विधिविधान से किए गए श्राद्ध से होता है समस्याओं का समाधान
20 सितंबर से शुरू होगा पितृपक्ष

मदनगंज-किशनगढ़.
भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ वर्ष का प्रत्येक दिन व्रत पर्व तथा उत्सव का हेतु है। हमारे मनीषियों ने न केवल मानव मनोविज्ञान अपितु उसके दैहिक स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं पर्यावरणीय अनुकूलता तथा ऋतुगत जलवायु परिवर्तनों को दृष्टि में रखकर पर्वोत्सवों तथा उनसे सम्बन्धित कर्मकांड को निर्धारित कर धार्मिक विश्वासों के साथ परिवर्तित किया। इन विश्वासों तथा परम्पराओं में न केवल धर्मभीरु मानव अपनी अदृष्ट सुरक्षा देखता है अपितु समस्याओं एवं विषमताओं से आहत जीवन में उल्लास की ऊर्जा प्राप्त कर नई जीवनी शक्ति प्राप्त करता है।
भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक प्राय: प्रत्येक हिन्दु परिवार में पितृ तर्पण और पंचग्रासी निकालने की परम्परा है। पितृपक्ष में परम्परागत रूप से श्राद्धादि कर्मकांड तथा उनके निमित्त घर घर में किये जाने वाले होमयज्ञों में अन्नादि की आहुतियाँ दी जाती है। इस अवधि में आवश्यक अनुष्ठान के रूप में दक्षिणाभिमुख होकर तिल व जल द्वारा तर्पण जलाञ्जलि दी जाती है।
यह है वैज्ञानिकता का कारण
उल्लेखनीय है कि यही काल है जब सूर्य द्वारा अगले वर्ष की वर्षा हेतु समस्त पार्थिव स्रोतों से जल आहरण करने की प्रक्रिया आरम्भ होती है। यह मेघों का गर्भाधान काल होता है। सूर्य अपनी रश्मियों से सूक्ष्म ऊष्मा के रूप में जल ग्रहण करता है। इस दृष्टि से भी तर्पण हेतु किया गया जलदान उक्त कार्य में साधक होता है। चन्द्रलोक के ऊपर जिस पितृलोक की कल्पना की गई है वह अन्तरिक्ष का वह क्षेत्र प्रतीत होता है जहाँ ऊष्मा के रूप में जल संग्रहित होता है। सांस्कृतिक रूप से दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धाभाव व्यक्ति के समक्ष एक आदर्श परम्परा के निर्माण के दायित्व का बोध कराता है। इनका उल्लेख वेदों, पुराणों, उपनिषदों और स्मृतियों, शतपथ ब्राह्मण आदि धर्म शास्त्रों में भी किया गया है।
व्यक्ति का कर्तव्य है श्राद्ध
देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम्
(तै. उपनिषद् .1.11.1)
देवता तथा पितरों के कार्यों में आलस्य नहीं करना चाहिये।
पितरों का कार्य अर्थात् श्राद्ध।
पिता धर्म: पिता कर्म के अनुसार जीवित माता पिता की अत्यन्त श्रद्धा के साथ सेवा करना तथा मृत माता-पिता का श्राद्ध करना पुत्र का स्वधर्म है जिसे करना ही चाहिए।
श्राद्ध तो प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है साथ में इसका परिणाम भी सुन्दर है।
श्राद्ध करनेवाला परमपद को प्राप्त हो जाता है।
पुत्रो वा भ्रातरो वापि दौहित्र: पौत्रकस्तथा।
पितृकार्ये प्रसक्ता ये ते यान्ति परमां गति।। (अत्रिसंहिता)
श्रद्धा से ही श्राद्ध शब्द की निष्पत्ति होती है। यथा श्रद्धया पितृन् उद्दिश्य विधिना क्रियते यत्कर्म तत् श्राद्धम्।
सामान्यत श्राद्ध की दो प्रक्रिया है- पिण्डदान तथा ब्राह्मण भोजन।
अथर्ववेद में आया है कि ब्राह्मणों को भोजन कराने से वह भोज्य पदार्थ पितरों को प्राप्त हो जाता है। शरीर छूटने के बाद पितरों का शरीर सूक्ष्म हो जाता है वह सूक्ष्म शरीर आमन्त्रित ब्राह्मण शरीर में समाविष्ट होकर श्राद्धान्न को ग्रहण करता है।
तिर इव वै पितरो मनुष्येभ्य:
(शतपथ ब्राह्मण 2.3.4.21)
इममोदनं नि दधे ब्राह्मणेषु विष्टारिणं लोकजितं स्वर्गम्। (अथर्ववेद 4.34.8)। श्राद्ध के बारह प्रकार मिलते है-
नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, पार्वण, सपिण्डन, गोष्ठी, शुद्ध्यर्थ, कर्मांग, दैविक, यात्रार्थ, पुष्ट्यर्थ आदि।
भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से पितरों का दिन प्रारम्भ होता है। पितरों के लिये कृष्णपक्ष दिन है तथा शुक्लपक्ष रात्रि है इसीलिये तो कृष्णपक्ष पितृपक्ष कहलाता है।
पित्र्ये रात्र्यहनी मास: प्रविभागस्तु पक्षयो।
कर्मचेष्टास्वह: कृष्ण: शुक्ल: स्वप्नाय शर्वरी।। (मनुस्मृति 1.66)
गृहस्थ को अवश्य ही माता-पिता, कुटुम्ब, परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु होने पर मलीन षोडशी, आद्यश्राद्ध, प्रेत शय्यादान, मध्यमषोडशी, उत्तमषोडशी, सपिण्डिकरण, श्रीलक्ष्मीनारायण शय्यादान, ब्राह्मण भोजन आदि श्राद्ध शास्त्रों के निर्देशानुसार अवश्य करना चाहिए।
होता है समस्याओं का समाधान
श्राद्ध करके सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है।
यदि शरीर अचानक रुग्ण हो गया, औषधियाँ ली जा रही हैं पर व्याधि ठीक नहीं हो रही है। दुस्वप्न दिखता है अचानक दुर्घटनायें घटती जा रही है। सब कुछ ठीक रहने पर भी सन्तान नहीं हो पा रही है व्यापार नहीं चल रहा है मन में अशान्ति बनी रहती है। इन सभी के निवारणार्थ शास्त्रों में त्रिपिण्डी श्राद्ध करने का विधान बताया गया है।
किसी सुयोग्य ब्राह्मण से गंगा या गया के फल्गुतट तीर्थ आदि में इस श्राद्ध को करना चाहिए।

-पंडित रतन शास्त्री (दादिया वाले)
लेखक कर्मकांड के वरिष्ठ पंडित है और संस्कृत के शिक्षक रहे है। वर्तमान में अजमेर जिले के किशनगढ़ में निवासरत है।
संपर्क-9414839743