है। मैं यह महसूस कर रहा हंू कि वर्तमान में व्यक्ति धर्म की तरफ तो बढ़ रहा है लेकिन उसका मूल कारण भय और स्वार्थ है। इसी वजह से धर्म और धार्मिक कार्य करते हुए भी न तो धर्म का फल किसी को मिल रहा है और न ही प्रार्थना स्वीकार हो रही। न ही मन और मस्तिष्क शांत है। इतना धर्म करने के बाद भी दुख पीछा नहीं छोड़ता है। ऐसा नहीं करूंगा तो ऐसा हो जाएगा और उसने ऐसा किया तो उसका ऐसा होगा। ऐसे ही विचार मन और मस्तिष्क को मैला कर देते हैं। यह सब बातें केवल इसलिए मन और मस्तिष्क में आते हैं कि धर्म स्वार्थ और भय से किया जा रहा है। धर्म करना तो व्यक्ति का कर्तव्य है। आखिर इसमें स्वार्थ और भय का क्या काम। इसी कारण व्यक्ति धर्म करते हुए भी जीवन में दुखी महसूस करता है। मुझे दुख तो इस बात का हो रहा है कि इंसान की श्रद्धा धर्म से टूटती जा रही है। जैसे कपड़े पसंद-नापसंद होने पर बदले जाते हैं उसी तरह धर्म और भगवान भी बदले जाने लगे हैं। एक से काम नहीं तो दूसरे पर जब अंत में कोई भगवान और धर्म नहीं बचता तो व्यक्ति प्रमादी होकर सब कुछ भाग्य पर छोड़ देता है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इसकी शुरुआत ही स्वार्थ और भय से की गई। ऐसा करने से मन और मस्तिष्क की स्थिरता समाप्त हो जाती है और सोचने समझने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है। ऐसे व्यक्ति एक नए समाज की स्थापना करते हैं और वह है पाश्चात्य संस्कृति। जहां केवल व्यसन और फैशन की प्राथमिकता रहती है। जहां बर्बाद होती है हमारी संस्कृति और संस्कार। आज नई पीढ़ी धर्म के नाम पर धर्मात्माओं से कोई सवाल करती है तो उसके जवाब भी भिन्न-भिन्न जगह से भिन्न भिन्न प्रकार के आते हैं। अब वह असमंजस में है कि इनमें से सही कौन है और किस जवाब पर विश्वास करें। जब जवाब अलग-अलग हैं तो देने वाला या तो स्वार्थ से दे रहा है या फिर भय से। इसी वजह से हमारी नई पीढ़ी उस पाश्चात्य संस्कृति वाले समाज से जुड़ रही है। मैं तो यहीं कामना करता हूं कि है प्रभु मेरे से स्वार्थ से कोई कार्य ना हो यही भावना करता हूं।

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