मुनि पूज्य सागर की डायरी से

भीलूड़ा.
मन, वचन और काय एक हों
अन्तर्मुखी की मौन साधना का 39वां दिन
रविवार, 12 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा
मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मौन साधना का 39वां दिन। मन, वचन और काय यह जब अलग-अलग काम करते हैं तो इंसान को भ्रमित करते हैं। ऐसा इंसान परिवार, समाज आदि के बीच अपना विश्वास और अस्तित्व समाप्त करता चला जाता है और खुद भी क्या सोचता है क्या बोलता है और क्या करता है उसका भी उसे पता नहीं चलता है। जब पता चलता है तब तक उस पर विश्वास करने वाले इंसानों की संख्या धीरे-धीरे कम होती चली जाती है। विश्वास चले जाने के बाद वह कितना भी अच्छा चिंतन, मार्गदर्शन और कार्य क्यों ना कर ले उस पर किसी को विश्वास नही होता। ऐसा इंसान समझ ही नहीं पाता कि क्या सही है और क्या गलत।
ऐसे इंसान की प्रतिभा भी उभर नहीं पाती है क्योंकि मन, वचन और काय के अलग. अलग आचरण के कारण उसे कोई अपना मित्र, सलाहकार नहीं बनाता है और न ही उसकी प्रतिभा पर विश्वास करता है। इंसान सोचता है कि पता नहीं इसका क्या मूड हो जाए। यह बदल गया तो मेरा नाम खराब होगा। मैं तो उस पर विश्वासकर उसे कोई काम या अवसर नहीं दे सकता हूं। जब यह चर्चा धीरे-धीरे परिवार, समाज आदि में फैलती है तो उसे अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन का अवसर कहने पर भी नहीं मिलता है। ऐसी स्थिति में इंसान अंदर ही अंदर अपने आपसे घृणा करने लगता है और सोचने लगता है कि मुझे अब जीने से कोई लाभ ही नहीं है। इससे तो अच्छा है कि मर जाऊँ। यह जीना भी कोई जीना है और जब यह चरम पर पहुंच जाता है तो इंसान अपने आप का नाश कर लेता है।