केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह पुद्दुचेरी में अरविंद के 150 वें जयंती समारोह में शामिल हुए

जयपुर.
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह रविवार को पुद्दुचेरी में श्री अरविंद के 150वें जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में शामिल हुए। शाह ने अरविंद आश्रम में महान बुद्धिजीवी और आध्यात्मिक पुरोधा श्री अरविंद को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। उन्होंने कहा कि अरविंद ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में चिरस्थायी योगदान दिया। उनके कार्य और विचार सभी के लिए प्रासंगिक हैं और वे हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
अरविंद के 150वें जयंती समारोह को संबोधित करते हुए केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि अगर भारत की आत्मा को समझना है तो अरविंद को सुनना और पढऩा होगा। इसी प्रकार का जीवन अरविंद ने जिया और अगर उनके साहित्य को ध्यान से पढ़ें और उनके संदेश को समझें तो उन्होंने एक अलग प्रकार के भारत की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि दुनिया के सारे देश जियो-पॉलिटिकल हैं लेकिन भारत एकमात्र ऐसा देश है जो जियो-कल्चर है। अगर भारत को जियो-कल्चर देश के नाते समझने की शुरूआत करेंगे तो आज की सभी समस्याओं का समाधान अपने आप हो जाएगा। कश्मीर से कन्याकुमारी और द्वारका से बंगाल तक कहीं ना कहीं एक ही संस्कृति हम सबको बांधे हुए है। संविधान हम सबके लिए सम्मान योग्य है लेकिन बॉंडिंग अगर है तो वो ये संस्कृति है जो भारत की आत्मा है।
अरविंद ने भारतीय संस्कृति की चिरपुरातन चेतना की नदी के प्रवाह को नई चेतना, ऊर्जा, गति और दिशा प्रदान करने का काम किया और ऐसे समय पर किया जब सब ओर अंधकार था और देश अंग्रेज़ों का ग़ुलाम था। जब तक अरविंद के विचारों को हम नई पीढ़ी को नहीं सौंपते उनके मन में इन्हें जानने की उत्सुकता पैदा नहीं करते तब तक अरविंद की 150वीं जयंती को मनाने के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकती। गुजरात में गायकवाड़ सरकार में उन्होंने शिक्षा पर काम किया और कई गुजरातियों ने उनसे प्रभावित होकर उनके जीवन संदेश को ही अपना जीवन बना लिया। बहुत कम लोग जानते होंगे कि के एम मुंशी श्री अरविंद के शिष्य रहे और आगे के जीवन में कन्हैया लाल मुंशी ने भारत के संविधान की रचना में बहुत बड़ा योगदान दिया और संविधान में भारतीय विचार प्रमुख हों इसके पुरोधाओं में श्री के एम मुंशी थे। कई लोगों ने अरविंद के साथ जुडकऱ पूरा जीवन उनके संदेश को दुनियाभर में पहुंचाने के लिए काम किया।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि अरविंद के जीवन को अगर देखते हैं तो भारत के साथ उनका जुड़ाव भी एक प्रकार से संयोग से भी हो गया है क्योंकि भारत की आज़ादी और अरविंद के जन्म का दिन एक ही है। अरविंद जब 75 वर्ष के हुए तब देश आजाद हुआ और जब उनकी 150वीं जयंती है तब देश की 75वीं सालगिरह होने जा रही है।
उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने का जो निर्णय किया हैए इसके पीछे तीन मुख्य बिंदु हैं। जाने-अनजाने सभी स्वतंत्रता सेनानियों को नई पीढ़ी के मानस पटल पर फिर से एक बार स्थिर करके देशभक्ति के संस्कार पुनर्जागृत करना। 75 साल में जो भी सिद्धियां हमने प्राप्त की हैं उन्हें देश की 130 करोड़ जनता तक पहुंचाना। 75 से 100वें साल तक तक के 25 साल को अमृत काल मानकर हर क्षेत्र में भारत सर्वोच्च हो हमारे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बचाए रखते हुएए इसका संकल्प लेकर पूरी पीढ़ी 25 साल तक काम करे। इन तीनों उद्देश्यों के आधार पर ही आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है।
अमित शाह ने कहा कि ये श्री अरविंद घोष की 150वीं जयंती का वर्ष है और प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति बनाई गई है। 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने अरविंद को उल्लिखित करके एक बात कही थी कि आजादी के 75वें साल में अरविंद की कल्पना का भारत बनाने के लिए हम सब प्रयासरत हों। अरविंद जीवनपर्यंत मेधावी छात्र रहे और उनके अंदर का विद्यार्थी उनकी मृत्यु तक जीवित था। भले ही उनकी औपचारिक शिक्षा इंग्लैंड में हुई परंतु भारतीयता में रचे.बसे इस व्यक्ति ने पूरे देश को भारतीयता की अर्वाचीन व्याख्या से परिचित कराने का एक बहुत भागीरथ काम किया। अरविंद और विवेकानंद दोनों ने भारतीयता की व्याख्या 20वीं शताब्दी की भाषा में की है। अरविंद ने वडोदरा में ना केवल शिक्षा बल्कि गुड गवर्नेंस पर भी बहुत काम किया। वे गुप्त रूप से बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में भी रहे और एक प्रकार से वे वहां दोहरा जीवन व्यतीत करते थे। उनके मन और आत्मा क्रांति के साथ जुड़े हुए थे और नौकरी सयाजीराव गायकवाड़ की शिक्षा के लिए करते थे। लेकिन उन्होंने दोनों भूमिकाओं का निर्वहन बहुत अच्छे तरीके से किया। 1905 में लॉर्ड कर्जऩ ने बंग भंग किया और इसके साथ ही देश भर में एक बहुत बड़ी चेतना आ गई और देशभर के युवा बंग बंग के विरोध में एकत्रित हुए। विशेषकर बंगाल बहुत जागरूक था और अरविंद अपनी नौकरी छोडकऱ बंगाल गए और 1905 से 1910 तक वह भारत के राजनीतिक स्वतंत्रता आंदोलन की उल्का बन कर रहे। उन्होंने जो भी किया वह प्रखर रूप से बिना भ्रमित हुए और परिणामलक्षी किया और इसी के कारण ही 1905 से 1910 के छोटे से कालखंड में भी वह क्रांतिकारी आंदोलन के मुखर नेता बनेए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। अलीपुर बम षड्यंत्र मामले में उनको गिरफ्तार किया गया और 1 साल के लिए जेल भेजा गया। उनको पहला आध्यात्मिक अनुभव वहीं जेल में हुआ और वहीं से 1910 से उनके जीवन में एक परिवर्तन आया।
आध्यात्मिक राष्ट्रवाद की अवधारणा
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि अरविंद ने पॉलीटिकल एक्शन का एक सुसंगत और महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित करने का प्रयास किया था। उसे एक प्रकार से आप आध्यात्मिक राष्ट्रवाद भी कह सकते हैं और पहली बार राष्ट्र की अवधारणा उन्होंने रखी। वंदे मातरम और अरविंद की राष्ट्र की अवधारणा को देखेंगे तो इनके बीच में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उनकी राष्ट्र की अवधारणा जियो कल्चर देश की अवधारणा के अनुरूप बनीए सिर्फ पॉलीटिकल एक्टिविटी के लिए राष्ट्र की अवधारणा नहीं थी। स्वराज एक शब्द है मगर इसका इंटरप्रिटेशन आजादी के आंदोलन के वक्त भी और बाद में भी राजनीतिक सत्ता के रूप में हो गया। स्वराज में सबसे महत्वपूर्ण शब्द स्व है.स्वभाषा, स्वसंस्कृति, स्वधर्म इनसब चीजों में स्व है और तभी जाकर स्वराज संपूर्ण होता है। स्वराज का मतलब सिर्फ पॉलीटिकल पावर से नहीं है बल्कि यह देश भारत की मिट्टी की सुगंध में से निकले सिद्धांतों के आधार पर चलेए भारत की संस्कृति की बनाई हुई अवधारणाओं के आधार पर चले यहां की महान परंपराओं को आगे लेकर चले वह स्वराज का मतलब है। अरविंद ने स्वराज का कांसेप्ट रखने में कोई कोताही नहीं की बड़ा स्पष्ट था और इसीलिए वह मानते थे कि भारत में वह शक्ति है जो पूरे विश्व को दैदीप्यमान कर सकती है सारे विश्व का कंफ्यूजन दूर कर सकती है।
शाह ने कहा कि अरविंद बंगाल छोड़ कर वाया चंद्र नगर पांडिचेरी आए और पांडिचेरी उस जमाने में भी आजादी के आंदोलन का बहुत महत्वपूर्ण केंद्र रहा और इसका एकमात्र कारण अरविंद ही थे। उन्होंने यहां काफी साहित्य और कई प्रवचन कहे हैं और युगों युगों तक रास्ता बदले बगैर पूरा राष्ट्र कैसे चल सकता है इतना पाठ्य उन्होंने हमें दिया। आध्यात्मिक अनुभव उनको शंकराचार्य मंदिर में भी हुआ और उसके बाद एक प्रकार से उन्होंने आध्यात्मिक राष्ट्रवाद की भी व्याख्या की क्योंकि हमारी संस्कृति में सीमा की कल्पना ही नहीं है। हमारे वेदों, उपनिषदों, साहित्य में कहीं देश के नाम का शब्द ही नहीं है। हम अंतरिक्ष और समग्र विश्व के भले के लिए काम करनेवाले लोग हैं। अगर राष्ट्रवाद को पश्चिम की व्याख्या से देखेंगे तो संकुचित लगेगा मगर राष्ट्रवाद को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आधार पर देखेंगे तो समग्र विश्व का कल्याण करने का एक यज्ञ दिखेगा।आज पश्चिम के विद्वान राष्ट्रवाद का पश्चिम की व्याख्या से मूल्यांकन करते हैं। लेकिन राष्ट्रवाद की व्याख्या इतनी छोटी नहीं हैए जिस देश की संस्कृति समग्र विश्व, अंतरिक्ष, पशु-पक्षी, जल और वनस्पति तक का सोचती हो इसका राष्ट्रवाद समग्र देश के लिए है और वह वसुधैव कुटुंबकम से उपजा हुआ राष्ट्रवाद होता है। इसकी व्याख्या सबसे पहले अरविंद ने की।
हमेशा बड़ी रही है भारत की सोच
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि अगर देश की नई शिक्षा नीति को ध्यान से पढ़ेंगे तो हर स्थान पर अरविंद के शिक्षा के विचार अपने आप दिखाई पड़ेंगे क्योंकि इस देश को जो लोग जानते हैं वह सभी जानते हैं कि यही हमारा राजमार्ग और आगे बढऩे का रास्ता है। भारत कभी छोटा नहीं सोच सकता और ना कभी भारत को छोटा सोचना चाहिए। एक समय आ गया था जब हम गुलाम हो गए थे परंतु हमारी सोच और चिरपुरातन संस्कृति कभी हमें छोटा सोचने की आज्ञा नहीं देती है। उन्होंने कहा कि मैं अरविंद के विचारों के आंदोलन के प्रचार के साथ जुड़े हुए लोगों को इतना ही कहना चाहता हूं कि आप इस देश के युवाओं, किशोरों और देश की शिक्षा व्यवस्था पर फोकस करिए। अगर यह तीन चीजें अरविंद के विचारों से युक्त हो जाती हैं तो अरविंद की कल्पना का भारत बनना मुश्किल नहीं है। इसे कोई एक व्यक्ति नहीं बना सकताए कई लोगों को पहले उनकी कल्पना को समझना पड़ेगा तभी उनके स्वप्न के साथ वो जुड़ सकते हैं। उन्होंने कहा था कि शिक्षकों के लिए मनोविज्ञान और संस्कृति की जानकारी बहुत जरूरी है। एक व्यक्ति अपने जीवन में कितना कुछ कर सकता है अगर इसका दुनिया भर में उदाहरण ढूंढेंगे तो इसमें श्री अरविंद ही आएंगे। एक जीवन में 100 जीवन जितना काम करने वाले यश की कोई अपेक्षा रखे बिना युगों युगों तक देश उस रास्ते पर आगे चल सके ऐसी राह हमारे लिए वे छोड़ कर गए हैं और उनके विचार देश के लिए बहुत बड़ा धन और संपत्ति हैं।