सजल नेत्रों से किशनगढ़ ने आचार्यश्री संघ को दी विदाई

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आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ससंघ ने रविवार को मंगल विहार किया


मदनगंज-किशनगढ़। करीब सवा माह तक किशनगढ़ में जैन धर्म की गंगा बहाने के बाद वात्सल्य वारिधि आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ससंघ ने रविवार को मंगल विहार किया। सजल नेत्रों से किशनगढ़ के जैनसमाज के साथ ही अजैनियों ने भी आचार्यश्री को मंगलमय विदाई दी। आचार्यश्री ने किशनगढ़ से उदयपुर की ओर विहार किया
किशनगढ़ में हुए ऐतिहासिक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव की तरह ही उदयपुर में भी दो मंदिरों के पंचकल्याणक में सान्निध्य देने के लिए आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ससंघ ने रविवार को आरके कम्यूनिटी सेंटर से विहार किया। आचार्यश्री को विदाई देने के लिए जैन समाज के अलावा अन्य समाज के प्रबुद्धजन भी उमड़े। आचार्यश्री ने जयपुर रोड, सिटी रोड स्थित चंद्रप्रभ मंदिर के दर्शन करते हुए ,मुख्य चैराहा होते हुए मुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पहुंचे। मंदिर में भगवान के दर्शन के बाद आचार्य वर्धमान सागर महाराज व मुनि हितेन्द्र सागर महाराज ने प्रवचन दिए। बाद में आचार्यश्री ने मंगलमय आशीर्वाद देते हुए किशनगढ़ से रामनेर की ओर विहार किया। रूपनगढ़ रोड आरओबी, रामनेर रोड सहित अन्य जगहों पर जैन समाज के लोगों ने पाद प्रक्षालन व आरती कर आचार्यश्री को सजल नेत्रों से विदाई दी। आचार्यश्री का रात्रि विश्राम राजकीय माध्यमिक विद्यालय रामनेर में किया। प्रचार मंत्री गौरव पाटनी ने बताया कि आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ससंघ सोमवार सुबह रामनेर से सिराणा मंदिर के दर्शन करते हुए ऊंटड़ा में आहारचर्या करेंगे। आरके मार्बल समूह के चेयरमैन अशोक पाटनी, मुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन पंचायत अध्यक्ष विनोद पाटनी, आदिनाथ दिगम्बर जैन पंचायत अध्यक्ष प्रकाशचंद गंगवाल, मुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन पंचायत मत्री सुभाष बड़जात्या, संजय पापड़ीवाल, उपाध्यक्ष दिलीप कासलीवाल, कोषाध्यक्ष चेतन प्रकाश पाड्या, उपमंत्री दिनेश पाटनी, महेन्द्र पाटनी गुणसागर, गौरव पाटनी, नीरज अजमेरा, राजकुमार दोसी, सुरेश बगड़ा, कैलाश पाटनी, विमल बाकलीवाल, पदम गंगवाल, बंसत वैद, अशोक बोहरा, अरविन्द वैद, अंकेश गोधा, मोहित कालानाड़ा, हेमन्त छाबड़ा, पवित्र बड़जात्या, विमल पाटनी आदि मौजूद थे।

अविस्मरणीय कार्यक्रमों में दिया सान्निध्य
वात्सल्य वारिधि भक्त परिवार के गौरव पाटनी व राजेश पंचोलिया इंदौर ने बताया कि प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्यश्री शांतिसागर की मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा के पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि आचार्यश्री वर्धमान सागर ने 40 दिन तक किशनगढ़ में धर्म बरखा की। प्रवास दौरान पंच कल्याणक प्रतिष्ठा, 8 दिवसीय श्री भक्तांमर विधान, नूतन बेदी प्रतिष्ठा, आचार्यश्री धर्मसागर शिक्षण संस्थान के नवीन भवन का लोकार्पण व मुनि दीक्षा समारोह आदि अविस्मरणीय कार्यक्रमों में सान्निध्य देते हुए जैन समाज के लोगों को मंगलमयी आशीर्वाद दिया।

आचार्यश्री का किशनगढ़ से 51 वर्षों से संबंध


पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि आचार्यश्री वर्धमान सागर का मदनगंज-किशनगढ़ से 51 वर्षो से संबंध है। वर्ष 1971, 1977, 1984, 1987 ,1998, 1999 ,2014 ,2 015 के बाद पूर्णाक 9वी बार वर्ष 2023 में 8 वर्षो के बाद आचार्यश्री ने 18 जनवरी को ऐतिहासिक मंगल प्रवेश किया था। अनेक बार आचार्यश्री संघ सहित किशनगढ़ आना किसी भी नगर की तुलना में सर्वाधिक है। 1969 में दीक्षित मुनिश्री वर्धमान सागर सबसे पहले दीक्षा गुरु तृतीय पट्टाधीश आचार्यश्री धर्मसागर के साथ सन 1971 में किशनगढ़ 15 दिन से अधिक का प्रवास हुआ तब आचार्यश्री ज्ञान सागर के साथ मुनिश्री विद्यासागर भी साथ रहे। इसके बाद सन 1977 का चातुर्मास आचार्यश्री संघ के साथ किया। सन 1984 में 1008 श्रीमुनिसुब्रतनाथ भगवान के पंच कल्याणक के लिए दीक्षा गुरु आचार्य श्री धर्मसागर के साथ आए। सन 1987 में आचार्यश्री मुनि अवस्था में मुनिश्री निर्मल सागर के साथ आए थे ,तब आपने 150 प्रतिमाओं को सूरी मंत्र भी दिया था। वर्ष 1990 में आचार्य बनने के बाद सन 1998 में आपने किशनगढ़ में चातुर्मास किया था। आचार्यश्री किशनगढ़ से बस्सी गए फिर पुन 1998 में किशनगढ़ वापस आए। सन 1999 में आचार्यश्री जयपुर से किशनगढ़ संघस्थ अस्वस्थ शिष्य अपूर्व सागर को देखने के लिए किशनगढ़ आए और किशनगढ़ समाज को बगैर मांगे मन चाही मुराद पूरी हुई थी और किशनगढ़ समाज को आचार्य श्री सानिध्य में महावीर जयंती मनाने का सौभाग्य मिला था। पुनः वर्ष 1999 में आचार्यश्री अजमेर से किशनगढ़ आए और 7 दिन का शिविर भी आयोजित हुआ। सन 2014 में आचार्य पद के 25वें वर्ष के उपलक्ष्य में रजत कीर्ति महोत्सव मनाया गया। वात्सल्य वारिधि भक्त परिवार के गौरव पाटनी व राजेश पंचोलिया इंदौर ने बताया कि किशनगढ़ में चातुर्मास वर्ष 1977, वर्ष 1987 में मुनि अवस्था तथा वर्ष 1998 और वर्ष 2014 का चातुर्मास आचार्य पद पर किया था। आचार्यश्री के सान्निध्य में किशनगढ़ में वर्ष 1987 में वर्ष 2015 में शिवाजी नगर मंदिर तथा श्री शांति सागर स्मारक की प्रतिष्ठा कराई थी। वहीं उनके सानिध्य में 25 दिसंबर 1987 को मुनिश्री सुदर्शन सागर और 10 सितंबर 1998 को आर्यिकाश्री समतामति और 5 मई 2015 को मुनि श्री यश सागर की समाधि हुई। सन 2015 में उनके सानिध्य में 7 दीक्षाओं में 1 मुनि , 4 आर्यिका तथा 2 क्षुल्लक दीक्षाएं दी गई। वात्सल्य वारिघि आचार्यश्री वर्धमान सागर के चतुर्विद् संघ में आचार्यश्री, 8 मुनिराज , 29 आर्यिका माताजी, 2 क्षुल्लक एवं 1 क्षुल्लिका माताजी सहित 31 साधु है। 26 वर्षीय आर्यिका माताजी से लेकर 86 वर्षीय मुनिराज भी हैं।

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