जानिए कितना खतरनाक है मंकीपॉक्स

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सावधानी रखने की है जरूरत


जयपुर.
पूरी दुनिया कोरोना महामारी के रफ्तार कम होने से चैन की सांस ले रही थी कि तभी मंकीपॉक्स नाम के एक वायरस ने दस्तक दे दी। यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका रीजन के कई शहरों में मंकी पॉक्स के केस सामने आए। वहीं भारत सरकार लगातार मंकीपॉक्स को लेकर अलर्ट मोड पर है। एयरपोर्ट पर दूसरे देशों से आने वाले यात्रियों पर लगातार नजर रखी जा रही है। जरूरत पडऩे पर इनके सैंपल लेकर पुणे की नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी में जांच के लिए भेजे जा रहे हैं। हालांकि अच्छी बात यह है कि देश के भीतर अभी तक मंकीपॉक्स के गिने चुने मामले ही सामने आए हैं लेकिन ऐसी स्थिति में भी लोगों को सावधान रहने की बहुत जरूरत है। मंकीपॉक्स के वायरस से हम कैसे निपट सकते हैं और अपने आपको व अपने परीचितों को कैसे सुरक्षित रख सकते हैंए इस संबंध में बता रहे हैं एम्स नई दिल्ली के डॉ. पीयूष रंजन। आइए जानते हैं उनकी राय-
सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि मंकीपॉक्स और कोरोना महामारी में समानताएं क्या हैं और अंतर क्या हैं। समानताएं ये हैं कि दोनों ही एक वायरल हैं और दोनों ही एक व्यक्ति से दूसरे में फैलते हैं। कोरोना को लेकर अब उतनी ज्यादा चिंता नहीं है क्योंकि ये अब उतना ज्यादा घातक नहीं हो पा रहा है। वहीं मंकीपॉक्स की बात करें तो यह कोरोना से थोड़ा अलग है। अभी तक जो आंकड़े आए हैं उसमें मंकीपॉक्स के सांस द्वारा फैलने की संभावना बहुत कम बताई गई है। इसलिए विश्व के अलग अलग देशों में ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि यह उतनी तेजी से नहीं फैलेगा।
वहीं नई दिल्ली के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. हरीश पेमडे बताते हैं कि मंकीपॉक्स बहुत ही पुराना वायरस संक्रमण है कोई नया नहीं है। अभी तो इसके केवल दो ही मामले केरल में पाए गए हैं। सरकार ने भी उन व्यक्तियों को आइसोलेशन में रखा है। उनकी देखभाल कर रही है ताकि संक्रमण को वहीं रोका जा सके। अभी हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी अच्छी हो गई है और उसने इतने अच्छे से सीख लिया है कि कैसे इस तरह की बीमारियों को कम किया जा सकता है इसे रोका जा सकता है। सारे अनुभवों के आधार पर इसे रोका जा रहा है। अब तक सिर्फ दो व्यक्तियों को ही ये संक्रमण हुआ है ये दोनों व्यक्ति देश के बाहर से आए थे।
ऐसी स्थिति में घबराने की बजाय सावधानी बरतने की जरूरत है। मंकीपॉक्स के वायरस को फैलने से कैसे रोका जाए इस पर एम्स नई दिल्ली के डॉ. पीयूष रंजन बताते हैं कि मंकीपॉक्स से इम्यूनिटी का कोई भी संबंध नहीं है क्योंकि मंकीपॉक्स के लिए कोई भी वैक्सीन अभी तक नहीं आई है। भारत में भी अभी तक कोई भी वैक्सीन इसके लिए अनुमोदित नहीं हुई है। फिलहालए इसकी पहचान की जा सकी है जिसमें मंकीपॉक्स से पीडि़त व्यक्ति में मूल तौर पर बुखार और शरीर में दर्द की समस्या सामने आती है और शरीर में चेचक जैसे दाने निकल जाते हैं। इन सब से मंकीपॉक्स की पहचान होती है।
यह मूल तौर पर ज्यादा युवाओं में फैल रहा है लेकिन भारत में इसके ज्यादा केस नहीं है। अभी तीन.चार केस ही हैं। इसलिए इसको लेकर ज्यादा पेनिक होने की जरूरत नहीं हैए बस जागरूक रहें। सीजनल फ्लू को लोग वायरल फीवर कहते हैं। इसमें बुखार का होना और शरीर में दर्द, गले में दर्द होना और नाक का बहना इस तरह की समस्या हो तो आप मान सकते हैं कि आपको वायरल फ्लू है। इसमें और कोरोना में ज्यादा अंतर नहीं किया जा सकता है क्योंकि वो भी हो रहा है तो दोनों के लक्षण मिलते जुलते हैं। लेकिन मंकीपॉक्सए कोरोना और वायरल फीवर में अंतर यह किया जा सकता है कि मंकीपॉक्स में शरीर में अलग अलग जगहों पर खासतौर से चेहरे परए हाथों पर पैरों पर चेचक जैसे दाने निकल जाते हैं।
मंकीपॉक्स स्मॉल पॉक्स यानि चेचक के वायरस का ही एक रूप है। अमेरिका सेंटर फॉर डिजीज के अनुसार सबसे पहले मंकीपॉक्स का मामला 1958 में आया था। यह बीमारी सबसे पहले बंदरों में देखी गई थी। बंदरों में चेचक जैसे लक्षण पाए गए थे। बाद में इंसानों के बीच में भी मंकीपॉक्स के केस सामने आए।
मंकीपॉक्स संक्रमण का इनक्यूबेशन पीरियड यानि संक्रमण होने से लक्षणों की शुरुआत तक आमतौर पर 6 से 13 दिनों का होता हैए हालांकि कुछ लोगों में यह 5 से 21 दिनों तक भी हो सकता है। अगर लक्षण के बारे में बात करें तो मंकीपॉक्स शुरुआत में खसरा चेचक और चिकन पॉक्स की तरह दिखता है।
शरीर पर चेहरे से शुरू होकर दाने या फफोला के रूप में फैलता है।
संक्रमित व्यक्ति को बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, सूजन, ठंड लगना, थकावट, निमोनिया के लक्षण और फ्लू और गंभीर कमजोरी का अनुभव हो सकता है।
लिम्फैडेनोपैथी यानि लिम्फ नोड्स की सूजन की समस्या को सबसे आम लक्षण माना जाता है।
इसके अलावा रोगी के चेहरे और हाथ पांव पर दाने हो सकते हैं।
कुछ गंभीर संक्रमितों में यह दाने आंखों के कॉर्निया को भी प्रभावित कर सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि मंकीपॉक्स वायरस से संक्रमित व्यक्ति के करीब जाने से फैलता है। मंकीपॉक्स वायरस मरीज के घाव से निकलकर आंख, नाक और मुंह के रास्ते किसी भी शख्स के शरीर में जाकर उसे भी संक्रमित कर सकता है। यह वायरस संक्रमित बंदर और या फिर इस बीमारी से संक्रमित जानवरों से भी फैल सकती है।
वहीं मंकीपॉक्स को गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार सतर्क है। किसी भी तरह के अफवाह और पैनिक से बचने के लिए हाल ही में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ गाइडलाइंस जारी की थी। इसके तहत सभी राज्यों को सर्विलांस टीम गठित करने के साथ ही गहन निगरानी के दिशा.निर्देश दिए थे। गाइडलाइन में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति में मंकीपॉक्स के लक्षण नजर आते हैंए तो सबसे पहले लैब में टेस्टिंग होगी। उसके बाद ही इस बात की पुष्टि की जाएगी कि वह व्यक्ति मंकीपॉक्स से संक्रमित है। मंकीपॉक्स के लिए डीएनए टेस्टिंग और आरटीपीसीआर मान्य होंगे। राज्य और जिलों में सामने आने वाले मामले के इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलेंस प्रोग्राम के तहत आईसीएमआर एनआईबी के पुणे स्थित लैब में जांच के लिए सैंपल भेजे जाएंगे।

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