16 करोड़ के इंजेक्शन के इंतजार में आखिर टूट गई मासूम तनिष्क की सांसें

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जयपुर। करीब 30 माह से 16 करोड़ रुपए की कीमत के एक इंजेक्शन की इंतजार कर रहा तनिष्क आखिर जिंदगी की जंग हार गया। स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) नामक के रोग से ग्रसित इस बच्चे ने सोमवार को जयपुर के जेके लोन अस्पताल में आखिरी सांस ली। इस बच्चे की जिंदगी बचाने को लेकर परिजन राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक गुहार लगाते रहे, लेकिन समय पर मदद नहीं मिल पाई और बच्चा काल के आगोश में समा गया।
राजस्थान के यह दंपती अपनी इकलौती संतान को बचाने के लिए दर-दर भटके, नेताओं से लेकर समाजसेवियों के पास गए, लेकिन अपने बेटे को नहीं बचा पाए।

स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी बीमारी से था ग्रसित

तनिष्क जयपुर के जेकेलोन में इलाज ले रहा था। स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी बीमारी के कारण शरीर में सर्वाइवल ऑफ मोटर न्यूरॉन-1 (एसएमएन-1) जीन की कमी से उसके शरीर में प्रोटीन नहीं बन पा रहा था। इससे वह न ठीक से खा सकता था और ना ही बैठ सकता था। धीरे-धीरे उसका तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) नष्ट हो रहा था। दवा न मिलने से ऐसे बच्चों का जीवनयापन मुश्किल हो जाता हैं। चिकित्सकों के अनुसार इसे बचाने के लिए जोल्गेन्स्मा नाम के इंजेक्शन की आवश्यकता थी। जो इसे उपलब्ध नहीं हो पाया।
एक रिकॉर्ड के अनुसार स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी बीमारी विश्व स्तर पर 10 हजार जीवित बच्चों में से एक में और भारत में 7,744 बच्चों में से एक को प्रभावित करती है।

आश्वासन ही मिले, इंजेक्शन नहीं

16 करोड़ रुपए कीमत के इंजेक्शन के इंतजाम की गुहार केंद्र सरकार तक भी पहुंची थी। लेकिन लेकिन मौत आ गई इंजेक्शन नहीं आ सका। कई सांसदों व मंत्रियों से मिलकर पीड़ित परिवार की पीड़ा को पहुंचाते हुए मदद करने की अपील की थी। परिजनों का कहना है कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने भी इंजेक्शन दिलाने का भरोसा दिया था। लेकिन मौत के अलावा कुछ नहीं मिला।

हाईकोर्ट ने माना था गंभीर

चूरू जिले के जमील नाम का बालक भी इसी तरह की रेयर डिजीज से पीड़ित था। उसके परिजनों ने हाईकोर्ट में याचिका लगाकर सरकार से मदद की गुहार लगाई थी, जिसके बाद राज्य सरकार द्वारा सम्बल पोर्टल बनाया गया और हाईकोर्ट के आदेश पर जमील का इलाज शुरू हुआ। जमील की याचिका पर फैसले के बाद केंद्र सरकार ने राजस्थान में एकमात्र जोधपुर एम्स को सेंटर फॉर एक्सीलेंस रियर डिजीज के नाम से कर दिया, जिसमें कोई भी रेयर डिजीज से पीड़ित मरीज इलाज करा सकता हैं। रेयर डिजीज स्पाइनल मुस्कुलर एट्रोफी टाइप-2 से पीड़ित दो वर्षीय तनिष्क के पिता शैतान सिंह ने भी हाईकोर्ट में रेयर डिजीज पीड़ितों के परिजनों के साथ जनवरी 2023 याचिका लगाई थी। उस याचिका का हाईकोर्ट ने िनर्णय देते हुए राजस्थान सरकार को बाध्य किया कि इन सभी रेयर डिजीज पीड़ितों का इलाज व दवाइयों की व्यवस्था करवाई जाए।

नोवार्टिस कंपनी बनाती है इंजेक्शन

जोल्गेन्स्मा प्रिसिजन मेडिसिन की श्रेणी में आती है, क्योंकि यह दवा किसी व्यक्ति के यूनिक जेनेटिक कोड के कारण होने वाली विशिष्ट समस्याओं को टारगेट करती है। यह दवा नोवार्टिस कंपनी की है। दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना के तहत 20 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता का मिलती है। क्राउड फंडिग भी होती है। कई बार विदेशी कंपनियां भी इसे डोनेट करती हैं।

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