Fear of Chair: थाने की कुर्सी, जिस पर बैठने से भी डरते हैं पुलिस के अधिकारी

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जोधपुर। जोधपुर पुलिस कमिश्नरेट के बाड़मेर जिले के पच्चीस पुलिस थानों में एक थाना ऐसा भी है, जिस थाने की कुर्सी पर थाना प्रभारी तो दूर बड़े से बड़ा अधिकारी भी बैठने से खौफ खाता है। थाने में यह कुर्सी एक संत ने दी है। जो लंबे समय से एक कमरे में बंद है। थाने की इस कुर्सी पर जब भी किसी थाना प्रभारी या बड़े अधिकारी ने बैठने का प्रयास किया तो या तो 24 घंटे के भीतर उसका तबादला हो गया या फिर वह सस्पेंड कर दिया गया। तब से अब तक पुलिस के अधिकारी इस कुर्सी पर बैठने से डरने लगे है।
यह एक ऐसा पुलिस थाना है, जिसे कलेक्टर, एसपी और अन्य पुलिस अधिकारियों द्वारा निरीक्षण और अन्य आधिकारिक कर्तव्यों के लिए शैतान की तरह टाला जाता है। यह सब थाने में एक साधु द्वारा दी गई शापित कुर्सी के कारण हो रहा है। कोई भी पुलिस अधिकारी या थाना प्रभारी इस बैठने की हिम्मत नहीं करता। पुरानी मान्यता है कि बाड़मेर के इस मंडली पुलिस थाने की कुर्सी पर जो भी बैठता है, उसे या तो बदनामी का सामना करना पड़ता है या उसका तबादला हो जाता है।

  • अब फाइलों के ढेर के साथ एक कमरे में बंद

यह अंधविश्वास लंबे समय से चला आ रहा है और बरसों से कोई पुलिस अधीक्षक या थाना प्रभारी इस कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहा है। मंडली पुलिस थाने की यह बदनाम कुर्सी अब फाइलों के ढेर के साथ एक कमरे में बंद है। हैरानी की बात यह है कि अब तक किसी भी अधिकारी ने यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि क्या इस अंधविश्वास के पीछे कोई सच्चाई है। लेकिन अंधविश्वास के तहत थाने का निरीक्षण करने आए दर्जनों अधिकारियों को या तो निलंबित कर दिया गया या उनका तबादला कर दिया गया। थाने के पुलिस अधिकारी भी कमरे में घुसने की हिम्मत नहीं करते।

सिपाही को छुट्टी नहीं दी तो नाराज हो गए थे साधु

स्थानीय लोग बताते हैं कि करीब 125 साल पहले यहां भोलानाथ बाबा नाम का एक साधु रहता था। पुलिस के सिपाही और अधिकारी उसकी देखभाल करते थे। उस अवधि के दौरान एक अधिकारी के पिता का निधन हो गया और उसके वरिष्ठ ने अपने पिता का अंतिम संस्कार करने के लिए छुट्टी देने से मना कर दिया था। लोगों का मानना है कि इससे साधु नाराज हो गए और उन्होनें वरिष्ठ अधिकारियों को उनके कठोर रवैये के लिए श्राप दे दिया।

किसा का तबादला तो कोई कर दिया गया सस्पेंड

थाना प्रभारी से लेकर पुलिस अधिक्षक और जिला कलेक्टर तक बाड़मेर में आए और गए, लेकिन किसी ने भी थाने की कुर्सी पर बैठने की जुर्रत नहीं की। वे स्वीकार करते हैं कि थाने के प्रति आस्था के कारण वे कार्यकाल में वहां नही जा सकते थे। वे यह भी स्वीकार करते हैं कि थाने के प्रति ऐसी आस्था है कि जब-जब किसी ने जाने का प्रयास किया तब-तब उनके 24 घंटे में तबादले हो गए या फिर सस्पेंड कर दिए गए।

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