नई दिल्ली। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हो रहे क्लाइमेट चेंजेज के कारण वर्ष 2050 तक वैज्ञानिकों ने बेंगलुरू, मुंबई, सूरत, चेन्नई और कोलकाता आिद शहरों के समुद्र में डूब जाने की आशंका जताई है। ऐसा कार्बन उत्सर्जन के साथ समुद्र के बढ़ते जल स्तर की वजह से होगा। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 3.1 करोड़ लोग तटीय क्षेत्रों में रहते हैं और हर साल बाढ़ के जोखिम का सामना करते हैं। साल 2050 तक यह संख्या बढ़ कर 3.5 करोड़ और सदी के अंत तक 5.1 करोड़ पहुंच सकती है। फिलहाल, दुनिया भर में 25 करोड़ लोग हर साल आने वाली तटीय बाढ़ के जोखिम वाले क्षेत्रों में रहते हैं। नए अनुमानों के मुताबिक पिछले अनुमानों के मुकाबले दुनियाभर में तीन गुना समुद्र तट समुद्र के पानी की चपेट में है।
सदी के अंत तक 2 मीटर बढ़ जाएगा समुद्र का जलस्तर
औद्योगिक क्रांति (वर्ष 1850) से पहले की तुलना में 20वीं शताब्दी में दुनियाभर में समुद्र का स्तर 11 से 16 सेंटीमीटर तक बढ़ गया है। अगर दुनियाभर में हर साल होने वाले कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौती भी कर दी जाए तो भी साल 2050 तक समुद्र का जल स्तर आधा मीटर तक बढ़ जाएगा। सबसे विपरीत परिस्थितियों में समुद्र का स्तर इस सदी के अंत तक 2 मीटर तक बढ़ जाएगा। निचले इलाकों में रहने वाले 70% लोग आठ एशियाई देशों से हैं, और ये देश हैं- चीन, भारत, बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और जापान।
सबसे कम प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन भारत में
कार्बन उत्सर्जन की वजह से दुनियाभर का तापमान बढ़ रहा है, जो ध्रुवों पर बर्फ को पिघला रहा है। इससे दुनियाभर में समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है। वर्तमान में चीन कार्बन का सबसे बड़ा उत्सर्जक है। इसके बाद अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और फिर भारत का नम्बर है। प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को देखा जाए तो कनाडा का स्थान सबसे ऊपर है। इसके बाद अमेरिका, रूस और जापान का स्थान है। दुनिया में भारत सबसे कम प्रति व्यक्ति कार्बन का उत्सर्जन करता है। जिस तेजी से दुनिया का तापमान बढ़ रहा है, उसे देखते हुए भारत में बाढ़, बे-मौसम बरसात और तूफानों में बढ़ोतरी हो सकती है।