
मदनगंज-किशनगढ़.
पंचायत अध्यक्ष विनोद पाटनी ने पर्यूषण पर्व का महत्व बताते हुए कहा कि पर्यूषण पर्व का संबंध किसी सम्प्रदाय या जाति विशेष से नहीं धर्म से है। पर्युषण पर्व का जैन समाज में सबसे अधिक महत्व है। इस पर्व को पर्वाधिराज कहा जाता है। पर्युषण पर्व आध्यात्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से आत्मा की शुद्धि का पर्व माना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य आत्मा के विकारों को दूर करने का होता है।
आत्मशुद्धि का महापर्व है पर्यूषण। इन दिनों हमें अपनी आत्मा का संशोधन व कल्याण करना है। ये दस अपनी आत्मा के स्वभाव क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, संयम, शौच, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य दसलक्षण के नाम से विख्यात है और इन्हीं दस दिनों को हम पर्यूषण भी कहते है। जो पापों को गलाए वह है पर्यूषण। पर्व का अर्थ होता है अवसर जोड़। एक अवसर जो हमें धार्मिक संस्कारों से जोडऩे के लिए आता है। यह पर्व सृष्टि के सृजन और विसर्जन से जुड़ा हुआ है। युग का प्रारंभ श्रावण कृष्णा एकम से माना गया है। अत: प्रलय के बाद होने वाले युगारम्भ में श्रावण कृष्णा एकम से लेकर भादो सुदी चौथ तक 49 दिन होते है। इन 49 दिनों की सुवृष्टियों के साथ आज की जो पंचमी है वह सृष्टि के सृजन का प्रथम दिन है। यहीं से आत्म साधना व आत्म कल्याण की शुरुआत हम मानते है। इन दस दिनों का हम विशेष उल्लास और आनंद के साथ मनाते है। इन दस दिनों में श्रावक अपनी शक्ति अनुसार व्रत उपवास आदि करते है। ज्यादा से ज्यादा समय भगवन की पूजा-अर्चना में व्यतीत किया जाता है। आप सभी इन दिनों में हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह इन पांच पापों का और क्रोध, मान, माया, लोभ, इन चार कषायों का त्याग अवश्य करें।