प्रकृति के प्रति संवेदनशील होने से ही लिखी जाती है कविताएं

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युवा साहित्यकार पुनीत कुमार रंगा की पुस्तक लागी किण री नजर का विमोचन


जयपुर.
प्रभा खेतान फाउंडेशन और ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन की ओर से मंगलवार को आखर पोथी का आयोजन किया गया। श्रीसीमेंट के सहयोग से हुए इस कार्यक्रम में युवा साहित्यकार पुनीत रंगा की पुस्तक ‘लागी किण री नजर’ का विमोचन और साहित्यिक चर्चा हुई। पुस्तक की समीक्षा करते हुए डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ने कहा कि इनकी कविताएं प्रकृति से जोडऩे वाली हैं। तकनीक के इस जमाने में यदि कोई युवा आखर के दर्पण में कुदरत की छटा को देखने के लिए प्रयास करता है तो इसकी प्रशंसा स्वाभाविक है। वृक्ष के पत्ते से शुरू होकर कवि की यात्रा पुष्प, पेड़, पक्षी, रेत, बादल, धरती, नदी, समुद्र, धोरे, बरसात, बसंत, गर्मी, सर्दी को समेटते हुए जब मरूस्थल की वनस्पति तक पहुंचती है तो अनेक बिम्बों से कविता को समृद्ध कर देती है। किण विध, कियां सोधूं, अेक ठावौ मारग, उळझाड़ा रै जंगल, पज्यौ थकौ, अेक मारग भूल्यै, मारगी दांई इन कविताओं को पढ़ते हुए लगता है कि कवि रास्ते से अनजाण नहीं है। आने वाले समय में कवि इस मार्ग की लंबी यात्रा करेंगे और अपनी रचनाओं के माध्यम से कविता में अपनी अलग पहचान बनाएंगे।
लेखक पुनीत कुमार रंगा ने कहा कि प्रकृति पर कविता लिखने का मन किया तो लगा कि यह निर्णय सही है। मायड़ भाषा राजस्थानी में लेखन मुझे एक नई ऊर्जा देता है। आज के वैश्विक संदर्भ में देखा जाए तो मनुष्य प्रकृति का असीमित दोहन कर रहा है। ज्ञान-विज्ञान के माध्यम से आपसी होड़ के कारण उससे छेड़छाड़ कर रहा है। लेखक रंगा ने अपनी अनेक कविताएं भी सुनाई।


प्रारंभ में प्रस्तावना पढ़ते हुए हरिचरण अहरवाल ने कहा कि बात को अपनी भाषा में कहने पर उसकी मिठास बढ़ जाती है। राजस्थान में चंद्रसिंह बिरकाली, उमरदान, महाराजा मानसिंह आदि ने प्रकृति पर लेखन किया है। चंद्रसिंह बिरकाली की ‘बादळी’ कालजयी रचना है। वैश्विक परिवेश में देखा जाए तो प्रकृति के प्रति संवेदना व्यक्त करने और उसके पास जाने की जरूरत है। लेखक रंगा ने प्रकृति और मनुष्य के बीच सेतु बांधने की कोशिश की है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ओमप्रकाश भाटिया ने कहा कि यह कविताएं प्रकृति की है। इन कविताओं में जंगल भी है और समुद्र है तो रेत के धोरे भी हैं। इस बीच कहीं रेत मिलती है तो कहीं पक्षी भी मिलते है और खुशबूदार फूल भी। हमारे प्राकृतिक परिवेश को लगी नजर चिंता की बात है। व्यक्ति की बजाय प्रवृति और प्रकृति पर लिखी रचना ही कालजयी हो सकती है। संवेदना और करूणा के प्रति कविता हो सकती है। लेखक रंगा की कविताओं में लय है और आंचलिकता से जुड़ाव भी है। आजकल तो गद्य में भी लय की मांग है। आंचलिकता से जुड़ा हुआ लेख ही सफल हो सकता है और कालजयी कृतियों की रचना कर सकता है।
ग्रासरूट मीडिया के प्रमोद शर्मा ने आखर पोथी कार्यक्रम की जानकारी देते हुए बताया कोरोना काल में इस कार्यक्रम को एक वर्ष पूरा हो गया है। राजस्थान के सभी क्षेत्रों से लोग इसमे शामिल होते है और अपनी भाषा को सरलता से समझते है। लेखक पुनीत रंगा को उनके लेखन की बधाई देते हुए शर्मा ने कहा कि संवेदना के बिना अच्छी कला और साहित्य का सृजन नहीं हो सकता है। लेखक रंगा ने कम आयु में ही प्रकृति के प्रति संवेदनशील लेखन किया है जो राजस्थानी के लिए खुशी की बात है। अंत में सभी का आभार व्यक्त किया।

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