
दूसरे विश्व युद्ध की बैरकों में चलता था सेनाओं का कामकाज
दिल्ली में किया आधुनिक रक्षा कार्यालय परिसर का उद्घाटन
स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में न्यू इंडिया की जरूरतों और आकांक्षाओं के अनुरूप देश की राजधानी को विकसित करने की दिशा में एक और कदम
राजधानी में आधुनिक डिफेंस एन्क्लेव के निर्माण की दिशा में एक बड़ा कदम
किसी भी देश की राजधानी उस देश की सोच, संकल्प, शक्ति और संस्कृति का प्रतीक होती है
भारत लोकतंत्र की जननी है भारत की राजधानी ऐसी हो जिसके केंद्र में नागरिक हो
जीवनयापन में आसानी और कारोबार में आसानी पर सरकार द्वारा विशेष ध्यान दिया जा रहा है और इसमें आधुनिक अवसंरचना की बड़ी भूमिका है
जब नीतियां और इरादे स्पष्ट हों, इच्छा शक्ति मजबूत हो और प्रयास ईमानदार हों तो सब कुछ संभव है
परियोजनाओं का नियत समय से पहले पूरा होना बदले हुए दृष्टिकोण और सोच की अभिव्यक्ति है।
जयपुर.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरूवार को नई दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग और अफ्रीका एवेन्यू स्थित रक्षा कार्यालय परिसर का उद्घाटन किया। उन्होंने अफ्रीका एवेन्यू स्थित रक्षा कार्यालय परिसर का दौरा भी किया तथा सेना,नौसेना, वायु सेना और सिविल अधिकारियों के साथ बातचीत की।
उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कार्यक्रम में उपस्थित केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे वरिष्ठ सहयोगी राजनाथ सिंह जी, हरदीप सिंह पुरी जी, अजय भट्ट जी, कौशल किशोर जी, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत जी, तीनों सेनाओं के प्रमुख, वरिष्ठ अधिकारीगण, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।
आजादी के 75वें वर्ष में आज हम देश की राजधानी को नए भारत की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुसार विकसित करने की तरफ एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ा रहे हैं। ये नया डिफेंस ऑफिस कॉम्लेक्स हमारी सेनाओं के कामकाज को अधिक सुविधाजनक, अधिक प्रभावी बनाने के प्रयासों को और सशक्त करने वाला है। इन नई सुविधाओं के लिए डिफेंस से जुड़े सभी साथियों को मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
हटाए दूसरे विश्वयुद्ध के हटमेंट्स
आप सभी परिचित हैं कि अभी तक डिफेंस से जुड़ा हमारा कामकाज दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बनाए गए हटमेंट्स से ही चल रहा था। ऐसे हटमेंट्स जिनको उस समय घोड़ों के अस्तबल और बैरकों से संबंधित जरूरतों के अनुसार बनाया गया था। आजादी के बाद के दशकों में इनको रक्षा मंत्रालय, थलसेना, नौसेना और वायुसेना के दफ्तरों के रूप में विकसित करने के लिए समय-समय पर हल्की-फुल्की मरम्मत हो जाती थी कोई ऊपर के अधिकारी आने वाले हैं तो थोड़ा और पेंटिंग हो जाता था और ऐसे ही चलता रहा। इसकी बारीकियों को जब मैंने देखा तो मेरे मन में पहला विचार ये आया कि ऐसी बुरी अवस्था में हमारे इतने प्रमुख सेना के लोग देश की रक्षा के लिए काम करते हैं। इसकी इस हालत के संबंध में हमारे दिल्ली की मीडिया ने कभी लिखा क्यों नहीं। ये मेरे मन में होता था वरना ये ऐसी जगह थी कि जरूर कोई न कोई आलोचना करता कि भारत सरकार क्या कर रही है। लेकिन पता नहीं किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इन हटमेन्ट्स में आने वाली परेशानियों को भी आप लोग भलीभांति जानते हैं।
सामने आया सेंट्रल विस्टा का सच
आज जब 21वीं सदी के भारत की सैन्य ताकत को हम हर लिहाज़ से आधुनिक बनाने में जुटे हैं। एक से एक आधुनिक हथियारों से लैस करने में जुटे हैं। बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाया जा रहा है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के माध्यम से सेनाओं का कोऑर्डिनेशन बेहतर हो रहा है। सेना की जरूरत की प्रोक्योरमेंट जो सालोंसाल चलती थी वो तेज हुई है तब देश की रक्षा-सुरक्षा से जुड़ा कामकाज दशकों पुराने हटमेंट्स से हो ये कैसे संभव हो सकता है और इसलिए इन स्थितियों को बदलना भी बहुत जरूरी था और मैं ये भी बताना चाहूंगा कि जो लोग सेंट्रल विस्टा के प्रोजेक्ट के पीछे डंडा लेकर पड़े थे बड़ी चतुराई से बड़ी चालाकी से सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का यह भी एक हिस्सा है। सात हजार से अधिक सेना के अफसर जहां काम करते हैं वो व्यवस्था विकसित हो रही है। इस पर बिल्कुल चुप रहते थे क्योंकि उनको मालूम था जो भ्रम फैलाने का इरादा झूठ फैलाने का इरादा है जैसे ही यह बात सामने आएगी तो फिर उनकी सारी गपबाजी चल नहीं पाएगी लेकिन आज देश देख रहा है कि सेंट्रल विस्टा के पीछे हम कर क्या रहे हैं। अब केजी मार्ग और अफ्रीका एवेन्यु में बने ये आधुनिक ऑफिस, राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े हर काम को प्रभावी रूप से चलाने में बहुत मदद करेंगे। राजधानी में आधुनिक डिफेंस एऩ्क्लेव के निर्माण की तरफ ये बड़ा और महत्वपूर्ण स्टेप है। दोनों परिसरों में हमारे जवानों और कर्मचारियों के लिए हर ज़रूरी सुविधा दी गई है।
वीर जवानों का स्मरण
मैं आज देशवासियों के सामने मेरे मन में जो मंथन चल रहा था उसका भी जिक्र करना चाहता हूं।
2014 में आपने मुझे सेवा करने का सौभाग्य दिया और तब भी मुझे लगता था कि ये सरकारी दफ्तरों के हाल ठीक नहीं है। संसद भवन के हाल ठीक नहीं है और 2014 में ही आकर मैं पहला ये काम कर सकता था लेकिन मैंने वो रास्ता नहीं चुना। मैंने सबसे पहले भारत की आन बान शान भारत के लिए जीने वाले भारत के लिए जूझने वाले हमारे देश के वीर जवान जो मातृभूमि के लिए शहीद हो गए उनका स्मारक बनाना सबसे पहले तय किया। आज जो काम आजादी के तुरंत बाद होना चाहिए था वो काम 2014 के बाद प्रारंभ हुआ और उस काम को पूर्ण करने के बाद हमने हमारे दफ्तरों को ठीक करने के लिए सेंट्रल विस्टा का काम उठाया। सबसे पहले हमने याद किया मेरे देश के वीर शहीदों को वीर जवानों को।
ये जो निर्माण कार्य हुआ है कामकाज के साथ-साथ यहां आवासीय परिसर भी बनाए गए हैं। जो जवान 24 गुणा 7 महत्वपूर्ण सुरक्षा कार्यों में लगे रहते हैं उनके लिए जरूरी आवास, किचन, मेस, इलाज से जुड़ी आधुनिक सुविधाएं इन सबका भी निर्माण किया गया है। देशभर से जो हजारों रिटायर्ड सैनिक अपने पुराने सरकारी कामकाज के लिए यहां आते हैं उनका भी विशेष ख्याल रखना उनको ज्यादा परेशानी ना हो इसके लिए उचित कनेक्टिविटी का यहां ध्यान रखा गया है। एक अच्छी बात ये भी है कि जो बिल्डिंगे बनी हैं वो इको-फ्रेंडली हैं और राजधानी के भवनों का जो पुरातन रंगरूप है जो उसकी एक पहचान है बरकरार रखा गया है। भारत के कलाकारों की आकर्षक कलाकृतियों को आत्मनिर्भर भारत के प्रतीकों को यहां के परिसरों में स्थान दिया गया है। यानि दिल्ली की जीवंतता और यहां के पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुएए हमारी सांस्कृतिक विविधता का आधुनिक स्वरूप यहां हर कोई अनुभव करेगा।
दिल्ली को भारत की राजधानी बने 100 वर्ष से अधिक का समय हो गया है। 100 वर्ष से अधिक के इस कालखंड में यहां की आबादी और अन्य परिस्थितियों में बहुत बड़ा अंतर आ चुका है। जब हम राजधानी की बात करते हैं तो वो सिर्फ एक शहर नहीं होता है। किसी भी देश की राजधानी उस देश की सोच उस देश के संकल्प उस देश का सामथ्र्य और उस देश की संस्कृति का प्रतीक होती है। भारत तो लोकतंत्र की जननी है। इसलिए भारत की राजधानी ऐसी होनी चाहिए जिसके केंद्र में लोक हो जनता जनार्दन हो। आज जब हम इज ऑफ लिविंग और इज ऑफ डूइंग बिजनेस पर फोकस कर रहे हैं तो इसमें आधुनिक इंफ्रास्टचर की भी उतनी ही बड़ी भूमिका है। सेंट्रल विस्टा से जुड़ा जो काम आज हो रहा है उसके मूल में यही भावना है। इसका विस्तार हमें आज शुरू हुई सेंट्रल विस्टा से जुड़ी वेबसाइट में भी दिखता है।
नई कार्य संस्कृति का विकास
राजधानी की आकांक्षाओं के अनुरूप दिल्ली में नए निर्माण पर बीते वर्षों में बहुत जोर दिया गया है। देशभर से चुनकर आए जनप्रतिनिधियों के लिए नए आवास हों, आंबेडकर जी की स्मृतियों को संजोने के प्रयास हों, अनेक नए भवन हों जिन पर लगातार काम किया गया है। हमारी सेना, हमारे शहीदों, हमारे बलिदानियों के सम्मान और सुविधा से जुड़े राष्ट्रीय स्मारक भी इसमें शामिल हैं। इतने दशकों बाद सेना, अर्धसैनिक बलों और पुलिस बल के शहीदों के लिए राष्ट्रीय स्मारक आज दिल्ली का गौरव बढ़ा रहे हैं। इनकी एक बहुत बड़ी विशेषता ये रही है कि इनमें से अधिकतर तय समय से पहले पूरे किए गए हैं वरना सरकारों की पहचान यही है होती है चलती है कोई बात नहीं 4-6 महीने देर है तो स्वाभाविक है। हमने नया वर्क कल्चर सरकार में लाने का ईमानदारी से प्रयास किया ताकि देश की संपत्ति बर्बाद न हो। समय सीमा में काम हो, निर्धारित खर्च से भी कुछ कम खर्च में क्यों न हो और प्रोफेशनलिज्म और एफिसिंयसी हो, इन सारी बातों पर हम बल दे रहे हैं ये सोच और अप्रोच में आई एफिसियंसी का एक बहुत बड़ा उदाहरण आज यहां प्रस्तुत है।
डिफेंस ऑफिस कॉम्प्लेक्स का भी जो काम 24 महीने में पूरा होना था वो सिर्फ 12 महीने के रिकॉर्ड समय में कम्प्लीट किया गया है यानि 50 प्रतिशत समय बचा लिया गया। वो भी उस समय जब कोरोना से बनी परिस्थितियों में लेबर से लेकर तमाम प्रकार की चुनौतियां सामने थीं। कोरोना काल में सैकड़ों श्रमिकों को इस प्रोजेक्ट में रोजगार मिला है। इस निर्माण कार्य से जुड़े सभी श्रमिक साथी, सभी इंजीनियर सभी कर्मचारी, अधिकारी, ये सब के सब इस समय सीमा में निर्माण के लिए तो अभिनंदन के अधिकारी हैं लेकिन साथ-साथ कोरोना का इतना भयानक जब खौफ था जीवन और मृत्यु के बीच में सवालिया निशान थे उस समय भी राष्ट्र निर्माण के इस पवित्र कार्य में जिन-जिन लोगों ने योगदान किया है पूरा देश उनको बधाई देता है। पूरा देश उनका अभिनन्दन करता है। ये दिखाता है कि जब नीति और नीयत साफ हो, इच्छाशक्ति प्रबल हो, प्रयास ईमानदार हो तो कुछ भी असंभव नहीं होता है सब कुछ संभव होता है। मुझे विश्वास है देश की नई पार्लियामेंट बिल्डिंग का निर्माण भी जैसे हरदीप सिंह पुरी बड़े विश्वास के साथ बता रहे थे तय समय सीमा के भीतर ही पूरा होगा।
नई तकनीक का किया उपयोग
आज कंस्ट्रक्शन में जो तेज़ी दिख रही है उसमें नई कंस्ट्रक्शन टेक्नॉलॉजी की भी बड़ी भूमिका है। डिफेंस ऑफिस कॉम्प्लेक्स में भी पारंपरिक आरसीसी निर्माण के बजाय लाइट गेज स्टील फे्रम तकनीक का उपयोग किया गया है। नई तकनीक के चलते ये भवन आग और दूसरी प्राकृतिक आपदाओं से अधिक सुरक्षित हैं। इन नए परिसरों के बनने से दर्जनों एकड़ में फैले पुराने हटमेंट्स के रखरखाव में जो खर्च हर वर्ष करना पड़ता था उसकी भी बचत होगी। मुझे खुशी है कि आज दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के अन्य शहरों में भी स्मार्ट सुविधाएं विकसित करने, गरीबों को पक्के घर देने के लिए आधुनिक कंस्ट्रक्शन टेक्नॉलॉजी पर फोकस किया जा रहा है। देश के 6 शहरों में चल रहा लाइट हाउस प्रोजेक्ट इस दिशा में एक बहुत बड़ा प्रयोग है। इस सेक्टर में नए स्टार्ट अप्स को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिस स्पीड और जिस स्केल पर हमें अपने अर्बन सेंटर्स को ट्रांसफॉर्म करना है वो नई टेक्नॉलॉजी के व्यापक उपयोग से ही संभव है।
62 एकड़ की जगह 13 एकड़ में हुआ आधुनिक निर्माण
ये जो डिफेंस ऑफिस कॉम्प्लेक्स बनाए गए हैं ये वर्क कल्चर में आए एक और बदलाव और सरकार की प्राथमिकता का प्रतिबिंब हैं। ये प्राथमिकता है उपलब्ध लैंड का सदुपयोग। सिर्फ लैंड ही नहीं हमारा ये विश्वास है और हमारा प्रयास है कि हमारे जो भी रिसोर्सेज हैं हमारी जो भी प्राकृतिक संपदाएं हैं उसका ऑपटिमम यूटिलाइजेशन होना चाहिए। अनाप शनाप ऐसी संपदा की बर्बादी अब देश के लिए उचित नहीं है और इस सोच के परिणामस्वरूप सरकार के अलग-अलग डिपार्टमेंट के पास जो जमीनें है उनके प्रोपर और ऑपटिमम यूटिलाइजेशन पर परफेक्ट प्लानिंग के साथ आगे बढऩे पर बल दिया जा रहा है। ये जो नए परिसर बनाए गए हैं वो लगभग 13 एकड़ भूमि में बने हैं। देशवासी आज जब ये सुनेंगे जो लोग दिन-रात हमारे हर काम की आलोचना करते हैं उनका चेहरा सामने रखकर इन चीजों को सुनें देशवासी। दिल्ली जैसे इतने महत्वपूर्ण जगह पर 62 एकड़ भूमि में राजधानी के अंदर 62 एकड़ भूमि में इतनी विशाल जगह पर ये जो हटमेंस बने हुए थे उसको वहां से शिफ्ट किया और उत्तम प्रकार की आधुनिक व्यवस्था सिर्फ 13 एकड़ भूमि में निर्माण हो गया। देश की संपत्ति का कितना बड़ा सदुपयोग हो रहा है यानि इतनी बड़ी और आधुनिक सुविधाओं के लिए पहले के मुकाबले लगभग 5 गुना कम भूमि का उपयोग हुआ है।
संकल्प को साकार करने का विश्वास
आजादी के अमृतकाल यानि आने वाले 25 सालों में नए आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का ये मिशन सबके प्रयास से ही संभव है। सरकारी व्यवस्था की प्रोडक्टविटी और एफिसियंसी बढ़ाने का जो बीड़ा आज देश ने उठाया है। यहां बन रहे नए भवन उस सपनों को सपोर्ट कर रहे हैं उस संकल्प को साकार करने का विश्वास जगा रहे हैं। कॉमन केंद्रीय सचिवालय हो, कनेक्टेड कॉन्फे्रंस हॉल हों, मेट्रो जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट से सुलभ कनेक्टिविटी हो, ये सबकुछ राजधानी को पीपुल फे्रंडली बनाने में भी बहुत मदद करेंगे।
