मुनि पूज्य सागर की डायरी से
भीलूड़ा.
मंगलवार, 24 अगस्त, 2021 भीलूड़ा

अन्तर्मुखी की मौन साधना का 20वां दिन। साधना में अनुभूति हुई कि अगर हमारा ध्यान प्रबल है तो बाहर के किसी भी तरह का होहल्ला आत्मा की अनुभूति से नहीं रोक सकता है। जब हम स्वयं में अंदर से विचलित होते हैं तभी हम बाहर से विचलित होते हैं। अंतरंग की स्थिरता के लिए संसार के सुख जनित साधनों, बातों, कार्य और चिंतन से दूर होना चाहिए। अंतरंग से कषाय का त्याग राग-द्वेष का त्याग शरीर सुख का त्याग करने पर बाहर की अनुभूति नहीं होती है। इन्द्रिय सुख की चाह में हम स्वयं एकाग्र नहीं हो पाते। उसका कारण हम कुछ और बता देते हैं। यही हमारी कमजोरी है। इससे लडऩे के बजाए हम डर जाते हैं तो और ज्यादा कमजोर होते जाते हैं। अंदर की निर्मलता ही मलिन होती जाती है।
हम अंदर से इतने खोखले हो जाते हैं कि अपने अंदर की शक्ति को भूल जाते हैं। कमजोरी के कारणों को ढूंढना प्रारम्भ कर दें तो अंदर की कमजोरी दूर होती चली जाएगी। हम सब कुछ कर सकते हैं जो हमने सोच रखा है। अंदर की आत्मशक्ति की भी अनुभूति कर सकते हैं। मैं स्वयं ही अंदर की कमजोरी के कारण 20 वर्षों में 1 उपवास भी नहीं कर पाया। जब मैंने अंदर की कमजोरी के कारणों को ढूंढा तो आज 20 दिन में 10 उपवास और दस दिन बिना अन्न के भी बिना किसी वेदना के साधना कर रहा हूं। मैंने यह मान लिया था कि मेरा शरीर कमजोर है उपवास कर ही नहीं सकता। यही अंदर की कमजोरी थी पर जब इस कमजोरी को अंदर से निकाल दिया तो 20 दिन की साधना में 10 उपवास और दस दिन अन्न त्याग के बाद भी अपनी शक्ति को पहचान रहा हूं। यह बात अलग है कि यह शक्ति न किसी को दिखाई दे सकती है और न ही अन्य कोई इसकी अनुभूति कर सकता है।