
।।श्रीहरिः ।।
।। श्रीमते रामानुजाय नम: ||
वैदिक सनातनधर्म में हर दिन उत्सव व त्योहार होता है। फिर भी कुछ उत्सव व त्योहारों का अपना अलग ही महत्व होता है। उसी परम्परा में हमारा एक मुख्य त्योहार होली है। जो शीतकालीन फसल के परिपक्व होने के बाद शिशिर ऋतु के समापन व वसन्त ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है। इसे वसन्तोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार भद्रा रहित प्रदोषव्यापिनी फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसमें समाज का हर वर्ग चाहे वह किसान हो, व्यापारी हो, श्रमिक हो, निजी कंपनियों के कर्मचारियों से लेकर राजकीय लोकसेवकों, सैनिकों, पत्रकारों, अभिभाषकों, शिक्षकों विद्यार्थियों सहित धनिक, मध्यम, एवं साधारण आय वाले परिवार हो। आबालवृद्ध सभी सनातन वैदिक मतावलम्बी बड़े हर्षोल्लास के साथ इस रंगों के त्योहार को मनाते हैं।
इस वर्ष भारतीय ज्योतिष की गणना के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी सोमवार दिनांक 6 मार्च 2023 को पूर्णिमा प्रदोषव्यापिनी है। अपराह्न 4 बजकर 17 मिनट से मध्यरात्र्योत्तर 5 बजकर 15 मिनट तक भद्रा है। अतः प्रदोष काल से निशीथोत्तर भद्रा व्याप्त है।
भद्राव्याप्त होने की स्थिति में सनातनधर्म के महनीय धर्मग्रन्थ धर्मसिन्धु, निर्णयसिन्धु एवं व्रतराज सहित सभी धर्मग्रंथों और हमारे पूर्वाचार्य ऋषि – मुनियों के आर्षवचन की आज्ञानुसार इस बार फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी सोमवार तदनुसार दिनांक 6 मार्च 2023 को अजमेर स्टेन्डर्ड समयानुसार प्रदोषकाल सूर्यास्त समय सांय 6 बजकर 38 मिनट से 9 बजकर 6 मिनट तक है। होलिका दीपन प्रदोषकाल युक्त गोधूलि वेला में सायं 6 बजकर 38 मिनट से 6 बजकर 50 मिनट की कालावधि में करना श्रेयस्कर रहेगा। इस कालावधि में प्रदोषकाल, गोधूलि वेला ,चर का चौघड़िया एवं शुक्र का होरा व्याप्त रहेगा। सामान्यतः प्रदोष काल में 6 बजकर 38 मिनट से रात्रि 9 बजकर 6 मिनट तक भी होलिका दीपन कर सकते हैं।
होली दीपन के समय पूर्व दिशा की वायु का प्रवाह सुखद, अग्निकोणीय आगजनी कारक, दक्षिण का दुर्भिक्ष एवं पशुपीड़ाकारक, नैऋत्य का फसल में हानिप्रदायक, पश्चिम का सामान्य सूचक, वायव्य कोणीय चक्रवात, पवनवेग, व आंधी-तूफान का कारक, उत्तर व ईशानकोणीय मेघगाज सूचक, चारों दिशा व कोणीय राष्ट्रसंकट परिचायक, वायु शान्त होवे तथा होली की झलें उँचे आकाश की गति में जावे तो उत्पात सूचक, इति शुभम्।
उपर्युक्त समस्त विवरण निर्णय सागर पञ्चाङ्ग, श्रीधरी चण्डाशुं पञ्चाङ्ग, शिवशक्ति पञ्चाङ्ग, धर्मसिन्धु, निर्णयसिन्धु, एवं व्रतराज के आधार पर लिखा गया है।
पं रतन शास्त्री (दादिया वाले)
पं फतेहलालनगर, किशनगढ़ ।
जयश्रीमन्नारायण सा