बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा का है महत्व

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।।श्रीहरिः ।।

मदनगंज किशनगढ़.

प्रतिवर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसन्त पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन विद्याप्रदायिनी माँ सरस्वती की पूजा आराधना की जाती है। जिस प्रकार नवरात्र में दुर्गा पूजा, दीपावली पर लक्ष्मी पूजा का महत्व है वैसे ही बसन्त पंचमी पर वीणावादिनी सरस्वती की पूजा का महत्व है। शिक्षा, साहित्य, कला, संगीत से जुड़े हुए लोग इस पर्व को विशेष रूप से मनाते हैं।इस दिन पीले रंग के पुष्प अर्पित करते हैं। पीले व्यञ्जनों का भोग लगाते हैं। पीले वस्त्र धारण करते हैं। कृषि क्षेत्र से जुड़े किसान भी यह त्योहार बड़े उत्साह से मनाते हैं।क्योंकि बसन्त पंचमी तक फसलें पकने की स्थिति में पहुंच जाती है। अतः कृषक वर्ग अतिउत्साहित होकर इस त्योहार को मनाते हैं। शिशिर ऋतु की कड़ाके की ठंड बसन्त पंचमी से क्रमशः कम होने लगती है। वृद्धजन भी राहत महसूस करने लगते हैं। बसन्त ऋतु का आगमन पर उसके स्वागतोत्व के रूप में जौ की बाली को सिर में बाँधते हैं। अपनी स्थानीय भाषा में इसे जौ टांगणी का त्योहार भी कहते हैं।
बसन्त पंचमी अबूझ सावा :-
अबूझ सावा उसे कहते हैं जिसमें किसी पंडित /ज्योतिर्विद् को पंचाग द्वारा मुहूर्त पूछे बिना पारम्परिक रूप से शुभ मांगलिक दिवस /पर्व पर बालक – बालिकाओं का पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न कराते हों। मुहूर्त में पंचाग के पांच अंगों (तिथि, वार, नक्षत्र, योग,, करण) के साथ – साथ शुभ महीना, गुरुशुक्रास्त, मलमास, राशि के अनुसार चन्द्र, सूर्य, गुरुबल आदि सभी देखना आवश्यक होता है। परन्तु अबूझ सावे में ये सभी मिलान करना आवश्यक नहीं है।
वैसे तो विवाह आदि सभी शुभ कार्य मुहूर्त देखकर ही करना चाहिए। अबूझ सावा तो अतिआवश्यक और विषम परिस्थितियों में ही करना चाहिए।
अबूझ सावे ( १) देवउठनी एकादशी, (२) बसन्त पंचमी (३)फुलेरा दूज (४)अक्षय तृतीया (५)भडुली नवमी।
इन सावों का यह वैशिष्ट्य है कि विवाह में जो अभीष्ट, मास और नक्षत्र होते हैं वे नक्षत्र इस दिन होते हैं।
जैसे वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, माघ, फाल्गुन। इनमें विवाह करने से कन्या क्रमशः पतिप्रिया, कुलवर्द्धिनी, धनवती, सौभाग्यशाली होती है।
उपर्युक्त सावों के अवसर पर चन्द्रमा, मीन, वृष, तुला राशियों पर रहता है। और इन सावों पर विवाह के विहित नक्षत्र रोहिणी, मृगशिरा, हस्त, चित्रा, उत्तरा भाद्रपद, रेवती आदि रहते हैं। यह सुनिश्चित है साथ ही ये दिवस किसी न किसी धार्मिक पर्व /उत्सव विशेष से जुड़े होते हैं। इन्हें चिरंजीवी दिवस कहा गया है।ऐसी मान्यता है कि इन दिवसों में विवाह सम्पन्न कराने वर-वधू का दाम्पत्य जीवन मङ्गलमय होता है।
धर्म शास्त्रों का आदेश है कि इन उपर्युक्त स्वयसिद्ध मुहूर्तों में किया गया दान – पुण्य अक्षय होता है।
कन्यादान भी एक महत्वपूर्ण दान है। जन्मदाता माता-पिता 20 – 21 वर्ष तक पाल-पोष कर अपनी कन्या का दान करते हैं। अतः कन्यादान का धर्मशास्त्रों में बड़ा महत्व बताया गया है।

रतन शास्त्री (दादिया वाले)
पं फतेहलालनगर, मझेला रोड़, मदनगंज – किशनगढ़ ।

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