अब देश में दौड़ेगी एल्युमीनियम से बनी मालगाड़ियां

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देश की पहली एल्यूमीनियम निर्मित मालगाड़ी भुवनेश्वर से बिलासपुर के लिए रवाना

नई दिल्ली. अगले कुछ साल में देश में एल्यूमीनियम से बनी हुई माल गाड़ियां दौड़ती दिखाई देगी। इन माल गाड़ियों की क्षमता ज्यादा रहेगी और यह अधिक तेजी से माल परिवहन करने में सक्षम रहेगी। इससे देश में माल परिवहन की गति भी बढ़ेगी और देश को कई धातुओं का आयात कम करने में भी मदद मिलेगी। इसी क्रम में केन्द्रीय रेल , संचार, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रविवार 16 अक्टूबर को देश में पहली बार एल्युमिनियम से निर्मित मालगाड़ी को उड़ीसा की राजधानी के भुवनेश्वर स्टेशन से को बिलासपुर के लिए रवाना किया ।
इस मौके पर रेल मंत्री वैष्णव ने कहा, ”यह देश और स्वदेशीकरण से जुड़े हमारे अभियान के लिए गौरव का पल है। वर्ष 2०26 तक 2,528 मिलियन टन माल ढुलाई के लिए करीब 7०,००० अतिरिक्त वैगन की आवश्यकता होगी। तेजी से बढ़ते व्यापार और बिजनेस को सपोर्ट करने के लिए ये जरूरी होगा।’’ उन्होंने कहा कि इन एल्युमीनियम वैगन से सामान्य वैगन की तुलना में 1० प्रतिशत से अधिक सामानों की ढुलाई के हमारे लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही हरित एवं दक्ष रेलवे नेटवर्क तैयार करने के हमारे लक्ष्य के अनुरूप कार्बन फुटप्रिट में कमी लाने में मदद मिलेगी।
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे बिलासपुर के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी साकेत रंजन ने बताया कि भारतीय रेलवे ने ‘मेक इन इंडिया’ के तहत आरडीएसओ , बीईएससीओ और हिडाल्को की मदद से इस मालगाड़ी के डिब्बों को तैयार किया गया है। इस रैक का कोयले के माल लदान के लिए कोरबा क्लस्टर कोल साइडिग के साथ ही अन्य कोल साइडिग लदान के लिए उपयोग किया जाएगा । इन रैकों का रखरखाव बिलासपुर में किया जायेगा।
उन्होंने बताया कि नए बने एल्युमिनियम रैक के सुपरस्ट्रक्चर पर कोई वेल्डिग नहीं है । ये पूरी तरह लॉकबोल्टेड हैं। एल्युमिनियन रैक की खासियत ये है कि ये सामान्य स्टील रेक से हल्के हैं और 18० टन अतिरिक्त भार ढो सकते हैं । कम किए गए टीयर वेट से कार्बन फुटप्रिट कम हो जाएगा , क्योंकि खाली दिशा में ईंधन की कम खपत और भरी हुई स्थिति में माल का अधिक परिवहन होगा। यानि कि समान दूरी और समान भार क्षमता के लिए यह सामान्य और परंपरागत रैक की तुलना में इसमें कम ईंधन की खपत होगी।
एल्युमिनियम रैक के उपयोग के जरिए ईंधन की भी बचत होगी और इससे कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा । एक एल्युमिनियम रैक अपने सेवा काल में करीब 14,5०० टन कम कार्बन उत्सर्जन करेगा । कुल मिलाकर यह रैक ग्रीन और कुशलतम रेलवे की अवधारणा को पूरा करेगा । इन एल्युमिनियम रैक की रीसेल वैल्यू 8० फीसदी है। एल्युमिनियम रैक सामान्य स्टील रैक से 35 प्रतिशत महंगे हैं, क्योंकि इसका पूरा सुपर स्ट्रक्चर एल्युमिनियम का है । एल्युमिनियम रेक की उम्र भी सामान्य रेक से 1० साल ज़्यादा है । इसकी जंग और घर्षण के प्रति अधिक प्रतिरोधी क्षमता होने के कारण मेंटेनेंस खर्च भी कम होगा।
उन्होंने कहा कि एल्युमिनियम फ्रेट रैक आधुनिकीकरण अभियान में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, क्योंकि एल्युमिनियम पर स्विच करने से कार्बन फुटप्रिट में काफी कमी आएगी । वहीं एक अनुमान के मुताबिक, केंद्र सरकार द्बारा शुरू किए जाने वाले दो लाख रेलवे वैगनों में से पांच फीसदी अगर एल्युमिनियम के हैं तो एक साल में लगभग 1.5 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन तो बचाया जा सकता है ।
स्टील के बने परंपरागत रैक निकेल और कैडमियम की बहुत अधिक खपत करता है जो आयात से आता है, तथा इससे देश की निर्भरता विदेशों पर बढ़ती है। एल्युमीनियम वैगनों के प्रसार के परिणामस्वरूप कम आयात होगा तथा स्थानीय एल्युमीनियम उद्योग के लिए बेहतर अवसर साबित होगा तथा इससे देश के विदेशों पर निर्भरता कम होगी।
एल्युमीनियम बनाने वाली प्रमुख कंपनी हिडाल्को द्बारा विकसित देश के पहले पूर्ण एल्यूमीनियम फ्रेट रेल रेक को हरी झंडी दिखा कर आज यहां से रवाना किया।
कंपनी ने यहां जारी बयान में कहा कि इससे फ्रेट परिवहन के आधुनिकीकरण की भारत की महत्वाकांक्षी योजना को गति देने और भारतीय रेलवे द्बारा बड़े पैमाने पर कार्बन फुटप्रिट में कमी लाने में मदद मिलेगी। ये चमचमाते रेक स्टील के मौजूदा रेक से 18० टन तक हल्के हैं और 5-1० प्रतिशत ज्यादा सामानों की ढुलाई में सक्षम हैं। ये कम ऊर्जा की खपत करते हैं और इनसे रोलिग स्टॉक एवं रेल अपेक्षाकृत रूप से लगभग नगण्य रूप से घिसता है।
खास तौर पर कोयले की ढुलाई के लिए डिजाइन किए गए बॉटम डिस्चार्ज एल्यूमीनियम फ्रेट वैगन से कार्बन फुटप्रिट में बहुत अधिक कमी लाने में मदद मिलेगी। वैगन के वजन में हर 1०० किलोग्राम की कमी के साथ लाइफटाइम में करीब 8-1० टन कार्बन डाई-ऑक्साइड में कमी लाने में मदद मिलती है। इस तरह एक रेक के जरिए उसके पूरे लाइफटाइम में 14,5०० टन कार्बन डाई-ऑक्साइड की बचत की जा सकती है। रेलवे आने वाले वर्षों में एक लाख से अधिक डिब्बे लगाने की योजना पर काम कर रहा है। ऐसे में साल भर में कार्बन डाई-ऑक्साइड में 25 लाख टन से अधिक की कमी लाई जा सकती है। करीब 15-2० फीसदी एल्यूमीनियम डिब्बों के इस्तेमाल से देश के टिकाऊ विकास के लक्ष्य की दिशा में उल्लेखनीय योगदान दिया जा सकता है।
हिडाल्को इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक सतीश पई ने कहा, ”भारत के पहले एल्यूमीनियम फ्रेट रेक का लॉन्च राष्ट्र निर्माण के लिए स्मार्ट और टिकाऊ समाधान पेश करने की हमारी क्षमताओं एवं प्रतिबद्धता को दिखाता है। हिडाल्को भारतीय रेलवे के लॉजिस्टिक्स को अधिक दक्ष बनाने और आत्मनिर्भर भारत के विजन में अधिक योगदान करने को लेकर सर्वश्रेष्ठ वैश्विक प्रौद्योगिकी एवं स्थानीय संसाधनों को एकसाथ लाने को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है।’’
आरडीएसओ द्बारा स्वीकृत डिजाइन के आधार पर बेस्को द्बारा तैयार इन डिब्बों का निर्माण काफी अधिक मजबूत एल्यूमीनियम अलॉय प्लेट एवं एक्स्ट्रुशन द्बारा किया गया है, जिसका निर्माण हिडाल्को के हीराकुड, ओडिशा स्थित अत्याधुनिक रोलिग फैसिलिटी में किया गया है और उत्तर प्रदेश के रेणुकूट स्थित कंपनी के संयंत्र में ग्लोबल टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के साथ एक्स्ट्रूशन हुआ है। ये पूरी तरह एल्यूमीनियम से बने रेक 19 प्रतिशत ज्यादा पेलोड टू टेयर वेट रेशियो की पेशकश करते हैं, जिसका रेलवे की लॉजिस्टिक एवं ऑपरेशनल दक्षता पर काफी अधिक बदलाव डालने वाला असर देखने को मिल सकता है। हिडाल्को हाई-स्पीड पैसेंजर ट्रेन के लिए भी एल्यूमीनियम के कोच के निर्माण में हिस्सा लेने की योजना बना रही है। अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे देशों में एल्यूमीनियम ट्रेनों की हिस्सेदारी बहुत अधिक होती है। इसकी वजह ये है कि एल्यूमीनियम के कोच स्लिक होते हैं एवं इनका डिजाइन, एयरोडाइनेमिक होता है। साथ ही ये अधिक रफ्तार में पटरी से उतरे बिना झुकाव में सक्षम होते हैं। अधिक टिकाऊ होने और पैसेंजर सेफ्टी को ध्यान में रखकर एल्यूमीनियम मेट्रो ट्रेनों के लिए सबसे पसंदीदा विकल्प है। इसकी वजह यह है कि भिड़ंत की स्थिति में इसकी क्रैश अब्जॉप्र्शन क्षमता बेहतर होती है।

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