
शारदीय नवरात्र गुरूवार से
जयपुर.
इस वर्ष नवरात्र आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (एकम) गुरुवार तद्नुसार दिनांक 07 अक्टूबर 2021 से प्रारम्भ हो रहे हैं। इस दिन सूर्योदय से मध्याह्नकाल तक चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग विद्यमान है। सम्पूर्णा प्रतिपद्देव चित्रायुक्ता यदा भवेत्। वैधृत्वया वापि युक्ता स्यात्तदामध्यन्दिनेरवौ।। (रूद्रयामल)
सम्पूर्ण प्रतिपदा ही चित्रा नक्षत्र या वैधृति योग से युक्त हो तो मध्याह्न काल में घट स्थापना करनी चाहिए। इस दिन चित्रा नक्षत्र का पूर्वार्द्ध 10.16 बजे तक तथा वैधृति योग का पूर्वार्द्ध भी अपराह्न 3.24 (15.24) बजे तक है। अतः जयपुर स्टैंडर्ड समयानुसार शारदीय नवरात्रारंभ एवं घटस्थापना के लिए अभिजित् मुहूर्त मध्याह्न 11.51 से 12.38 तक सर्वश्रेष्ठ धर्मशास्त्र सम्मत समय है।
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक महिषासुरमर्दिनी भगवती दुर्गा के नव रूपों की आराधना, पूजन, हवन तथा फलाहार द्वारा उपवास व्यक्ति में सात्विक गुणों का बीजारोपण करता है। शरद् ऋतु निर्मल- स्वच्छ-निरभ्र आकाश, सुखद शीतल स्पर्शवान् वायु जड़-प्रकृति में हल्की गुनगुनाहट के साथ सह्य ताप प्रदान करने वाला तेज सूर्य तथा अग्नि वर्षान्त में स्थिर वेगवाली नदियों का मधुर शुद्ध जल तथा धान आदि वनस्पत्यौषधों से सस्यश्यामला भीनी-भीनी सुगन्ध से प्रहृष्टमना पृथिवी इस प्रकार पंचभूतों का समवेत आनन्द है शरद् ऋतु का उत्कर्ष।
विचारणीय है कि शरद् ऋतु निर्मल, लघु तथा प्रकाशात्मक होने के कारण सत्वगुण प्रधान ऋतु है। अतरू इस ऋतु में सतोगुणी प्रवृतियाँ उद्दीप्त होती है। सर्व मंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके के सम्बोधन के साथ त्रयम्बिका, गौरी, नारायणी को नमन तथा उनसे रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि की प्रार्थना सुखद तथा लोकमंगलकारी मनोवैज्ञानिक स्थिति को उत्पन्न करती है। रूप बाह्यलावण्य हो सकता है। जय अन्तर्बाह्य स्वयं से संघर्ष में जय हो सकता है। यश व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है। तथा द्विष् (शत्रु) काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद तथा मात्सर्य है जिनका नाश होने पर सर्वथा सर्वार्थसिद्धि सम्भव है।
दुर्गासप्तशती के पाठ से तो आत्मिक बल तथा आत्मविश्वास प्राप्त होता है किन्तु अखण्डदी प्रज्ज्वलन तथा हवन से वातावरण रोगाणुओं से रहित तथा शुद्ध होता है। इस प्रकार वर्षा से प्रदूषित पर्यावरण में शुद्धि का सार्थक तथा वैज्ञानिक उपाय है नवरात्र व्रत पूजन उपवास तथा फलाहार मेदजन्य विकारों को दूर करता है
इन नवरात्र में शाक्त शक्ति (उपासकों) को दुर्गा सप्तशती, ललिता सहस्रनामस्तोत्र, दुर्गा सहस्रनामस्तोत्र, दुर्गा चालीसा आदि का अनुष्ठान करना अतिश्रेष्ठ रहता है वहीं श्रीवैष्णव उपासकों को वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस का नवाह्न पारायण, सुन्दर काण्ड, रामरक्षास्तोत्र आदि का अनुष्ठान अतिश्रेष्ठ रहता है।
नवरात्र में कन्या भोज का बड़ा महत्व है। अष्टमी या नवमी के दिन 9 कन्या जो 10 वर्ष से अधिक न हो एवं दो बालकों को भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा देना चाहिए। क्योंकि कन्यायें शक्तिस्वरूपा जगदम्बा का साक्षात् स्वरूप है।
नवरात्र का रहस्य
चान्द्रमास के अनुसार चार नवरात्र होते हैं। आषाढ़ शुक्ल पक्ष में आषाढ़ीय गुप्त नवरात्र, आश्विन शुक्लपक्ष में शारदीय नवरात्र, माघ शुक्ल पक्ष में शिशिर कालीन गुप्त नवरात्र एवं चौत्र शुक्ल पक्ष में वासन्ती नवरात्र। तथापि परंपरा से दो नवरात्र चौत्र एवं आश्विन मास के नवरात्र ही सर्वमान्य है। चौत्रमास मधुमास एवं आश्विनमास ऊर्ज मास नाम से प्रसिद्ध है जो शक्ति के पर्याय हैं।
अतः शक्ति आराधना हेतु इस काल खण्ड को नवरात्र शब्द से सम्बोधित किया गया है – नवानां रात्रीणां समाहाररू अर्थात् नौ रात्रियों का समूह।
रात्रि का तात्पर्य है विश्रामदात्री, सुखदात्री के साथ एक अर्थ जगदम्बा भी है।
रात्रिरूपयतो देवी दिवरूपो महेश्वर
तन्त्रग्रन्थों में तीन रात्रि कालरात्रि (महाशिवरात्रि) फाल्गुन कृष्णपक्ष चतुर्दशी महाकाली की रात्रि मोहरात्रि, आश्विन शुक्लपक्ष अष्टमी महासरस्वती की रात्रि, महारात्रि-कार्तिक कृष्णपक्ष अमावस्या महालक्ष्मी की रात्रि।
एक अंक से सृष्टि का आरम्भ है। सम्पूर्ण मायिक सृष्टि का विस्तार आठ अंक तक ही है। इससे परे ब्रह्म है जो नौ अंक का प्रतिनिधित्व करता है अस्तु नवमी तिथि के आगमन पर शिव-शक्ति का मिलन होता है।
शक्ति सहित शक्तिमान् को प्राप्त करने हेतु भक्त को नवधा भक्ति का आश्रय लेना पड़ता है। जीवात्मा नौ द्वार वाले पुर (शरीर) का स्वामी है। नवछिद्रमयो देहः इन छिद्रों को पार करता हुआ जीव ब्रह्मत्व को प्राप्त करता है।
इस तरह करें पूजन
अतः नवरात्र की प्रत्येक तिथि के लिए कुछ साधन ज्ञानियों द्वारा नियत किये गये है।
प्रतिपदा-इसे शुभेच्छा कहते हैं। जो प्रेम जगाती है प्रेम बिना सब साधन व्यर्थ है। अस्तु प्रेम को अविचल अडिग बनाने हेतु शैलपुत्री का आवाहन पूजन किया जाता है। अचल पदार्थों में पर्वत सर्वाधिक अटल होता है।
द्वितीया-धैर्यपूर्वक द्वैतबुद्धि का त्याग करके ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए माँ ब्रह्मचारिणी का पूजन करना चाहिए।
तृतीया-त्रिगुणातीत सत्-रज-तम से परे होकर माँ चन्द्रघण्टा का पूजन करते हुए मन की चंचलता को वश में करना चाहिए।
चतुर्थी-अन्तरूकरण चतुष्टय मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार का त्याग करते हुए मन, बुद्धि को कूष्माण्डा देवी के चरणों में अर्पित करें।
पंचमी-इन्द्रियों के पाँच विषयों अर्थात् शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श का त्याग करते हुए स्कन्दमाता का ध्यान करें।
षष्ठी-काम-क्रोध, मद, मोह, लोभ एवं मात्सर्य का परित्याग करके कात्यायनी देवी का ध्यान करें।
सप्तमी-रक्त, रस, माँस, मेदा, अस्थि, मज्जा एवं शुक्र इन सप्त धातुओं से निर्मित क्षण भंगुर दुर्लभ मानव देह को सार्थक करने के लिए कालरात्रि देवी की आराधना करें।
अष्टमी-ब्रह्म की अष्टधा प्रकृति, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि एवं अहंकार से परे महागौरी के स्वरूप का ध्यान करता हुआ ब्रह्म से एकाकार होने की प्रार्थना करें।
नवमी-माँ सिद्धिदात्री की आराधना से नवद्वार वाले शरीर की प्राप्ति को धन्य बनाता हुआ आत्मस्थ हो जाय।
पौराणिक दृष्टि से आठ लोकमाताएँ हैं तथा तन्त्रग्रन्थों में आठ शक्तियाँ है। ब्राह्मी जो सृष्टिक्रिया प्रकाशित करती है। माहेश्वरी-यह प्रलय शक्ति है। कौमारी-आसुरी वृत्तियों का दमन करके दैवीय गुणों की रक्षा करती है। वैष्णवी-सृष्टि का पालन करती है। वाराही-आधार शक्ति है इसे काल शक्ति कहते हैं। नारसिंही-ये ब्रह्म विद्या के रूप में ज्ञान को प्रकाशित करती है। ऐन्द्री-ये विद्युत् शक्ति के रूप में जीव के कर्मो को प्रकाशित करती है। चामुण्डा-(प्रवृत्ति) (चण्ड निवृत्ति) मुण्ड का विनाश करने वाली है ।
आठ आसुरी शक्तियाँ-1. मोह-महिषासुर 2. काम-रक्तबीज 3. क्रोध-धूम्रलोचन 4. लोभ-सुग्रीव 5. मद मात्सर्य-चण्ड.मुण्ड 6. राग-द्वेष मधु-कैटभ 7. ममता-निशुम्भ 8. अहंकार-शुम्भ
अष्टमी तिथि तक इन दुगुर्णों रूपी दैत्यों का संहार करके नवमी तिथि को प्रकृति पुरुष का एकाकार होना ही नवरात्र का आध्यात्मिक रहस्य है।
नौ ही क्यों
भूमिरापोऽनलो वायु खं मनो बुद्धिरेव च।
अहंकार इतीयं मे प्रकृतिरष्टधा।
कहकर भगवान ने आठ प्रकृतियों का प्रतिपादन किया है इनसे परे केवल ब्रह्म ही है अर्थात् आठ प्रकृति एवं एक ब्रह्म ये नौ हुए जो परिपूर्णतम है।
नौ देवियाँ, शरीर के नौ छिद्र, नवधा भक्ति एवं नवरात्र ये सभी पूर्ण हैं।
नौ के अतिरिक्त संसार में कुछ नहीं है। इसके अतिरिक्त जो है वह शून्य है।
ओम नमश्चण्डिकायै
-पंडित रतन शास्त्री (दादिया वाले)
लेखक संस्कृत के वरिष्ठ शिक्षक रहे है और कर्मकांड के आचार्य है। वर्तमान में अजमेर जिले के किशनगढ़ में निवासरत है।
