राजस्थानी जैसी मीठी भाषा कहीं नहीं

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साहित्यकार अभिलाषा पारीक की ओळयूं को इंदरधनख पुस्तक का विमोचन


जयपुर.
राजस्थानी भाषा जैसी मीठी भाषा कही नही है और पहनावा भी नही है। हम सभी को मिलकर अपनी भाषा और संस्कृति के लिए कार्य करना चाहिए। वरिष्ठ साहित्यकार मनोहर सिंह राठौड़ ने आखर पोथी कार्यक्रम में अध्यक्षता करते हुए अपने विचार व्यक्त किए। इस कार्यक्रम में अभिलाषा पारीक की पुस्तक ओळ्यूं को इन्द्रधनख का विमोचन किया गया। साहित्यकार राठौड़ ने कहा कि हमे अपनी भाषा को जीवित रखने के लिए अधिक से अधिक साहित्य रचना चाहिए। इससे अपनी भाषा को जीवित रखने में मदद मिलेगी। साहित्यकार अभिलाषा पारीक की ओळयूं को इंदरधनख संस्मरण विधा की अच्छी पुस्तक है। इसमें जयपुर जीवन्त हो उठा है।
साहित्यकार विमला नागला ने समीक्षा करते हुए कहा कि यह पुस्तक 70 और 80 के दशक में जन्मे लोगों को अपने बचपन से जोड़ती है। यह अपनी परंपरा संस्कृति और लोक से जोडऩे का प्रयास है। लोगों के बीच का अपनापन, बुजुर्ग लोगों का सम्मान, उनके संघर्ष से नई पीढ़ी को परिचय करवाती है। पुस्तक की प्रस्तावना पढ़ते हुए योगेश व्यास राजस्थानी ने कहा कि संस्मरण साहित्य की खास विधाओं में से एक है। राजस्थानी में सन 1947 से लिखे जा रहे हैं जिसमें भंवरलाल नाहटा, मुरलीधर व्यास, नथमल जोशी आदि का महत्वपूर्ण योगदान है। इस पुस्तक के संस्मरण छोटे छोटे हैं जो पाठक पर गहरी छाप छोड़ते हैं इसकी भाषा सरल और सरस है। गोविंद देव जी मंदिर, गोपीनाथ जी मन्दिर, रामधुनी, मंदिर जाना मखाने का प्रसाद, शिवरात्रि, चार आना आदि सभी संस्करण पाठक को जोड़ते हैं। लेखिका अभिलाषा पारीक ने कहा कि इन संस्थानों में जयपुर के परकोटे की जीवन चर्या, रामगढ़ बांध से पानी की आपूर्ति, कार्तिक का महीना, जयपुर की चौपड़े आदि का संस्मरण है। 1727 में जयपुर की स्थापना हुई उसमे जीवनशैली, भाषा, रहन सहन आदि की यादें है। हमारे बच्चे अपनी भाषा से दूर होते जा रहे है अगर इस भाषा के 4.5 शब्द भी नई पीढ़ी जानती है तो पुस्तक का लिखना सार्थक होगा।
अंत में ग्रासरूट मीडिया के प्रमोद शर्मा ने कहा कि अभिलाषा पारीक की पुस्तक से प्रेरणा लेकर अन्य लोग भी जीवन के संस्मरण लिख सकते हैं। प्रभा खेतान फाउंडेशन और ग्रासरूट फाउंडेशन की ओर से आयोजित आखर पोथी में राजस्थानी भाषा की पुस्तकों को विशेषकर युवा लेखकों को प्रोत्साहन देने के लिए आयोजित किया जाता है।

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