बहुत कठिन है बाल साहित्य का सृजन करना

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टाबरिया म्हैं टाबरिया पुस्तक पर हुई साहित्यिक चर्चा
आखर पोथी का हुआ आयोजन


जयपुर.
प्रभा खेतान फाउंडेशन और ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन की ओर से बुधवार को आखर पोथी का आयोजन किया गया। इसमे मानसिंह राठौड़ मातासर की पुस्तक टाबरिया म्हैं टाबरिया पर साहित्यिक विचार विमर्श किया गया। इससे बाल साहित्य को बहुत चुनौतीपूर्ण मानते हुए अधिकाधिक सृजन करने तथा प्राथमिक शिक्षा में राजस्थानी को शामिल करने पर जोर दिया गया।
पुस्तक की प्रस्तावना पढ़ते हुए मदन सिंह राठौड़ ने कहा कि इस पुस्तक में तितली, बांदर, रूंख, पाणी, बादळ तारा आदि पर कविताएं है। इन कविताओं की सबसे बड़ी खासियत है कि यह कविताएं संदेश परक है। स्वच्छता की बात कविता में साफ. सफाई का संदेश और कोरोना महामारी से बचने की बात कही है। इसी के साथ अन्य कविताओं में भारत माता, म्हारी दादी सहित अन्य कविताओं में राजस्थान का सामाजिक परिवेश प्रकट होता है। राजस्थानी बच्चों के मनोविज्ञान को समझने और उसको अभिव्यक्त करने में लेखक सफल हुए है।
पुस्तक की समीक्षा करते हुए डॉ. इंद्रदान चारण ने कहा कि बच्चे देश का भविष्य है और बाल साहित्य देश की अनमोल पूंजी है। अच्छे बाल साहित्य सृजन के लिए असाधारण प्रतिभा की आवश्यकता होती है। ऐसी ही प्रतिभा है मानसिंह राठौड़ मातासर। बाल मन के लिए सृजन करना बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह निर्विवाद सत्य है कि बाल मनोविज्ञान का अध्ययन करके ही साहित्यकार स्वस्थ और सार्थक बाल साहित्य का सृजन कर सकता है। कवि महेंद्र सिंह छायण ने समीक्षा करते हुए लिखा भी है कि कवि राठौड़ बाल मनोविज्ञान को अच्छी तरह से जानते है और इसलिए उन्होंने अलग-अलग तरह की 34 कविताएं लिखी है।
बाल साहित्य में मूल रूप से बाल मनोविज्ञान के अनुरूप काव्य सर्जना करना किसी चुनौती से कम नहीं है लेकिन लेखक की भाषा सहज, सरल और समझ में आने वाली है। कवि की कविताओं में शब्द संयोजन, शब्दों का चयन, शब्दों की आवृत्ति और कोमल ध्वनियां बच्चों पर प्रभाव डालने वाला है। कविताओं में भी कवि ने कोरोना महामारी पर रचना कर बच्चों को बचाव के उपायों की सीख देते है। इस पुस्तक में कविताओं के साथ चित्र कविताओं का प्रभाव बढ़ा देते है। कवि अपनी रचनाओं में बच्चों को भाग्यवाद और अंधविश्वास से दूर रखते है। इसके साथ ही अपने सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश से जोड़ते है। इस तरह का बाल साहित्य प्राथमिक शिक्षा में शामिल किए जाने की आवश्यकता है। अगर बच्चों को अपनी मायड़ भाषा में पढ़ाई का अवसर नहीं मिले तो यह उनको बिना रोशनी वाले कमरे में बंद करने जैसा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार लियाकत अली खान ने कहा कि मानसिंह राठौड़ की पुस्तक टाबरिया म्हैं टाबरिया साहित्यकारों को बाल साहित्य के सृजन की प्रेरणा देगी। यह पुस्तक राजस्थान में बाल साहित्य के लिए मशाल का काम करेगी। इस पुस्तक से नई पीढ़ी को राजस्थानी पढऩे-लिखने में आसानी रहेगी।
पुस्तक के लेखक मानसिंह राठौड़ मातासर ने कहा कि 10 अक्टूबर 2017 में मेरे मित्र महेंद्रसिंह जाखली के कहने से पहली कविता लिखी। साहित्यकार महेंद्रसिंह छायण ने भी कहा कि आप बाल कविताएं लिखो। इन दोनों के सुझाव पर मैंने कविताएं लिखनी शुरू की। इसके बाद वरिष्ठ बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा का भी मार्गदर्शन मिला। बच्चों के अखबार टाबर टोली में भी बहुत सारी बाल कविताएं छपी है। सोशल मीडिया पर मेरी बाल कविताएं बहुत पसंद की गई है। इस पुस्तक में राजस्थानी में ही बाल कविताएं शामिल है। लेखक राठौड़ ने पुस्तक में से कुछ कविताएं भी सुनाई.
टाबरिया म्है टाबरिया

सुबै.साम खेलण नै जावां
आखै दिन म्हैं धूम मचावां।
सगळा रै मन भावणियां
टाबरिया म्हैं टाबरिया।।

सगळा नै म्हैं दौड़ करावां
मा.बापू री झिडक़ी खावां
बात.बात में रोवणियां
टाबरिया म्हैं टाबरिया।

आळस.वाळस म्हैं नीं जाणां
मात.पिता रो कैणो मानां।
पाठ प्रीत रा बांचणियां
टाबरिया म्हैं टाबरिया।।

मिसरी जेड़ी मीठी बोली
कोर काळजै टाबर टोळी।
गीत प्रेम रा गावणियां
टाबरिया म्हैं टाबरिया।।
कार्यक्रम के अंत में प्रमोद शर्मा ने प्रभा खेतान फाउंडेशन और ग्रासरूट फाउंडेशन की ओर से सभी का आभार जताते हुए आशा व्यक्त की कि आगे भी ऐसे कार्यक्रमों से राजस्थानी भाषा प्रेमी जुड़े रहेंगे।

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