
जयपुर.
अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज वर्तमान में डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा में चातुर्मास कर रहे है। इसी के अंतर्गत मुनि महाराज वर्तमान में मौन साधना में लीन है। मौन साधना में रहते हुए वह अपने विचार एक डायरी में व्यक्त कर रहे है। उनकी किशनगढ़ में चातुर्मास के दौरान की गई मौन साधना के दौरान लिखी गई डायरी भी प्रसिद्ध है और श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणादायक और साधना के मार्ग पर चलने के लिए उपयोगी है। यहां भीलूड़ा में मौन साधना में लिखे जा रहे प्रेरक विचार प्रस्तुत है।
मौन साधना का दूसरा दिन
शुक्रवार 6 अगस्त 2021, भीलूड़ा
मौन साधना का दूसरा दिन.
चिंतन का अविर्भाव सहसा नहीं होता है। मन की जितनी स्थिरता होगी उतना ही चिंतन निर्मल, नवीन और जीवन को बदल देने वाला होगा।
जीवन में अशांति का मुख्य कारण है. मनुष्य की अपनी मिथ्या गलत धारणा। मनुष्य मिथ्या गलत धारणा की वजह से यह मानता है कि उसका मरण होता है पर आत्मा का मरण नहीं होता है। सत्य यह नहीं सत्य तो यह है कि कर्मों के कारण शरीर का परिवर्तन होता है। नरक मनुष्य तिर्यंच और देव पर्याय रूप शरीर परिवर्तन होता है। मनुष्य अपने चिंतन में यह लाए कि उसका मरण नहीं स्वयं के कर्मों के कारण शरीर का परिवर्तन होता है तो मरण का भय ही उसके मन से निकल जाएगा। वह खुश भी होगा कि उसके शरीर का परिर्वतन होगा तो वह वर्तमान शरीर और पर्याय से और अच्छा शरीर पर्याय उसे मिलेगा। घर में कोई नई वस्तु आना हो तो यही सोचते हैं ना कि वर्तमान में जो है उससे अच्छी लाई जाए। मनुष्य वर्तमान शरीर से और अच्छे शरीर तथा पर्याय की इच्छा रखे तो उसका पुरुषार्थ उसी के अनुरूप होगा। वह प्रतिक्षण अच्छे कर्म कार्य करने की ओर अपने पुरुषार्थ को लगाएगा।
मनुष्य मरण की जगह यह सोचे कि उसका शरीर परिवर्तन होता है तो परिवर्तन वाली सोच मनुष्य को वर्तमान में अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देगी। शरीर और पर्याय तो पुद्गल है और शरीर के अंदर जो आत्मा है वह जीव है। जीव का मरण नहीं होता है। पुद्गल का स्वभाव है कि वह गलता है फिर बनता है। हम जो व्यवहार में कहते हैं कि वह मर गया वह वर्तमान की पर्याय के अनुसार कह देते हैं। शायद इसी धारणा के कारण यह भी मानते हैं कि जब मरण होना है तो संसार के भोग भोग लो। फिर भोग नहीं मिलने वाला है। यहीं का किया यहीं रह जाएगा फिर नया पर्याय मिलेगी। इसी धारणा के कारण अधिकांश मनुष्य अपने द्वारा किए जा रहे कार्यों के साथ अच्छे-बुरे कार्यों का विचार ही नहीं करते हैं। मरण नहीं परिवर्तन होता है। यह सोच मनुष्य अपना ले तो उसके भाव विचार प्रतिदिन निर्मल होते जाएंगे।
जब आप एक मकान छोड़ दूसरे मकान में जाते हैं तो क्या करते हैं। पुराने मकान का सारा सामान साथ लेकर जाते हैं। बस जब शरीर और पर्याय परिवर्तन होता है तो पुराने किए कर्म कार्य साथ जाते हैं। यह भावना ही मनुष्य को वर्तमान में धार्मिक, सकारात्मक कार्यों, संतों की संगति और महापुरुषों के चरित्र को जानने की जिज्ञासा जाग्रत करेगी। यह जीवन आनंद और खुशियों से भर जाएगा।