दौसा। बांदीकुई तहसील में आभानेरी के पास जस्सा पाडा गांव में बुधवार को 2 साल की बच्ची 200 फीट गहरे बोरवैल में गिर गई। गनीमत रही कि 7 घंटे की मशक्कत के बाद देसी जुगाड़ से बच्ची को सकुशल बाहर निकाल लिया गया। मासूम की मां उसे देखते ही खुशी से रो पड़ी। उसने अपनी बेटी को सीने से लगा लिया। एंबुलेंस से बच्ची को हॉस्पिटल ले जाया गया, वह स्वस्थ बताई जा रही है।
जानकारी के अनुसार गांव में देवनारायण गुर्जर की बेटी अंकिता सुबह अपने घर के बाहर खेल रही थी। घर के पास ही एक ओपन बोरवैल है। वह खेलते हुए अचानक उसमें गिर गई। कुछ देर तक जब बच्ची नहीं दिखी तो घर वालों ने उसकी तलाश की। इसी बीच बोरवैल से उसके रोने की आवाज आई। रोने की आवाज सुनकर घर वालों के हाथ पांव फूल गए। उन्होंने तुरंत इसकी सूचना प्रशासन को दी। सूचना के बाद पुलिस प्रशासन व एसडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंची और रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया गया।
बारिश की वजह से रोकना पड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन
थोड़ी देर के लिए तेज बारिश की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन रोकना पड़ा, लेकिन बाद में एसडीआरएफ की टीम भी बच्ची को बचाने के लिए पहुंच गई थी। बच्ची के मूवमेंट पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरा बोरवैल में डाला गया। कैमरा देखते ही बच्ची ने उसे पकड़ने की भी कोशिश की। रेस्क्यू टीम ने बताया कि बच्ची मूवमेंट कर रही है और कैमरे को पकड़ने की भी कोशिश की।
देसी जुगाड़ से निकाला बाहर
मासूम को एसडीआरएफ टीम ने देसी जुगाड़ से सुरक्षित निकाला। यह देसी जुगाड़ जालोर जिले के बागोड़ा क्षेत्र के रहने वाले मादाराम की तकनीक पर बनाया गया। मादाराम इससे पूर्व सात बार बोरवैल में फंसे मासूमों को निकाल चुके हैं।
पाइपों व रस्सी से बनाया जुगाड़
देसी जुगाड़ के लिए बराबर लंबाई के तीन पाइप लिए गए। इन तीनों पाइप को बांधा गया और लास्ट में एक टी-बनाई। इस पर एक जाल बांधा गया। यह सभी एक मास्टर रस्सी से जुड़े रहते है। इस पर कैमरा भी जोड़ा जाता है। इससे पता चलता है कि बच्चा जुगाड़ में फंसा या नहीं। मास्टर रस्सी का कंट्रोल बाहर खड़े युवक के पास रहता है। इस पूरे स्ट्रक्चर को बोरवैल में उतारा जाता है। जैसे ही यह स्ट्रक्चर बच्चे पर जाता है तो उस मास्टर रस्सी को बाहर से खींचा जाता है, जिससे बच्चा उसमें फंस जाए। जैसे ही बच्चा उसमें फंसता है, बच्चे को बाहर खींच लिया जाता है।
सुबह ही मिट्टी भरने के लिए खोला था ढक्कन
मासूम बच्ची अंकिता के दादा कमल सिंह (65) ने बताया कि ये बोरवैल दो साल पहले खोदा गया था, लेकिन वो सूखा निकला। तब इस बोरवैल को ढक्कन लगाकर छोड़ दिया गया। सुबह ही मैंने बोरवैल में मिट्टी भरने के लिए ढक्कन खोला था। करीब 11 बजे तक बोरवैल में 100 फीट तक मिट्टी भी भर दी थी। उसके बाद मैं कमरे में थोड़ा आराम करने चला गया और पीछे से अंकिता खेलते हुए बोरवैल के पास पहुंची और गिर गई। बोरवेल घर के चबूतरे पर ही था।
पिता डूंगरपुर में, मां का रो-रोकर बुरा हाल
बच्ची का पिता डूंगरपुर में है। वह वहां ठेकेदारी करता है। इधर, घर के बाहर खड़ी मासूम की मां का रो-रोकर बुरा हाल हो गया था। वह बार-बार प्रार्थना कर रही थी कि उसकी बेटी सकुशल बाहर निकाल ली जाए। आस-पड़ोस के लोग और रिश्तेदार उसे हिम्मत बंधा रहे थे।