
जर्मन भाषा प्रशिक्षक देवकरण सैनी से बातचीत भाग – 1
जयपुर। पढ़ते पढ़ते और काम करते एक विदेशी भाषा सीखकर उसमे महारत हासिल करना और स्वयं का एक प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट खड़ा कर लेना जिसकी पूरी दुनिया में पहचान हो, यह कर दिखाया है छोटे से कस्बे नवलगढ़ से आने वाले देवकरण सैनी ने। सैनी ने पत्रकारिता करते करते जर्मन भाषा सीखना शुरू की फिर उसके बाद मुड़कर नहीं देखा। जर्मन भाषा के दम पर ही पत्रकारिता के बाद नामी जर्मन कंपनियों में काम किया और स्वयं का संस्थान बनाने की लगन ने ही उन्हें जर्मन भाषा का विशेषज्ञ बना दिया है। वर्तमान में वह जयपुर में ई लैंग्वेज स्टूडियो नाम से जर्मन भाषा सिखाने के संस्थान का संचालन कर रहे हैं और भविष्य में इसका विस्तार करने की भी योजना बना रहे है। हमने उनके परिश्रम, संघर्ष और आत्मनिर्भर बनकर दूसरों का भी कॅरिअर संवारने के बारे में बातचीत की और जाना कि कैसे एक युवा चाहे तो न केवल खुद को बदल सकता है बल्कि हजारों युवाओं का भी जीवन संवार सकता है।
प्रश्न: आपने एक कस्बे से निकल कर एक विदेशी भाषा सिखाने का संस्थान खड़ा कर लिया। यह कैसे संभव हुआ ?
उत्तर: देखिए छोटे से कस्बे नवलगढ़ से निकल कर जर्मन भाषा सिखाने का संस्थान खड़ा करने की शुरू में प्लानिंग नहीं थी। लेकिन जर्मन भाषा से पहले मैं मीडिया से जुड़ा हुआ था इस कारण बहुत सारे लोगों से मिलने का मौका मिला। उसी सिलसिले में मैं झुंझुनूं में एक बार जर्मन जर्नलिस्ट पीटर-मे से मिला था। उनके साथ मैंने 15 दिन मीडिया की ट्रेनिंग की थी। उन्होंने जाने से पहले मेरी सीखने की क्षमता को देखते हुए ऑफर किया था कि अगर तुम जर्मन सीख लो तो हमारा जर्मनी में मीडिया का (आईआईजे ब्रांडनबुर्ग ) संस्थान है। यह मीडिया का इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट है हम आपको टेªनिंग देने के लिए बुलाएंगे। एक तरह से यह स्कॉलरशिप का ऑफर था तब पहली बार मेरे मन में जर्मन भाषा सीखने की बात आई। उसके बाद अलग-अलग मीडिया हाउसेज में काम करने और ईटीवी में काम करने के बाद में मुझे वो बात फिर में दिमाग में आई और मैंने सोचा कि मुझे जर्मन सीखकर आईआईजेबी में प्रशिक्षण के लिए जाना चाहिए। लेकिन जब मैं जर्मन भाषा सीखकर आया और 2008 में उनसे संपर्क किया तो उस समय यूरोप और कई देशों में आर्थिक मंदी आई हुई थी तब वहां जाना संभव नहीं हो सका। इसके बाद अलग-अलग मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करना हुआ जब मैं जयपुर आया और डॉयचे बैंक में काम करते समय कुछ युवाओं को पढ़ाने से मुझे प्रशंसा मिली तो ऐसा लगा कि मेरे अंदर एक टीचर बैठा हुआ है और मेहनत की जाए तो जर्मन भाषा प्रशिक्षण भी कॅरिअर का एक फील्ड हो सकता है।
प्रश्न: आपने कहां तक अध्ययन किया और कहां कहां से किया ?
उत्तर: मैंने बीए करने के बाद मीडिया में काम करने की इच्छा होने के कारण बीजेएमसी और एमजेएमसी किया और लगभग 5 साल तक मीडिया के विभिन्न संस्थानों में काम किया। इसके साथ ही मैं लगातार जर्मन भाषा की पढ़ाई भी करता रहा। इस दौरान मैंने विभिन्न सर्टिफिकेट और डिप्लोमा जैसे की पीजी डिप्लोमा और टीचिंग डिप्लोमा इन जर्मन आदि किए। फिर जर्मन भाषा में एम.ए भी किया। वर्तमान में मैं जर्मन भाषा में पीएच.डी. कर रहा हूं।
प्रश्न: पढ़ते समय कॅरिअर को लेकर आपके मन में क्या धारणाएं और क्या बात थी ?
उत्तर: जब मैं 12 वीं कक्षा में था तब मैंने मेरे ताऊ जी से योग सीखना और योगाभ्यास करना शुरू किया। सोचा था कि संस्कृति और स्वास्थ्य को जोड़कर यदि करिअर बन जाए तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। लेकिन यह बात लंबी नहीं चली हालांकि मैं अभी भी नियमित योग करता हूं। इसके बाद मैंने समाज सेवा और कुछ अच्छा करने के लक्ष्य के साथ पत्रकारिता में प्रवेश किया। इसके लिए पढ़ाई भी की। बाद में अंतरराष्ट्रीय मामलों में रूचि रखने, समझ होने और जर्मन भाषा की जानकारी होने के कारण मैंने कॉरपोरेट सेक्टर में प्रवेश किया। कॉरपोरेट सेक्टर की नौकरी में 5 दिन काम करना और 2 दिन की छुट्टी होना, इस सबके दौरान मैं कब शिक्षक बन गया मुझे पता ही नहीं चला। युवाओं को जर्मन पढ़ाते पढ़ाते मुझे केन्द्रीय विद्यालय और एमिटी यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का मौका मिला और फिर मैं शिक्षक ही बन गया। 2010 में मैंने ई लैंग्वेज स्टूडियो की स्थापना की और धीरे धीरे यह इंस्टीट्यूट बढ़ता चला गया।
प्रश्न: आपने कॉरपोरेट सेक्टर में कितने साल तक काम किया।
उत्तर: कॉरपोरेट सेक्टर में मैंने लगभग 5 वर्ष तक काम किया है क्योंकि मैंने पुणे में जर्मन भाषा की पढ़ाई की थी और सबसे पहले मैंने हैदराबाद में एक जर्मन मैग्जीन के लिए काम किया फिर बेंगलुरू में एक्सा कंपनी को ज्वाइन किया। इसके बाद जर्मनी की बड़ी कंपनी सीमेंस के लिए कोलकाता और फिर जयपुर में डॉयचे बैंक के लिए काम किया। जर्मन सिखाने के क्षेत्र में आने के बाद 2011 से मैंने कई कॉर्पोरेट सेक्टर की कंपनियों में जर्मन भाषा सिखाने की ट्रेनिंग भी दी है।
प्रश्न: क्या कॉरपोरेट सेक्टर की नौकरी करते समय आपने तय कर लिया था कि आपको शिक्षक बनना है ?
उत्तर: शिक्षक बनने के बारे में मैंने सोचा ही नहीं था लेकिन हैदराबाद में काम करते समय और जर्मन भाषा की पढ़ाई करते समय यह बात पहली बार मन में आई। आप मेरी नौकरी और पढ़ाई की जर्नी देखोगे तो पता चलेगा कि एकदम बराबर चलती आई है। मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते समय और जर्मन भाषा सीखना लगातार साथ साथ चलता रहा। हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में प्रो. जे.वी.डी. मूर्ति का जर्मन भाषा के प्रति लगाव और उनका व्यक्तित्व देखकर लगा था कि जर्मन भाषा का शिक्षक बना जा सकता है। इसी तरह कोलकाता में नौकरी के साथ वीकेंड कोर्स पढ़ता रहा और एमिटी यूनिवर्सिटी में पढ़ाते समय डिस्टेंस एजुकेशन के माध्यम से जर्मन भाषा में एम.ए. की पढ़ाई की। इसी तरह डिप्लोमा, एडवांस डिप्लोमा और टीचिंग डिप्लोमा भी किया और अब पीएच.डी. भी काम करते करते चल रहा है।
प्रश्न: जब आपने जर्मन भाषा सिखाने के लिए ई लैंग्वेज स्टूडियो की स्थापना जयपुर में की तो शुरूआती अनुभव कैसा रहा ?
उत्तर: जब मैं जयपुर में डॉयचे बैंक में काम करता था तो वह जॉब दोपहर से शुरू होती थी और सुबह का समय मेरे पास बचता था। मेरी शुरू से ही 12 घंटे काम करते की आदत थी। इतना समय खराब नहीं किया जा सकता था इसलिए मैं स्वयं की पढ़ाई करता था और समय का सदुपयोग करने के लिए स्टूडेंट्स को पढ़ाना शुरू कर दिया था। पहले साल तो मेरे पास 8 ही स्टूडेंट थे लेकिन धीरे.धीरे स्टूडेंट बढ़ते चले गए। तब मुझे लगा कि इंस्टीट्यूट की स्थापना करनी चाहिए। उस समय मैंने यह भी तय कर लिया था कि नौकरी तब ही छोडूंगा जब इससे नौकरी के बराबर महीने की आय होने लग जाएगी। शुरू में तो ट्यूशन जैसा ही था लेकिन जैसे जैसे स्टूडेंट कॉर्पोरेट सेक्टर में आगे बढ़ते गए तब इसका मौखिक प्रचार होता चला गया।
