नई दिल्ली। दिल्ली में लैंडफिल के आस-पास रहने वाले लोग दमा सहित अन्य गंभीर श्वास रोगों से जूझ रहे हैं। कूड़े के पहाड़ों के नजदीक रह रहे लोगों में एनीमिया भी एक आम बीमारी है।
दिल्ली का रोज का कचरा है 11 हजार टन
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में रोजाना 11 हजार टन ठोस कचरा निकलता है, जिसमें से केवल पांच हजार टन कचरे का प्रसंस्करण किया जाता है। बाकी का छह हजार टन कचरा यानी सालाना 216 लाख टन कचरा लैंडफिल में जमा होता है।
महिलाएं कर रही गर्भपात का सामना
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ‘डंपिंग यार्ड’ (कूड़ा जमा करने की जगह) के आस-पास रह रही गर्भवती महिलाओं के गर्भ में पल रहे शिशु के जन्मजात विकृति का शिकार होने का खतरा रहता है। ऐसी महिलाओं को समय पूर्व प्रसव का भी सामना करना पड़ सकता है।
विशेषज्ञों अनुसार ऐसी महिलाओं के बच्चों में फेफड़ों का संक्रमण होने का खतरा भी बहुत अधिक मिला है, क्योंकि जीवन के शुरुआती दौर से ही वे जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर होते हैं।
खुद को दमा, बच्चे एलर्जी का शिकार
भलस्वा लैंडफिल के पास कबाड़ का कारोबार करने वाली 45 वर्षीय ने बताया कि वह पिछले छह साल से यहा रह रही है। शायरा जब लैंडफिल के पास रहने पहुंची थीं, तब एक साल के भीतर उन्हें सांस की गंभीर बीमारी हो गई और उनके बच्चे अब त्वचा की एलर्जी के शिकार हैं।
आंखों में खुजली समेत कई बीमारियां
वहीं, गाजीपुर लैंडफिल के बगल में रह रहीं 32 वर्षीय तस्नीम अपने बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि वे इलाके में फैली जहरीली गैस और बदबू की वजह से अक्सर बीमार रहते हैं।
तस्नीम ने बताया कि उसके बच्चे सांस की बीमारी का सामना कर रहे हैं। उनकी आंखों में खुजली होती है और वे त्वचा एलर्जी से भी जूझ रहे हैं। डंपिंग यार्ड में हर साल गर्मियों में आग लग जाती है और उस समय यहां रह रहे बच्चों में ये समस्याएं और आम हो जाती हैं।
कचरे का धुआं सिगरेट के धुएं से घातक
चिकित्सकों के अनुसार लैंडफिल के पास हने वाले लोगों की कम से कम एक दशक की जिंदगी लगातार जहरीली गैस में सांस लेने की वजह से कम हो जाती है। गर्मियों में लैंडफिल में लगने वाली आग से निकला धुआं सिगरेट और चूल्हे के धुएं से कहीं घातक होता है।