धर्म ही मृत्यु पर विजय और मृत्यु को सुधारने का मार्ग

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मुनि पूज्य सागर की डायरी से


भीलूड़ा.

अन्तर्मुखी की मौन साधना का 29 वां दिन
गुरुवार, 2 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा

मुनि पूज्य सागर की डायरी से

मौन साधना का 29वां दिन। मनुष्य के जीवन में मृत्यु ही एक ऐसा मेहमान है जो बिना बुलाए और अचानक कब आ जाता है पता भी नहीं चलता। सारा जीवन इंसान मृत्यु से डरता रहता है। मनुष्य धार्मिक स्थलों और डॉक्टरों के पास भी मृत्यु के भय से ही जाता है। हर पल मृत्यु मनुष्य के पीछे रहती है और वह कब मनुष्य से आगे हो जाए उसका अहसास भी नहीं होने देती। यह एक कड़वा सत्य है कि मनुष्य अपनी दैनिक क्रियाओं, यात्रा, भोजन, विश्राम और व्यापार में भी मृत्यु से डरा ही रहता है। जब व्यक्ति मृत्यु के भय से डॉक्टर के पास जाता है तो वह भी यही कहता है कि हम भी भगवान के भरोसे हैं हम तो केवल अपना काम कर रहे हैं।
हां पर यह भी सत्य है कि धर्म भी व्यक्ति को मृत्यु से बचा नहीं सकता। धर्म मृत्यु के कारणों को सुधार जरूर सकता है। धर्म ही एक ऐसा मार्ग है जहां से मृत्यु पर विजय और मृत्यु को सुधारने का रास्ता मिलता है। धर्म मनुष्य को दैनिक क्रियाओं को निर्भय होकर करने का रास्ता दिखाता है। धर्म यह सिखाता है कि कर्मों पर ध्यान दो तो मृत्यु अपने आप सुधर जाएगी। धार्मिक क्रियाओं में भी मनुष्य उलझ कर रह जाता है कि क्या करूं और क्या नहीं करूं। मैंने ऐसा कर दिया तो ऐसा हो जाएगा। यह तनाव भी मृत्यु को बिगाड़ देता है। तुम्हें अपनी मृत्यु को सुधारना है तो तुम्हें अपनी क्रिया, विचार और भावना को ठीक करना होगा। सब कुछ अपने आप ही ठीक हो जाएगा। धर्म ही मृत्यु से सामना करना सिखाता है।
मृत्यु उसे ही डराती है जो दूसरों को दुखी कर खुद को सुखी रखना चाहता है। यदि व्यक्ति अपनी इस कमजोरी को भीतर से निकाल दे तो वह मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है। मृत्यु कर्म के अधीन है। मृत्यु के बाद व्यक्ति कहां जाएगा यह भी कर्म से ही तय होता है। मनुष्य को मृत्यु के डर से दूर रहना चाहिए  तभी वह अपनी दैनिक क्रियाएं निडर और उत्साह से कर सकता है। निर्मल और सहज मन के व्यक्ति से मृत्यु भी डरती है। व्यक्ति को अपने आचरण, शब्द और विचारों पर हमेशा ध्यान देना चाहिए। ऐसा करने से मृत्यु भी सोचने पर मजबूर जाती है।

विचार करें किस प्रयोजन से कोई बात कही गई है

अन्तर्मुखी की मौन साधना का 28वां दिन
बुधवार, 1 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा

मुनि पूज्य सागर की डायरी से

मौन साधना का 28वां दिन। हर इंसान के देखने, बोलने और सोचने का तरीका अलग होता है। इसीलिए हर बात के दो अर्थ निकलते हैं. एक अच्छा तो दूसरा बुरा। जिस तरह सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार हर बात के दो पहलू होते हैं। एक अच्छा तो दूसरा बुरा। अच्छी मानसिकता वाला इंसान हर बात का अच्छा अर्थ निकालेगा और बुरा इंसान हर बात का बुरा मतलब निकालेगा। इसी से इंसान की मानसिकता का पता चल जाता है। किसी भी बात को बोलने देखने और सोचने से पहले सकारात्मक दृष्टि से सोचना चाहिए कि इंसान ने किस प्रयोजन से यह बात कही है। राम को दशरथ ने अपनी बात बताई। राम ने निर्णय निकाल लिया कि मुझे वन जाना होगा तभी तो पिताश्री का वचन निभ पाएगा। दूसरा अर्थ यह भी तो हो सकता था कि पिता ने मुझे वन जाने को कह दिया। अच्छा पहलू निकलने से आपस में वात्सल्य बढ़ता है।  
कुछ वाक्यों पर विचार करते हैं। आओ  उदाहरण के तौर पर देखते हैं. दुकान में इंसान ने आग लगा दी। दुकान में गलती से इंसान से आग लग गई। दोनों वाक्यों में आग लगाने की बात है। पर एक में हम किसी को दोषी नहीं मान रहे है और दूसरे में दोषी मान रहे हैं। किसी ने कहा तुम्हें जयपुर जाना हैं यह एक वाक्य है। कोई इसका अर्थ निकालता है कि मुझे साथ में नही रखना चाहते हैं और दूसरा कोई अर्थ निकालता है कि वह मुझे आगे बढ़ाना चाहते हैं इसीलिए तो मुझ पर विश्वास कर जयपुर भेज रहे हैं। एक पेड़ पर आम लगे थे। बहुत सारे बच्चे पत्थर फेककर आम तोड़ रहे थे। उधर से दो मित्र निकले। एक तो यह सोचता है देखो पत्थर खाने के बाद भी पेड़ आम दे रहा है और दूसरा सोचता है कि पत्थर खाने के बाद आम दे रहा है। हम स्वयं ही अपने देखने बोलने और सोचने के तरीके से अपनी मानसिकता का पता लगा सकते हैं। सकारात्मक पहलू आत्मिक शक्ति बढ़ाता है जबकि नकारात्मक पहलू आत्मिक शक्ति को कम करता है।

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