
राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में विशिष्ट व्याख्यान
जयपुर.
स्वाधीनता की चेतना जगाने वाले और स्वतंत्र देश के भविष्य निर्माण की आधारशिला रखने वाले वैज्ञानिकों के महत्वपूर्ण योगदान से सबको अवगत कराने की आवश्यकता है। हमें उन महान वैज्ञानिकों को भी याद करने की जरूरत है जो अनेक कठिनाइयों के बावजूद भी अपनी अदम्य वैज्ञानिक विचारधारा के लिए डटकर खड़े रहे। यह बात विज्ञान भारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव जयंत सहस्रबुद्धे ने मुख्य अतिथि के रूप में स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर आजादी का अमृत महोत्सव की कड़ी में राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय एवं अरावली विज्ञान समिति के संयुक्त तत्वावधान में स्वतंत्रता आंदोलन एवं भारतीय वैज्ञानिक विषय पर आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में कही।
सहस्रबुद्धे ने अपने व्याख्यान में स्वतंत्रता पूर्व भारत की राजनीतिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए उसे विज्ञान के साथ जोड़ कर कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया। उन्होंने भारत की समृद्ध एवं गौरवशाली ज्ञान परंपरा की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए अनेक ऐतिहासिक तथ्यों को विज्ञान के आलोक में नई दृष्टि प्रदान की। साथ ही अपने तथ्यपूर्ण विचारों से ही नई पीढ़ी के चिंतन के झरोखे खोल दिए।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आनंद भालेराव ने अपने स्वागत भाषण में मुख्य अतिथि के स्वागत की औपचारिकता के साथ ही स्वतंत्रता आन्दोलन में भारतीय वैज्ञानिकों की भूमिका को भी स्पष्ट किया। उनके अनुसार आधुनिक ज्ञान विज्ञान के साथ राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा से युक्त देशज ज्ञान तथा नई पीढ़ी के नवाचारों के समन्वय से ही राष्ट्र की उन्नति संभव है। इसके लिए हम सबको कृतसंकल्प होकर अपनी जिम्मेदारियों का समुचित निर्वाह करना चाहिए। इस तरह के चिंतनपरक व्याख्यान नई पीढ़ी का पथप्रदर्शन करेंगे।
आज़ादी का अमृत महोत्सव प्रगतिशील स्वतंत्र भारत के 75 साल और इसके लोगों, संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास को मनाने की एक पहल है। इस अवसर पर विश्वविद्यालय और केंद्रीय विद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन एवं भारतीय वैज्ञानिक विषय पर प्रस्तुत पोस्टर प्रेरणादायक रहे।
इससे पूर्व कार्यक्रम का प्रास्ताविक कथन प्रो. मनीष देव श्रीमाली ने किया। कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलसचिव प्रो. डी. सी. शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम के संयोजक प्रो. मनीषदेव श्रीमाली रहे तथा डॉ. संदीप रणभिरकर ने कार्यक्रम का संचालन किया।