जोधपुर। विजयादशमी पर बुराई का प्रतीक मानते हुए रावण के पुतले का दहन किया जाता है। बुराई के अंत के उपलक्ष्य में ही विजयादशमी का त्योहार मनाया जाता है। वहीं जोधपुर में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा की जाती है। यहां विजयदशमी के दिन रावण दहन पर खुशी नहीं, शोक मनाया जाता है। यह मंदिर किला रोड स्थित अमरनाथ महादेव मंदिर प्रांगण में है।

जोधपुर में श्रीमाली ब्राह्मण समाज के दवे गोधा गौत्र परिवार की ओर से रावण दहन पर शोक मनाया जाता है। इस अवसर पर मंदिर प्रांगण में रावण की मूर्ति का अभिषेक व विधि विधान से रावण की पूजा की जाती है। शाम को रावण दहन के बाद दवे गोधा वंशज के परिवारों के लोग स्नान कर नूतन यज्ञोपवीत धारण करते हैं। महादेव अमरनाथ मंदिर के पं. कमलेशकुमार दवे ने बताया कि रावण दवे गोधा गौत्र से था, इसलिए रावण दहन के समय आज भी इनके गौत्र से जुड़े परिवार रावण दहन नहीं देखते और शोक मनाते हैं। रावण दहन के बाद स्नान कर यज्ञोपवीत धारण करते हैं। रावण की मूर्ति के पास मंदोदरी का मंदिर है। इस दौरान उसकी भी पूजा की जाती है। दवे ने बताया कि मंदिर में वर्ष 2008 में विधि विधान से रावण की मूर्ति स्थापित की गई थी। तब से आज तक हर विजयादशमी को रावण की पूजा की जाती है।
गोधा गौत्र के ब्राह्मणों ने बनवाया रावण व मंदोदरी का मन्दिर
जोधपुर के मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और मंदोदरी का मंदिर स्थित है। इसे गोधा गौत्र के ब्राह्मणों ने बनवाया है। इस मंदिर में रावण और मंदोदरी की अलग-अलग विशाल प्रतिमाएं हैं। दोनों को शिव पूजन करते हुए दिखाया गया है। मंदिर के पुजारी कमलेश कुमार दवे का दावा है कि उनके पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां आकर बस गए। पहले रावण की तस्वीर की पूजा करते थे, लेकिन 2008 में इस मंदिर का निर्माण कराया गया।
शोक में शाम को स्नान कर बदलते हैं जनेऊ
मंदिर के पुजारी दवे ने बताया कि रावण महान संगीतज्ञ होने के साथ ही वेदों के ज्ञाता थे। ऐसे में कई संगीतज्ञ व वेद का अध्ययन करने वाले छात्र रावण का आशीर्वाद लेने इस मंदिर में आते हैं। दशहरा हमारे लिए शोक का प्रतीक है। इस दिन हमारे लोग रावण दहन देखने नहीं जाते हैं। शोक मनाते हुए शाम को स्नान कर जनेऊ को बदला जाता है और रावण के दर्शन करने के बाद भोजन किया जाता है।
असुरों के राजा मयासुर और अप्सरा हेमा की बेटी थी मंदोदरी
ऐसा कहा जाता है कि असुरों के राजा मयासुर का दिल हेमा नाम की एक अप्सरा पर आ गया था। हेमा को प्रसन्न करने के लिए उसने जोधपुर शहर के निकट मंडोर का निर्माण किया। मयासुर और हेमा के एक बहुत सुंदर पुत्री का जन्म हुआ। इसका नाम मंदोदरी रखा गया। एक बार मयासुर का देवताओं के राजा इन्द्र के साथ विवाद हो गया और उसे मंडोर छोड़ कर भागना पड़ा। मयासुर के जाने के बाद मंडूक ऋषि ने मंदोदरी की देखभाल की। अप्सरा की बेटी होने से मंदोदरी बहुत सुंदर थी। ऐसी कन्या के लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा था। आखिरकार उनकी खोज उस समय के सबसे बलशाली और पराक्रमी होने के साथ विद्वान राजा रावण पर जाकर पूरी हुई। उन्होंने रावण के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा।
मंदोदरी को देखते ही मोहित हो गया था रावण
मंदोदरी को देखते ही रावण उस पर मोहित हो गया और शादी के लिए तैयार हो गया। रावण अपनी बारात लेकर शादी करने के लिए मंडोर पहुंचा। मंडोर की पहाड़ी पर अभी भी एक स्थान को लोग रावण की चंवरी (ऐसा स्थान जहां वर-वधू फेरे लेते हैं) कहते हैं। बाद में मंडोर को राठौड़ राजवंश ने मारवाड़ की राजधानी बनाया और सदियों तक शासन किया। साल 1459 में राठौड़ राजवंश ने जोधपुर की स्थापना के बाद अपनी राजधानी को बदल दिया। आज भी मंडोर में विशाल गार्डन आकर्षण का केन्द्र हैं।