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अनूठी दीक्षा का फिर साक्षी बना किशनगढ़, जैनेश्वरी दीक्षा में उमड़ा जैन समाज
मदनगंज-किशनगढ़। किशनगढ़ के लिए सोमवार 13 फरवरी का दिन फिर गौरवशाली साबित हुआ। आचार्यश्री वर्धमानसागर महाराज ससंघ के सान्निध्य में फिर दीक्षा दी गई। सकल दिगम्बर जैन समाज व मुनि सुव्रतनाथ दिगम्बर जैन पंचायत की ओर से आयोजित मोक्ष मार्ग आरोहण समारोह के तहत दीक्षार्थी श्रावक आदेश्वर पंचैरी धरियावद को जैनेश्वरी दीक्षा दी गई। आचार्यश्री सुनील सागर महाराज के शिष्य मुनि संबुद्ध सागर महाराज व मुनि संविज्ञसागर महाराज और आर्यिका यशस्विनी माताजी की मौजूदगी में आचार्य वर्धमान सागर से दीक्षा लेकर आदेश्वर पंचैरी ने वैराग्य पथ का अंगीकार किया गया वहीं अब वे मुनि मुमुक्षुसागर बन गए। जैनेश्वरी दीक्षा के साक्षी बनने के लिए किशनगढ़ के साथ विभिन्न क्षेत्रों से भी जैन समाज के लोग उमड़े।
सूरजदेवी पाटनी सभागार में आयोजित दीक्षा महोत्सव का शुभारंभ आचार्यश्री शांतिसागर के चित्र अनावरण व दीप प्रज्ज्वलन आरके मार्बल समूह के कंवरलाल, अशोककुमार पाटनी, मुनि सुव्रतनाथ दिगम्बर जैन पंचायत अध्यक्ष विनोद पाटनी, मंत्री सुभाष बड़जात्या, आदिनाथ पंचायत अध्यक्ष प्रकाशचंद गंगवाल व मंत्री विनोद चौधरी, पंडित हंसमुख जैन शास्त्री, पंडित कुमुद जी सोनी एवं संजय पापड़ीवाल ने किया। मंगलाचरण मैना एवं कीर्ति डागरिया ने किया। आचार्य वर्धमान सागर का पूजन जैन समाज के लोगों ने किया। प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य शांतिसागर के अलावा पूर्व आचार्यों का अर्घ समपित किए गए। कार्यक्रम के दौरान वात्सल्य भोज पुण्यार्जक परिवार हुकमचंद, सुशीला देवी दगड़ा परिवार का जैन समाज की ओर से अभिनंदन किया गया। वही विहार के दौरान चौका लगाने में विशेष सहयोग देने वाले पारसमल पांडया परिवार एवं सुमेर चंद गोधा परिवार का स्वागत अभिनंदन किया गया।
वेद प्रकाश चंद जी शर्मा का स्वागत किया गया कार्यक्रम के दौरान पाद-प्रक्षालन करने का सौभाग्य आरके मार्बल के कंवरलाल, महावीर प्रसाद, अशोककुमार, सुरेश कुमार व विमल पाटनी परिवार को प्राप्त हुआ। सुगंधित जल से पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य श्रीमती शोभादेवी, रविन्द्र प्रकाश, चन्द्रप्रकाश बैद परिवार का प्राप्त हुआ। दूध से पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य कांतादेवी, मुकेश कुमार, राकेश कुमार, दिनेश कुमार पाटनी परिवार को प्राप्त हुआ। दीक्षार्थी ने आचार्यश्री ने दीक्षा की याचना की वहीं आचार्यश्री, समस्त साधुओं और श्रावक-श्राविकाओं से क्षमा याचना की। आचार्यश्री द्वारा दीक्षार्थी के पंच मुष्ठी केशलोच किए गए वहीं दीक्षा संस्कार मस्तक तथा हाथों पर किए गए। बाद में आचार्यश्री ने दीक्षार्थी का नामकरण मुनि मुमुक्षु सागर किया। दीक्षा लेने मुनि मुमुक्षुसागर महाराज को पिच्छिका भेंट करने का सौभाग्य हेमन्त कुमार, दीपिका पंचैरी धरियावद को प्राप्त हुआ। वहीं नवीन शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य सुशीला , शांता पाटनी आरके मार्बल परिवार को प्राप्त हुआ। कमंडल देने का सौभाग्य विजयकुमार, संदीपकुमार डगरिया परिवार उदयपुर वालों को प्राप्त हुआ। जाप की माला देने का सौभाग्य ईश्वरलाल व नरेन्द्र कुमार पचौरी धरियावद को प्राप्त हुआ। कार्यक्रम के दौरान उपाध्यक्ष दिलीप कासलीवाल, कोषाध्यक्ष चेतन प्रकाश पांडया, उपमंत्री दिनेश पाटनी, निर्मल पांड्या, विमल पाटनी, मुकेश वेद, प्रवीण सोनी, विजय बाकलीवाल, सुभाष चौधरी सहित धरियावद, अजमेर ,नसीराबाद ,पारसोला, भिंडर ,उदयपुर ,इंदौर सहित भारतवर्ष के हजारों लोग उपस्थित थे।
जैन समाज के अनेक लोग मौजूद थे।
धर्म रूपी मार्ग का अनुसरण कर परमात्मा बनाने का प्रयास करें
आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ने कहा कि दीक्षा मानव जीवन में सच्चे सुख की पहली सीढ़ी है। सम्यक दर्शन ,ज्ञान, चरित्र रत्न त्रय धर्म से सुख मिलता है। सम्यक दर्शन से सुख प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि एक भव्य आत्मा गुरु चरण को प्राप्त कर गुरु जैसे स्वरूप को प्राप्त कर सकती है। संस्कार जीवन में भव्यता प्रदान करते हैं, संयम की बाधाओं को सहन कर करके आदेश्वरजी जीवन को सार्थक करेंगे। संसार दुख मय है भोले प्राणी सुख की खोज संसार में करते हैं यही अज्ञानता है । उन्होंने कहा कि सच्चा सुख सास्वत सुख है जहां कभी दुख नहीं रहता है वह सिद्ध अवस्था होती है। उसका संयम दीक्षा एक मार्ग है इस मार्ग पर चलकर सिद्ध अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं। संसार का प्राणी अपनी आत्मा को भूलकर दुख का पात्र है अनादिकाल से संसार में भटक रहा है भयानक वन रूपी संसार में भटक रहा है। आदेश्वरजी इन्हीं बातों पर विचार कर दीक्षा ले रहे हैं। संसार में सुखी रहने के कुछ पद स्थान है जहां सुख प्राप्त हो सकता है ,दीक्षा वह पद है जहां से सुख मिलता है। दीक्षा योगियों की जननी है जैसे माता जन्म देती है वैसे ही दीक्षा योगी को जन्म देती है इससे लक्ष्य की प्राप्ति होती है। आचार्य श्री ने सरल उदाहरण से बताया कि एक कृषक खेती में कठोर भूमि पर हल चलाकर उसे कोमल बनाकर बीजारोपण करता है और उसे उसे फसल रूपी फल प्राप्त होता है इसी प्रकार है भव्य जीवो आपकी आत्मा भूमि कठोर है इसे नरम करने के लिए दीक्षा रूप धर्म से कोमल बनाया जाना चाहिए और संयम तपस्या के बीज डालकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं । सभी जीव अनादिकाल से संसार में भ्रमण कर थक जाते हैं थकने पर वह विश्राम स्थल अपने घर पर विश्राम करते हैं दीक्षा भी अनुपम आराम स्थली रूपी घर है जिससे वास्तविक घर सिद्धालय की प्राप्ति होती है ।आचार्य श्री शिव सागर जी कहते थे कि मनुष्य को घर से खड़े-खड़े निकलना चाहिए आडे होकर नहीं निकलना चाहिए इसका आशय यही है श्रावक मानव की मृत्यु होने पर उसे लेटा कर मृत्यु सैया पर बाहर ले जाते हैं, किंतु जो व्यक्ति दीक्षा लेते हैं वह खड़े-खड़े जाकर दीक्षा लेते हैं। आज आदेश्वर जी ने मोक्ष मार्ग पर अपने कदम बढ़ाए हैं सभी को तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित धर्म रूपी मार्ग का अनुसरण कर आत्मा को परमात्मा बनाने का पुरुषार्थ करना चाहिए। कार्यक्रम का सुंदर प्रभावी संचालन बसंत वैद ने किया
