युवा कवि किशन प्रणय की पुस्तक तत्पुरुस का विमोचन
आखर पोथी साहित्य की श्रृंखला
जयपुर.
युवा साहित्यकार किशन प्रणय की राजस्थानी कविताओं पर साहित्यिक चर्चा का आयोजन रविवार को हुआ। आखर पोथी की श्रृंखला में होने वाला यह कार्यक्रम गरिमामय और सराहनीय रहा। कार्यक्रम में पुस्तक की प्रस्तावना पर ममता महक ने कहा कि किशन प्रणय की तत्पुरुस भाषा, भाव और शिल्प की दृष्टि से विलक्षण है। राजस्थानी भाषा में कवि ने नये विषयों के साथ समाज के उत्पीडऩ और विडम्बना को उकेरने का प्रयास किया है। पुस्तक में राजस्थानी जीवन शैली, शहरी और ग्रामीण जीवन का अंतर, प्रेम, वोट, जीवन की भागदौड़, पक्षियों की उड़ान, गणतंत्र दिवस जैसे सामान्य दिखने वाले विषयों पर गंभीर कविताएँ हैं।
इस अवसर पर प्रख्यात आलोचक प्रो. कुंदन माली ने कहा कि साहित्यकार अपनी भाषा में जो बात कहता है वह समय और काल की सीमाओं के पार जाता है। किशन प्रणय की पुस्तक में संस्कारों की झलक है।
मुख्य अतिथि महाराव इज्यराज सिंह ने इस अवसर पर कहा कि साहित्य समाज का आईना होता है। हाडौती भाषा शहरों में कम बोली जा रही है पर यह सुखद है कि गाँवों में अभी भी अपनी भाषा बोली जा रही है। हाडौती भाषा में जो साहित्य आ रहा है वह राजस्थानी भाषा का ही रूप है। अपनी भाषा बोलने में सभी को गर्व महसूस होना चाहिए।
समारोह में कवि किशन प्रणय ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में कहा कि जो मैंने समाज को समझा वह लिखा। अपनी देसी भाषा में लिखने का प्रयास किया कि यह बची रहे। भूमंडलीकरण के दौर में भाषाएँ समाप्त होती जा रही हैं। लिखने-पढऩे से ही यह बची रहेगी। उन्होंने श्रोताओं के आग्रह पर अपने कविता संग्रह से कुछ रचनाएं भी सुनाईं। अध्यक्षीय रूप से बोलते हुए जितेन्द्र निर्मोही ने कहा कि हाड़ौती बोली का प्रचार प्रसार अधिक से अधिक किया जाना चाहिए। हाडौती नरेशों ने काव्य का हमेशा संरक्षण किया है।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आखर संस्था के सचिव प्रमोद शर्मा ने कहा कि संवाद हमेशा कायम रखना चाहिए जिससे हमारे बीच में प्रेम का भाव बना रहे। आखर के माध्यम से राजस्थान के सभी क्षेत्रों के साहित्यकारों के साथ आत्मीय संवाद को यह परंपरा शुरु की गई है। भाषा के माध्यम से संस्कृति जिंदा रहती है। इसलिए अपनी भाषा को नित्य प्रति उपयोग में लें। कार्यक्रम का संचालन साहित्य समीक्षक विजय जोशी ने किया।