शिक्षा के माध्यम से विकसित हुआ है मनुष्य

Spread the love


राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन

जयपुर.
राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय बांदरसिंदरी (मदनगंज-किशनगढ़) में विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला के तहत हाल ही में प्राचीन भारतीय ज्ञान और समकालीन उच्च शिक्षण संस्थानों की लर्निंग स्पेसिस के लिए इसकी प्रासंगिकता विषय पर विशिष्ट व्याख्यान डॉ. श्रीनिधि के पार्थसारथी प्राचार्य आईएएसएमएस बेंगलुरु द्वारा ऑनलाइन प्रस्तुत किया गया।
इस विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन आजादी के 75 साल के जश्न के रूप में मनाए जा रहे अमृत महोत्सव के अंतर्गत किया जा रहा है और इस शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला का विषय भारतीय ज्ञान प्रणाली रखा गया हैं। राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा शुरू की गयी विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला का उद्देश्य अकादमिक व्यवसाय कला और संस्कृति और नागरिक समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को अपने विचारों को साझा करने के लिए आमंत्रित करना है।
व्याख्यान के दौरान डॉ श्रीनिधि के पार्थसारथी ने साझा किया कि सृष्टि के निर्माण के समय से ही मनुष्य शिक्षा के माध्यम से विकसित हुआ है। शिक्षा प्राप्त करने का स्थान एक शिक्षार्थी की सीखने की प्रक्रिया में सहायता करने में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा के स्थान की गुणवत्ता बहुत महत्वपूर्ण है यदि उन्हें जिम्मेदार, भावुक और समर्पित कॉर्पोरेट नागरिक, शिक्षाविद, उद्यमी आदि बनाना है। अनुसंधान ये कहता हैं कि प्राचीन भारतीय ज्ञान में निहित आध्यात्मिकता को कार्य वातावरण पर लागू करते ही कई समकालीन चुनौतियों के लिए स्थायी समाधान मिल गए।
डॉ. पार्थसारथी ने शिक्षार्थी विषय परस्पर क्रिया, शिक्षार्थी प्रशिक्षक परस्पर क्रिया और शिक्षार्थी-शिक्षार्थी परस्पर क्रिया की गुणवत्ता में सुधार पर प्रकाश डाला जो दो परिभाषित विशेषताएं एकीकरण और व्यापकता के माध्यम से प्राचीन भारतीय ज्ञान में निहित आध्यात्मिकता को लागू करके सीखने के स्थानों में लगातार होता है। व्याख्यान के पश्चात एक प्रश्नोत्तर सत्र का आयोजन किया गया जिसमें डॉ. श्रीनिधि के पार्थसारथी ने शिक्षकों एवं अतिथियों द्वारा पूछे गए विभिन्न सवालों के जवाब दिये।
उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा की प्रक्रिया में बहुत कुछ सुनना, चिंतन करना अभ्यास करना और फिर अनुभव करना शामिल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के अनुसार 21वीं सदी की शिक्षा सार्थक होनी चाहिए जहां व्यक्ति और समुदाय मिलकर अपना पसंदीदा भविष्य बना पाये। शिक्षा प्राप्त करना खुशी के जश्न का अनुभव करने जैसा होना चाहिए।
डॉ. श्रीनिधि के पार्थसारथी एक आध्यात्मिक कोच, प्रेरक वक्ता, शैक्षणिक प्रशासक, सीखने के लिए सूत्रधार और शोधकर्ता हैं। उन्होंने 2000 से अधिक आमंत्रित व्याख्यान दिए हैं और 800 से अधिक टीवी शो में प्रस्तुत हुए हैं। वर्तमान में वे इंडियन एकेडमी गु्रप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर हैं और इंडियन एकेडमी डिग्री कॉलेज. बेंगलुरु के प्राचार्य भी हैं। डॉ. पार्थसारथी एस.व्यासा विश्वविद्यालय से डीलिट और आध्यात्मिकता और प्रबंधन के क्षेत्र में योगदान के लिए 2019 में प्रतिष्ठित बामा सुब्रमण्यम पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। अध्यात्म में योगदान के लिए उन्हें वेद मार्तण्ड की उपाधि से सम्मानित किया गया है। उन्होंने आध्यात्मिक पत्रिकाओं, समाचार पत्रों और शोध पत्रिकाओं में 100 से अधिक लेख प्रकाशित किए हैं। डॉ. पार्थसारथी टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट द भगवत गीता वे और गीता@वर्कस्पेस के लेखक हैं।
विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला के प्रारम्भ में राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति प्रो. नीरज गुप्ता ने विशिष्ट अतिथि का स्वागत किया। डॉ संजीब पात्रा एसोसिएट प्रोफेसर योगा विभाग ने अतिथि का परिचय दिया। डॉ. चंडी चरण मंडल प्रोफेसर जैव प्रोद्योगिकी विभाग ने धन्यवाद ज्ञपित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. चिन्मय मलिक सहायक प्रोफेसर वायुमंडलीय विज्ञान विभाग द्वारा किया गया। व्याख्यान के लिए छात्र, शिक्षक कर्मचारी और अतिथि उपस्थित रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version