साधना का पर्व है नवरात्र

Spread the love

।। श्रीहरिः।।
।। श्रीमते रामानुजाय नमः ।।

ॐ नमश्चण्डिकायै

शारदीय नवरात्र घटस्थापना

मदनगंज किशनगढ़.इस वर्ष  विक्रम संवत् 2080  आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (एकम्) रविवार तद्नुसार दिनांक 15 अक्टूबर 2023से प्रारम्भ हो रहे हैं। 
जयपुर स्टैंडर्ड समयानुसार नवरात्रारम्भ शुभारम्भ एवं घट स्थापना के लिये  द्विस्वभाव धनु लग्न शुभ चौघड़िया से युक्त मध्याह्न अभिजित् मुहूर्त में 11.50 बजे से 12. 36 बजे तक  नवरात्रारम्भ एवं घटस्थापना का श्रेष्ठ शुभ मुहूर्त है।
 किशनगढ़ /अजमेर के स्टैंडर्ड समयानुसार शारदीय नवरात्रारम्भ एवं घटस्थापना के लिए द्विस्वभाव धनु लग्नयुक्त शुभ के चौघड़िया में मध्याह्न  अभिजित् मुहूर्त में 11 .54 बजे से 12. 40  बजे तक नवरात्रारम्भ एवं घटस्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त है। 
  हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग में नवरात्र शुभारम्भ एवं घट स्थापना वर्जित है। कल दिन भर चित्रा नक्षत्र है साथ ही वैधृति योग भी प्रातः 10. 23 बजे तक है, ऐसी स्थिति में धर्मसिन्धु - निर्णय सिन्धु के शास्त्र वचनानुसार केवल अभिजित् मुहूर्त में ही घट स्थापना की जा सकती है। 

 आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक महिषासुरमर्दिनी भगवती दुर्गा के नव रूपों की आराधना, पूजन, हवन तथा फलाहार /शाकाहार द्वारा उपवास व्यक्ति में सात्विक गुणों का बीजारोपण करता है।  शरद ऋतु निर्मल - स्वच्छ - निरभ्र आकाश, सुखद शीतल स्पर्शवान् वायु जड़-प्रकृति में हल्की गुनगुनाहट के साथ सह्य ताप प्रदान करने वाला तेज (सूर्य तथा अग्नि) वसन्तर्तु में स्थिर वेगवाली नदियों का मधुर शुद्ध जल तथा धान आदि वनस्पत्यौषधों से सस्यश्यामला भीनी-भीनी सुगन्ध से प्रहृष्टमना पृथिवी। 
विचारणीय है कि शरद ऋतु निर्मल, लघु तथा प्रकाशात्मक होने के कारण सत्वगुण प्रधान ऋतु है। अतः इस ऋतु में सतोगुणी प्रवृतियाँ उद्दीप्त होती है। "सर्व मंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके" के सम्बोधन के साथ 'त्र्यम्बिका, गौरी, नारायणी" को नमन तथा उनसे " रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि " की प्रार्थना सुखद तथा लोकमंगलकारी मनोवैज्ञानिक स्थिति को उत्पन्न करती है। रूप बाह्यलावण्य  हो सकता है, जय अन्तर्बाह्य स्वयं से संघर्ष में जय हो सकता है, यश व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है, तथा द्विष् (शत्रु) काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, तथा मात्सर्य है, जिनका नाश होने पर सर्वथा सर्वार्थसिद्धि सम्भव है।
 
दुर्गासप्तशती के पाठ से तो आत्मिक बल तथा आत्मविश्वास प्राप्त होता है, किन्तु अखण्डदीपप्रज्ज्वालन तथा हवन से वातावरण रोगाणुओं से रहित तथा शुद्ध होता है। इस प्रकार प्रदूषित पर्यावरण में शुद्धि का सार्थक तथा वैज्ञानिक उपाय है नवरात्रव्रत पूजन उपवास तथा फलाहार मेदजन्य विकारों को दूर करता है 

इन नवरात्र में शाक्त (शक्ति उपासकों) को दुर्गा सप्तशती ललिता सहस्रनामस्तोत्र, दुर्गा सहस्रनामस्तोत्र, दुर्गा – चालीसा आदि का अनुष्ठान करना अतिश्रेष्ठ रहता है, वहीं श्रीवैष्णव उपासकों को वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस का नवाह्न पारायण, सुन्दर काण्ड, रामरक्षास्तोत्र, श्रीरामस्तवराज आदि का अनुष्ठान अतिश्रेष्ठ रहता है।

नवरात्र में कन्या – भोज का बड़ा महत्व है। अष्टमी या नवमी के दिन 9 कन्या (जो 10 वर्ष से अधिक न हो) एवं दो बालकों को भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा, वस्त्र, आभूषण, फलादि देना चाहिए। क्योंकि कन्यायें शक्तिस्वरूपा जगदम्बा का साक्षात् स्वरूप है।

नवरात्र का रहस्य

चान्द्रमास के अनुसार चार नवरात्र होते हैं – आषाढ़ शुक्ल पक्ष में आषाढ़ीय गुप्त नवरात्र , आश्विन शुक्लपक्ष में शारदीय नवरात्र , माघ शुक्ल पक्ष में शिशिर कालीन गुप्त नवरात्र एवं चैत्र शुक्ल पक्ष में वासन्ती नवरात्र ।
तथापि परंपरा से दो नवरात्र – चैत्र एवं आश्विन मास के नवरात्र ही सर्वमान्य है।
अतः नवरात्र की प्रत्येक तिथि के लिए कुछ साधन ज्ञानियों द्वारा नियत किये गये है …..
प्रतिपदा
इसे शुभेच्छा कहते हैं । जो प्रेम जगाती है प्रेम बिना सब साधन व्यर्थ है , अस्तु प्रेम को अविचल अडिग बनाने हेतु शैलपुत्री का आवाहन पूजन किया जाता है । अचल पदार्थों में पर्वत सर्वाधिक अटल होता है ।
द्वितीया :- धैर्यपूर्वक द्वैतबुद्धि का त्याग करके ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए माँ ब्रह्मचारिणी का पूजन करना चाहिए ।
तृतीया –
त्रिगुणातीत (सत् , रज ,तम से परे) होकर माँ चन्द्रघण्टा का पूजन करते हुए मन की चंचलता को वश में करना चाहिए ।
चतुर्थी –
अन्तःकरण चतुष्टय मन ,बुद्धि , चित्त एवं अहंकार का त्याग करते हुए मन, बुद्धि को कूष्माण्डा देवी के चरणोँ में अर्पित करें ।
पंचमी –
इन्द्रियों के पाँच विषयो अर्थात् शब्द, रूप’ रस’ गन्ध ‘स्पर्श का त्याग करते हुए स्कन्दमाता का ध्यान करें।

षष्ठी –
काम – क्रोध – मद – मोह – लोभ एवं मात्सर्य का परित्याग करके कात्यायनी देवी का ध्यान करें ।

सप्तमी –
रक्त , रस, माँस, मेदा, अस्थि, मज्जा एवं शुक्र इन सप्त धातुओं से निर्मित क्षण भंगुर दुर्लभ मानव देह को सार्थक करने के लिए कालरात्रि देवी की आराधना करें।
अष्टमी –
ब्रह्म की अष्टधा प्रकृति पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि एवं अहंकार से परे महागौरी के स्वरूप का ध्यान करता हुआ ब्रह्म से एकाकार होने की प्रार्थना करें ।
नवमी –
माँ सिद्धिदात्री की आराधना से नवद्वार वाले शरीर की प्राप्ति को धन्य बनाता हुआ आत्मस्थ हो जाय ।

पं. रतन शास्त्री (काछवाल) दादिया वाले ।
पं. फतेहलालनगर मदनगंज – किशनगढ़ ।अजमेर।

ॐ नमश्चण्डिकायै

Leave a Reply

Your email address will not be published.