जिंदा कौमों की भाषा जिंदा रहती है

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आखर में सत्यदेव संवितेंद्र के साथ बातचीत

जयपुर। राजस्थानी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए हम सभी को अपना योगदान देना पड़ेगा। राजस्थानी भाषा के साहित्यकार सत्यदेव संवितेंद्र ने मंगलवार को आखर कार्यक्रम में यह विचार व्यक्त किए।
साहित्यकार आशा पांडेय के साथ बातचीत में संवितेंद्र ने कहा कि राजस्थानी भाषा पूरे राज्य में एक है चाहे बोलियां अलग अलग क्यों न हों।
राजस्थानी भाषा को मान्यता पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि कोंकणी या कई अन्य भाषाएं जिन्हें बोलने वालों की संख्या कम है फिर भी उन्हें मान्यता मिली, लेकिन हमारी 11 करोड लोगों की भाषा को अभी तक मान्यता नहीं मिल पाई है, यह दुखद है। हर चुनाव के समय नेता आते हैं और राजस्थानी को मान्यता देने की बात करते हैं लेकिन चुनाव के बाद भूल जाते हैं। मान्यता ना मिलने के कारण राजस्थान युवाओं का बहुत नुकसान हो रहा है जैसे बहुत से युवा राजस्थानी में एमए नहीं कर पा रहे हैं। इससे रोज़गार के अवसर भी कम हो रहे हैं। इसी पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने अपनी एक कविता के माध्यम से कहा कि
जन समस्याओं का कोई हल निकल पाया नहीं वोट लेकर जो गया वह लौटकर फिर आया नहीं।
जिसे श्रोताओं ने काफी सराहा। आगे उन्होंने स्पष्ट किया कि वे राजस्थानी हैं और अपनी भाषा से लगाव रखते हैं लेकिन वे हिंदी के विरोधी नहीं है। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और रहेगी।
संवितेंद्र ने कविता और गीत के बारे में बोलते हुए कहा कि लयात्मकता को तोड़ना ठीक नहीं है।
गीत और कविता लय से संपन्न हो तो अच्छे लगते है। प्रकृति की हर चीज में नाद है और कविता भी उसी अनुसार चलनी चाहिए।
इस कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार संवितेंद्र ने कई राजस्थानी गीत और गजल भी सुनाएं। प्रभा खेतान फाउंडेशन के सहयोग से ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन ने यह कार्यक्रम आयोजित किया। कार्यक्रम का संचालन प्रदक्षिणा पारीक ने किया। अंत में प्रमोद शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।


इस अवसर पर लोकेश कुमार साहिल, राजेंद्र मोहन शर्मा, राजेश कुमार व्यास, विनय कुमार शर्मा, फारूक आफरीदी, नंद भारद्वाज आदि उपस्थित रहे। डॉ अलका गौड़ और अवंतिका दलवी ने साहित्यकारों का सम्मान किया।

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