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भारतीय संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता पर विमर्श आयोजित
जयपुर. हमे संविधान को वैदिक भारत से अब तक भारत की समग्रता में देखना चाहिए न कि केवल धर्म या पंथ तक सीमित रखना चाहिए। भारत में धर्म या पंथ को लेकर कई संघर्ष भी हुए है यहां देश के विभाजन के दौरान भी लाखों लोगों की हत्या हुई है। इस पर प्रकाश डालते हुए डॉक्टर अंबेडकर ने अपनी आलोचनात्मक टिप्पणियां भी की है। राज्य का कोई धर्म नहीं होगा यह भी एक अनुबुझी पहेली की तरह है और राज्य का हिस्सा कौन-कौन है यह भी स्पष्ट किए जाने की आवश्यकता है।
इस संबंध में हमें यथार्थवादी और व्यावहारिक होने की आवश्यकता है इसके लिए कंटेंट ऑफ रिलीजन क्या है यह भी जानने की जरूरत है। वही राज्य का धर्म सेकुलरिज्म है हमारे संविधान के प्रियंबल में यूनिटी और इंटीग्रिटी पर जोड़ दिया गया है। एक पीढ़ी के सामने कई अनसुलझे सवाल रह जाते हैं क्योंकि उनकी सीमाएं रहती है समस्याओं का समाधान करना अगली पीढ़ी के लिए चुनौतीपूर्ण रहता है।
यह विचार विचार एडवोकेट रमन नंदा ने व्यक्त किए। भारतीय संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता विषय पर ग्रासरूट मीडिया एवम इंडिक स्कूल ऑफ ज्यूरिस प्रूडेंस की ओर से राधाकृष्णन लाइब्रेरी में शनिवार को आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रोफेसर पहलाद राय ने कहा कि भारत सेकुलर होने के लिए प्रतिबद्ध है यह प्रतिबद्धता वैश्विक स्तर पर है और इस पर जिन देशों ने हस्ताक्षर किए हैं उनमें से भारत भी एक है। धर्म के मसलों पर हमें प्रलोभन और दबाव को नियंत्रण में लाने की आवश्यकता है l हमारी संस्कृति और सभ्यता में सहनशीलता पर जोर दिया गया है लेकिन सड़क पर और अन्य सार्वजनिक जीवन में धार्मिक और पंथिक कार्यकलापों से किसी का नुकसान ना हो यह भी ध्यान में रखे जाने की आवश्यकता है। एमिटी यूनिवर्सिटी के जर्नलिज्म विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर पल्लवी मिश्रा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता और कार्यकलापों के कारण दूसरों की स्वतंत्रता का हनन नहीं होना चाहिए। भारत में रिलिजन संबंधी विवादों के राजनीतिक कारणों को भी समझने की आवश्यकता है। कार्यक्रम का संचालन इंडिक स्कूल ऑफ ज्यूरिस प्रूडेंस के राजेश मेठी ने किया।
ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के प्रमोद शर्मा ने भारतीय संविधान पर आयोजित मासिक विमर्श की जानकारी दी। इस अवसर पर कई प्रबुद्ध जन और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
जयपुर. हमे संविधान को वैदिक भारत से अब तक भारत की समग्रता में देखना चाहिए न कि केवल धर्म या पंथ तक सीमित रखना चाहिए। भारत में धर्म या पंथ को लेकर कई संघर्ष भी हुए है यहां देश के विभाजन के दौरान भी लाखों लोगों की हत्या हुई है। इस पर प्रकाश डालते हुए डॉक्टर अंबेडकर ने अपनी आलोचनात्मक टिप्पणियां भी की है। राज्य का कोई धर्म नहीं होगा यह भी एक अनुबुझी पहेली की तरह है और राज्य का हिस्सा कौन-कौन है यह भी स्पष्ट किए जाने की आवश्यकता है।
इस संबंध में हमें यथार्थवादी और व्यावहारिक होने की आवश्यकता है इसके लिए कंटेंट ऑफ रिलीजन क्या है यह भी जानने की जरूरत है। वही राज्य का धर्म सेकुलरिज्म है हमारे संविधान के प्रियंबल में यूनिटी और इंटीग्रिटी पर जोड़ दिया गया है। एक पीढ़ी के सामने कई अनसुलझे सवाल रह जाते हैं क्योंकि उनकी सीमाएं रहती है समस्याओं का समाधान करना अगली पीढ़ी के लिए चुनौतीपूर्ण रहता है।
यह विचार विचार एडवोकेट रमन नंदा ने व्यक्त किए। भारतीय संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता विषय पर ग्रासरूट मीडिया एवम इंडिक स्कूल ऑफ ज्यूरिस प्रूडेंस की ओर से राधाकृष्णन लाइब्रेरी में शनिवार को आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रोफेसर पहलाद राय ने कहा कि भारत सेकुलर होने के लिए प्रतिबद्ध है यह प्रतिबद्धता वैश्विक स्तर पर है और इस पर जिन देशों ने हस्ताक्षर किए हैं उनमें से भारत भी एक है। धर्म के मसलों पर हमें प्रलोभन और दबाव को नियंत्रण में लाने की आवश्यकता है l हमारी संस्कृति और सभ्यता में सहनशीलता पर जोर दिया गया है लेकिन सड़क पर और अन्य सार्वजनिक जीवन में धार्मिक और पंथिक कार्यकलापों से किसी का नुकसान ना हो यह भी ध्यान में रखे जाने की आवश्यकता है। एमिटी यूनिवर्सिटी के जर्नलिज्म विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर पल्लवी मिश्रा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता और कार्यकलापों के कारण दूसरों की स्वतंत्रता का हनन नहीं होना चाहिए। भारत में रिलिजन संबंधी विवादों के राजनीतिक कारणों को भी समझने की आवश्यकता है। कार्यक्रम का संचालन इंडिक स्कूल ऑफ ज्यूरिस प्रूडेंस के राजेश मेठी ने किया।
ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के प्रमोद शर्मा ने भारतीय संविधान पर आयोजित मासिक विमर्श की जानकारी दी। इस अवसर पर कई प्रबुद्ध जन और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
