India: Courts में 4 करोड़ से ज्यादा मुकदमें पेंडिंग, जज सिर्फ 20 हजार

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जयपुर। भारत की अदालतों में किस कदर मुकदमों का अंबार लगा है, इसका अंदाजा नेशनल ज्यूडिशल डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) के आंकड़ों से पता चलता है। देश की निचली अदालतों में इस समय 4 करोड़ से ज्यादा मामले पेंडिंग हैं। इसमें 63 लाख मामले इसलिए लंबित हैं क्योंकि वकील ही उपलब्ध नहीं हैं। इनमें कम से कम 78% मामले आपराधिक (क्रिमिनल) हैं और बाकी दीवानी (सिविल) हैं। वकील के न होने के चलते सबसे ज्यादा लंबित मामलों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश इसमें पहले नंबर पर है। वहीं 63 लाख मामलों में 49 लाख से अधिक (77.7%) तो दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, यूपी और बिहार में हैं।
हाल ही में जारी हुई इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 में बताया गया है कि भारत की जेलों में बंद 77.10 प्रतिशत बंदी विचाराधीन हैं, मतलब ये सभी बंदी न्याय की आस में बंद हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जेलों में बंद केवल 22 प्रतिशत लोग ही सजायाफ्ता मुजरिम हैं।

देश के कानून मंत्री किरण रिजिजू ने 31 दिसंबर 2022 को कहा था कि देश की अदालतों में करीब 5 करोड़ केस लंबित हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाली संस्था सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट इसके कई पहलुओं की पड़ताल करती है। उन्होंने इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 जारी की है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साल 2010 के मुकाबले 2021 तक विचाराधीन बंदियों की संख्या 2.4 लाख से बढ़कर 4.3 लाख पहुंच चुकी है, यानी करीब दोगुनी हुई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में जल्दी इंसाफ देने के मामले में दक्षिण भारत सबसे आगे है। दक्षिण के राज्यों में भी कर्नाटक ऐसा राज्य है, जहां के लोगों को बाकी राज्यों के मुकाबले जल्दी इंसाफ मिलता है। रिपोर्ट के मुताबिक समय पर इंसाफ देने के मामलें में कर्नाटक के बाद तमिलनाडु, तेलंगाना, गुजरात, आंध्र प्रदेश और केरल हैं। इस लिस्ट में उत्तरप्रदेश रेंकिंग में सबसे निचले पायदान पर है। इसका सीधा से मतलब है कि यूपी के लोगों को न्याय पाने के लिए अधिक समय इंतजार करना पड़ रहा है।

राज्यों के हाईकोर्ट में 30 फीसदी से ज्यादा पद खाली

अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि आखिर न्याय पाने के लिए इतना इंतजार क्यों करना पड़ता है तो इसका जवाब भी इस रिपोर्ट में दिया गया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत की 140 करोड़ की आबादी के लिए मात्र 20,076 जज हैं। इनमें से भी 22 फीसदी पद तो खाली ही हैं। देशभर के राज्यों के हाईकोर्ट में 30 फीसदी से ज्यादा पद खाली हैं। इतना ही नहीं दिसंबर 2022 तक भारत में हर 10 लाख आबादी पर 19 जज थे और 4.8 करोड़ मामले पेंडिंग थे। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय जेलों में क्षमता से 130 फीसदी ज्यादा कैदी भरे हुए हैं। 77 फीसदी से ज्यादा कैदी जांच या मुकदमे के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं इसका सीधा मतलब यह है कि भारत की जेलों में 77 फीसदी कैदी न्याय की आस में कैद है।

दस लाख लोगों पर मात्र 19 जज

विधि आयोग ने वर्ष 1987 में प्रति 10 लाख लोगों पर कम से कम 50 जजों की जरूरत बताई थी। बावजूद इसके वर्तमान में अनुपात 10 लाख लोगों पर 19 जज का है। नतीजा लंबित मुकदमों का बढ़ता बोझ, जो वर्तमान में 4.8 करोड़ तक पहुंच चुका है। यह चौंकाने वाले तथ्य इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) 2022 में सामने आए हैं। इसमें लोगों को न्याय देने के आधार पर राज्यवार रैंकिंग भी दी गई है। रिपोर्ट कहती है कि एक करोड़ से अधिक आबादी वाले 18 राज्यों में कर्नाटक इस मामले में शीर्ष पर है, तो उत्तर प्रदेश सबसे नीचे। खास बात यह है कि इस रैंकिंग में शीर्ष पांच राज्यों में चार राज्य दक्षिण भारत से हैं।

न्यायपालिका पर खर्च में दिल्ली आगे

दिल्ली व चंडीगढ़ के अलावा किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश ने अपने सालाना खर्च का एक प्रतिशत से ज्यादा न्यायपालिका पर खर्च नहीं किया। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के अनुसार देश में 20,076 जज हैं और 22 प्रतिशत आवंटित पद रिक्त हैं। उच्च न्यायालयों में ही 30 प्रतिशत पद खाली हैं। यानी, हर 71,224 नागरिकों पर सहायक अदालतों में 1 और 17,65,760 नागरिकों पर उच्च न्यायालयों में एक जज है। वहीं, 25 राज्य मानवाधिकार आयोगों में मार्च 2021 तक 33,312 केस लंबित थे, यहां भी 44% पद खाली हैं।

4 में से 1 केस 5 साल से ज्यादा समय से लंबित

28 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च न्यायालयों में हर चार में से एक केस पांच साल से अधिक समय से चल रहा है। 11 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की जिला अदालतों में भी यही हाल है। कम बजट की वजह से न्याय प्रणाली प्रभावित हो रही है। रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा कि पुलिस में महिला अधिकारियों की कमी नजर आ रही है। विधि सहायता सुधरी है, लेकिन अब भी बड़ी संख्या में लोगों को बेहतर नि:शुल्क सहायता की जरूरत है।

वंचित वर्ग काे उचित प्रतिनिधित्व सिर्फ कर्नाटक में

कर्नाटक में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग का पुलिस अधिकारियों व स्टाफ में उचित प्रतिनिधित्व है। गुजरात व छत्तीसगढ़ में एससी, अरुणाचल प्रदेश, तेलंगाना व उत्तराखंड में एसटी और केरल, सिक्किम, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना व तमिलनाडु में ओबीसी वर्ग का पुलिस में तय प्रतिनिधित्व है। किसी भी राज्य की सहायक व जिला अदालतों में तीनों वर्गों का निर्धारित कोटा पूरा नहीं है।

पुलिस व कानूनी सहायता में यूपी आखिरी पायदान पर

पुलिस, जेल, न्यायपालिका और कानूनी सहायता में राज्यों के प्रदर्शन पर आधारित रैंकिंग में यूपी को 10 में से 3.78 अंक मिले। बीते दो साल की तरह यूपी इस बार भी आखिरी 18वें स्थान पर रहा। पंजाब 5.10 अंक के साथ 12वें, हरियाणा 4.79 अंक के साथ 13वें, उत्तराखंड 14वें स्थान पर।
1 करोड़ से कम आबादी वाले राज्यों में हिमाचल छठे स्थान पर रहा।

देश के कई हाईकोर्ट में एक भी महिला जज नहीं

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 में देश की अदालतों में महिला जजों को लेकर एक चौंकाने वाला आंकड़ा जारी किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक बिहार, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय और उत्तराखंड ऐसे राज्य हैं, जहां के हाई कोर्ट में एक भी महिला जज नहीं हैं. हालांकि इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि हाई कोर्ट की तुलना में जिला अदालत स्तर पर अधिक महिला न्यायाधीश हैं।

देश के हाईकोर्टों में महिलाएं

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 और 2022 के बीच देश के उच्च न्यायालयों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में 2 फीसदी से थोड़ी कम वृद्धि देखी गई है। वहीं तेलंगाना में 7.1 से 27.3 फीसदी की वृद्धि हुई है, हालांकि कुछ राज्यों में उच्च न्यायालयों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व गिर गया है, जैसे कि आंध्र प्रदेश में 19 से 6.7 फीसदी हो गया। वहीं छत्तीसगढ़ में 14.3 से 7.1 फीसदी की गिरावट आई है। राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की संख्या जिला स्तर पर न्यायाधीशों की कुल संख्या का 35 फीसदी है, लेकिन राज्यों में यह समान नहीं है. छोटे राज्यों में 70 फीसदी के साथ गोवा सबसे ऊपर है। इसके बाद मेघालय (63 फीसदी) और नागालैंड (63 फीसदी) का स्थान है।
रिपोर्ट के मुताबिक 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों में गुजरात (19.5 फीसदी) में सबसे कम और तेलंगाना (52.8 फीसदी) में महिला न्यायाधीशों की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। अन्य बड़े राज्यों मसलन झारखंड और बिहार में, महिला न्यायाधीशों की संख्या क्रमशः सभी न्यायाधीशों का 23 फीसदी और 24 फीसदी थी।

सुप्रीम कोर्ट में महिलाएं

वहीं जब उच्चतम स्तर पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात आती है तो देश की शीर्ष अदालत की स्थिति भी अच्छी नहीं दिखती है। भले ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय में 3 महिला न्यायाधीश हैं, लेकिन इसकी स्थापना के बाद से सर्वोच्च न्यायालय में केवल 11 महिला न्यायाधीश नियुक्त हुईं, जबकि भारत में कोई महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं बनीं।
उच्च न्यायालयों में भी 680 न्यायाधीशों में से सिर्फ 83 महिलाएं हैं। कानून के जानकारों का मानना है कि उच्च न्यायपालिका में महिलाओं का यह खराब प्रतिनिधित्व समाज में पितृसत्ता, महिला आरक्षण का नहीं होना, मुकदमेबाजी में महिलाओं की कमी और न्यायिक बुनियादी ढांचे में कमी के कारण हैं।

इन मानदंडों पर तैयार हुई रिपोर्ट

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 को टाटा ट्रस्ट्स की तरफ से प्रस्तुत किया गया है। यह रिपोर्ट दक्ष, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव, कॉमन कॉज, सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और टीआईएसएस-प्रयास के सहयोग से तैयार की गई है। इसमें देश के सभी राज्यों की न्यायिक क्षमता का आकलन पेश किया गया है।
रिपोर्ट में दो मानदंडों को विशेष तौर पर आधार बनाया गया है। मसलन सामाजिक विविधता और उच्च तथा अधीनस्थ न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व। इसके आधार पर इस रिपोर्ट में भारत के राज्यों की न्याय प्रदान करने की व्यवस्था की क्षमता का आकलन किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जहां देश भर के उच्च न्यायालयों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पहले के मुकाबले थोड़ा बढ़ा है, वहीं कुछ राज्यों के उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों की संख्या कम हो गई है।

टाटा ट्रस्ट ने 2020 से शुरू की यह रिपोर्ट

टाटा ट्रस्ट द्वारा 2020 से शुरू की गई यह रिपोर्ट भारत सरकार के आंकड़ों पर बनती है। इससे राज्यों के हालात व जरूरतों को समझा जा सकता है। रिपोर्ट विभिन्न संगठनों दक्ष, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव, कॉमन कॉज, सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और टीआईएसएस द्वारा तैयार की गई।

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