
किसानों की आय बढ़ाने में सहायक
जयपुर.
भारत लेमन ग्रास के निर्यात में विश्व में सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। कुछ साल पहले तक इसी लेमनग्रास का भारत आयातक था लेकिन आज भारत दुनिया के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक बन गया है। औषधीय पौधों में शुमार नींबू घास या लेमन ग्रास की खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। सेहत के लिए गुणकारी लेमन ग्रास कई दवाइयों को बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। देश के कई राज्य खास तौर पर झारखंड के कई जिलों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है।
विदेश में भी लेमन ग्रास की मांग भी काफी ज्यादा है। इसकी मांग लेमन ग्रास की पत्तियों और इससे निकलने वाले तेल के कारण है। बाजार में लेमन ग्रास तेल की कीमत 1500 से दो हजार रुपये प्रति लीटर है। एक्सपर्ट के मुताबिक पांच क्विंटल लेमन ग्राम से 75 से 80 किलोग्राम तेल निकलता है। मात्र चार महीने में फसल तैयार हो जाती है। कोरोना काल में सीएसआईआर, सीईसीआरआई ने प्रयोगशाला ने सैनिटाइजर और हैंडवाश भी बनाया जिसमें सुगंध के लिए सुगंध के लिए लेमनग्रास के तेल का प्रयोग किया।
इस निर्यात में किसानों के साथ अरोमा मिशन का खासा योगदान है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद यानि देशभर में अरोमा मिशन के तहत सुगंध देने वाले फसलों की खेती को बढ़ावा देती है। इसी के तहत कई राज्यों में लेमन ग्रास की खेती एक नया विकल्प बन कर उभरा है। इस बारे में निदेशक डॉ. प्रबोध कुमार त्रिवेदी के अनुसार हर साल लगभग 1000 टन लेमन ग्रास का उत्पादन होता है और इसमें से लगभग 400 टन तक निर्यात किया जाता है।
लेमन ग्रास को सेहत के लिए किसी वरदान की तरह माना जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो आज कई तरह की दवाइयों में इसका उपयोग किया जा रहा है। इसमें एंटी.बैक्टीरियलए एंटी.इन्फ्लेमेटरी और एंटी.फंगल जैसे गुण पाए जाते हैं। दवाइयों के अलावा कई तरह की अन्य वस्तुओं जैसे कॉस्मेटिक और डिटर्जेंट आदि बनाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
केंद्र सरकार विदर्भ, बुंदेलखंड, गुजरात, मराठवाड़ा, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, ओडिशा और उत्तराखंड जैसे इलाके पर लेमन ग्रास की खेती को ज्यादा बढ़ावा दे रही है। ये ऐसे जगह हैं जहां किसान हर साल असमय मौसम का सामना करते हैं। लेमन ग्रास की खेती अधिकतर केरल, महाराष्ट्र, यूपी, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, झारखंड और कई उत्तर पूर्वी राज्यों सहित पश्चिमी भागों में की जा रही है। जानवरों से नुकसान का कोई खतरा नहीं है क्योंकि पत्तियों में मौजूद सुगंधित तेल इसे जंगली या घरेलू जानवरों के लिए अनुपयुक्त बना देते हैं।
अरोमा मिशन देश भर से स्टार्ट अप्स और कृषकों को आकर्षित कर रहा है। इसके पहले चरण के दौरान सीएसआईआर ने 6000 हेक्टेयर भूमि पर खेती में मदद की और देश भर में 46 आकांक्षी जिलों को शामिल किया। इसके लिए 44000 से अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया गया है और किसानों ने कई करोड़ का राजस्व अर्जित किया है। अरोमा मिशन के दूसरे चरण में देश भर में 75000 से अधिक कृषक परिवारों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से 45000 से अधिक कुशल लोगों को शामिल करने का प्रस्ताव है।