मन के भावों को कागज पर उतारने का प्रयास करता हूंः मीठा खान

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आखर में सांचौर के साहित्यकार मीठा खान से साहित्य के शोधार्थी प्रवीण मकवाणा ने की बातचीत

जयपुर। प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के सहयोग से ’आखर’ में रविवार को राजस्थानी भाषा के साहित्यकार मीठा खान से उनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर संवाद साहित्य के शोधार्थी प्रवीण मकवाणा ने किया और साहित्य सृजन के विभिन्न पक्षों पर बातचीत की। अपने प्राररिम्भक संघर्ष के दिनों की बात करते हुये मीठा खान ने बताया कि, उच्च प्राथमिक तक शिक्षा लेने के बावजूद जीवन में संघर्ष करते-करते और पारंपरिक राजस्थानी मिरासी परिवार से होने के कारण गीत गाने की और लिखने में रुचि बनी रही। मेरे मन में जो भी भाव आते हैं उन भावों को ही कागज पर उतारने का प्रयास करता हूं। यही साहित्य के हिसाब से मेरी बंदगी है और पूजा है। कविता लिखने के लिए जरूरी है कि हम सबसे पहले अपने मन में बैठे और अपने मन की सुनकर लिखने का प्रयास करें। आप चाहे किसी जिले में बैठे हो या और किसी भी जगह यह महत्वपूर्ण नहीं रहता है। आलोचकों के विषय में मीठा खान ने कहा कि, मैं आलोचकों को गुरु मानता हूं जो रास्ता दिखाते हैं और मार्गदर्शन करते हैं एवं कमियां बताकर उन कमियों को सुधारने की प्रेरणा देते हैं।

सांचौर के डभाल गांव निवासी मीठा खान ने कार्यक्रम के दौरान अपने लिखे गीत वंदन करूं वीणावादिनी, करणी माता की स्तुति, भगवान कृष्ण पर गीत प्रस्तुत किए। इसके साथ ही लोकगीत साजन जी म्हारा मत बिसराओ जी, रे बंदे बोल मधुर रस वाणी जासो होवत न हानि, अरे साजन यूं तो मत जा रे आदि राजस्थानी गीत सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के अंत में ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के प्रमोद शर्मा ने उपस्थित सभी श्रोतागणों का आभार प्रकट किया।

इससे पूर्व आखर में प्रतिष्ठित राजस्थानी साहित्यकारों डॉ. आईदान सिंह भाटी, डॉ. अरविंद सिंह आशिया, रामस्वरूप किसान, अंबिका दत्त, मोहन आलोक, कमला कमलेश, भंवर सिंह सामौर, डॉ. गजादान चारण, ठाकुर नाहरसिंह जसोल, कल्याण सिंह शेखावत आदि के साथ साहित्यिक चर्चा की जा चुकी है।

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