लोकहित और सामाजित संवेदना को उजागर करता है साहित्य : कच्छावा

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आखर में राजस्थानी भाषा की 3 पुस्तकों का लोकार्पण

जयपुर. आखर में सोमवार शाम को राजस्थानी भाषा की 3 पुस्तकों का लोकार्पण और उनकी साहित्यिक समीक्षा का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें हाड़ौती अंचल से 3 सद्य प्रकाशित किताबें शामिल की गई। स्टेशन रोड स्थित होटल आईटीसी राजपूताना में हुए इस आयोजन के मुख्य अतिथि राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण व्यास रहे। मुख्य अतिथि व्यास ने राजस्थानी भाषा और साहित्य को अधिक से अधिक प्रोत्साहन देने की आवश्यकता पर जोर दिया।

राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के सदस्य, कवि-समीक्षक घनश्याम नाथ कच्छावा ने विजय जोशी की पुस्तक राजस्थानी गद्य विविधा ‘भावाँ की रमझोळ’ पर कहा कि इस पुस्तक में कथेत्तर साहित्य की विविध विधाओं आलेख, शोध-समीक्षा, बाल-कथा, डायरी, रिपोर्ट, रेखाचित्र, संस्मरण आदि रचनाओं का समावेश किया गया है। इन रचनाओं की यह विशेषता है कि ये लोकहित और सामाजिक संवेदना को उजागर करते हुए सामाजिक संस्कार तथा जीवन मूल्यों को संवर्द्धित करती हैं।

युवा कवि किशन ’प्रणय’ के राजस्थानी उपन्यास ’अबखाया का रींगटां‘ पर युवा समीक्षक डॉ. नंदकिशोर महावर ने कहा कि वर्तमान युग-सत्य का दस्तावेजीकरण है ’अबखाया का रींगटा’ जिसे हम आत्मकथात्मक उपन्यास कह सकते हैं। जिसमें वर्तमान युवा के सुनहले सपने, संघर्ष और वर्तमान दशा का यथार्थ चित्रण किया है। इसमें लेखक फूल में खुशबू की तरह कर्ता और भोक्ता दोनों की भूमिका में है।

युवा कवि नन्दू ’राजस्थानी’ की राजस्थानी कुण्डली संग्रह ’कदै आवसी भोर‘ पर अपने समीक्षात्मक विचार व्यक्त करते हुए मीनाक्षी पारीक ने कुण्डली छंद की व्याख्या की तथा कहा कि यह संग्रह ग्राम्य संस्कृति और जीवन के कई पहलुओं को सामने लाता है वहीं लोक जीवन की संवेदना के साथ प्रकृति, प्रेम, अध्यात्म जैसे विषयों को उभारता है।

अंत में ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक प्रमोद शर्मा ने सभी अतिथियों और प्रभा खेतान फाउंडेशन का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आखर श्रृंखला के अंतर्गत राजस्थानी साहित्य पर चर्चा की जाती है और साहित्यकारों को राजस्थानी भाषा में सृजन के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

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