
तमिलनाडु का मंदिर, जिसकी दीवारों पर 1100 साल से अंकित है प्रजातंत्र की इबारत
उथीरामेरुर मंदिर के शिलालेखों में दर्ज है बैलट सिस्टम से चुनाव का तरीका
राइट टू रिकॉल का भी प्रावधान
जयपुर। चेन्नई से 60 किलोमीटर दूर मंदिरों की एक नगरी है कांचीपुरम। वही कांचीपुरम जहां के मंदिरों की कुछ मूर्तियों के डिजाइन ही अब तक मशहूर कांजीवरम सिल्क की साड़ियों पर उतर पाई है। यहीं से 30 किलोमीटर दूर लगभग 1250 साल पुराना एक छोटा सा कस्बा है उथीरामेरुर। इसे आप लोकतंत्र का सबसे प्राचीन तीर्थ स्थल भी कह सकते हैं। वह इसलिए क्योंकि, यहां के विष्णु मंदिर की दीवारों पर 920 ईस्वी के आस-पास के चोल वंश के राजाओं के राज्यादेश दर्ज हैं। इन्हें राजा परंतगा सुंदरा चोल ने अपने शासन के 14वें वर्ष में उत्कीर्ण करवाया था, जिनमें से अधिकांश प्रावधान मौजूदा आदर्श चुनाव संहिता का भी हिस्सा हैं।
उन दिनों ग्राम सभा के सदस्यों के निर्वाचन के लिए जो पद्धति अपनाई जाती थी। उसे ‘कुडमोलै पद्धति’ कहा गया है। कूडम का अर्थ होता है मटका और ओलै ताड़ के पत्ते को कहते हैं। गांव के केंद्र में कहीं एक बड़े मटके को रख दिया जाता था और नागरिक, उम्मीदवारों में से अपने पसंद के व्यक्ति का नाम एक ताड़ पत्र पर लिख कर मटके में डाल देते थे। बाद में उसकी गणना होती थी। यह बात किसी को भी आश्चर्यचकित कर सकती है कि आज से 1100 साल पहले भी इस कस्बे में 30 वार्ड से 30 जनप्रतिनिधियों का चुनाव काफी हद तक आज के बैलट सिस्टम जैसा ही होता था। बैलेट होता था ताड़-पत्र का और बैलट बॉक्स होता था एक संकरे मुंह वाला घड़ा।
चुनाव में सभी वर्ग के लोग भाग ले सकते थे। इन्हीं 30 लोगों में से योग्यता अनुसार, सिंचाई तालाब, गार्डन, परिवहन, स्वर्ण परीक्षण व व्यापार, कृषि, सूखा राहत आदि के लिए अलग-अलग कमेटियां बनाई जाती थी। इनका कार्यकाल 1 वर्ष होता था। पद पर रहते हुए घूसखोरी, अपराध करने या अक्षम साबित होने पर, बीच कार्यकाल में हटाया जा सकता था। इसे मौजूदा प्रजातांत्रिक व्यवस्था के हिसाब से ‘राइट टू रिकॉल’ का प्रावधान भी कह सकते हैं। पल्लव राजाओं द्वारा आठवीं शताब्दी में बनाए गए बैकुंठ पेरूमल (विष्णु) मंदिर के चबूतरे के चारों ओर चोल राजाओं के लगभग 25 राज्यादेश दर्ज हैं।
चुनाव के दिन हर नागरिक की उपस्थिति जरूरी
जनप्रतिनिधि चयन के लिए एक नियत दिन बच्चों, महिलाओं से लेकर बुजुर्ग तक एक-एक नागरिक का ग्राम सभा मंडप प्रांगण में उपस्थित होना अनिवार्य था। सिर्फ बीमार, तीर्थ यात्रा पर गए लोगों और शिशुओं को ही इससे छूट थी। चुनाव के लिए ताड़ के पत्तों पर प्रत्याशियों का नाम लिखकर एक पात्र में डाला जाता था। हर वार्ड के लिए अलग बंडल बनाए जाते थे। बाद में पुजारी, किसी बच्चे से ताड़पत्र निकलवा, सबको दिखा नाम पढ़ते थे। सबसे बुजुर्ग पुजारी निर्वाचित प्रत्याशी के नाम की घोषणा करता था। उथीरामेरुर को लेकर ऐसी मान्यता भी है कि जो पार्टी यहां से जीतती है, वही तमिलनाडु पर राज करती है। इसलिए हर पार्टी के एजेंडे में यह विधानसभा प्राथमिकता में होती है। आज भी चुनावों के दौरान प्रत्याशी इस मंदिर में विजय का आशीर्वाद लेने आते हैं।
राजीव गांधी 1988 में इस मंदिर में आए
उथीरामेरुर के इस मंदिर के मुरीद पूर्व चुनाव आयुक्त स्व. टीएन शेषन भी रहे और राजीव गांधी भी। नए संसद भवन सेंट्रल विस्टा की नींव रखते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसका जिक्र करना नहीं भूले। मंदिर के मुख्य पुजारी एस. शेषाद्री बताते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर यह पहली बार चर्चा में तब आया, जब राजीव गांधी 1988 में इस मंदिर में आए। वह याद करते हुए बताते हैं कि मैं टूटी-फूटी अंग्रेजी में राजीव गांधी को दीवारों पर दर्ज प्राचीन डेमोक्रेटिक प्रक्रिया के बारे में बता रहा था। मेरी भाषा की अड़चन समझ सोनिया गांधी ने कमान संभाली और वह उन्हें 10 मिनट तक मंदिर पर लिखे शिलालेखों के बारे में बताती रही। शेषाद्री कहते हैं वे इतने प्रभावित हुए कि दिल्ली जाने के बाद उन्होंने ना सिर्फ इसके रखरखाव के इंतजाम किए बल्कि नया पंचायत राज अधिनियम बनाने के पहले यहां का सिस्टम समझने के लिए अधिकारी भी भेजे।
योग्यता
-शिक्षित, ईमानदार होना सबसे बड़ी योग्यता थी।
प्रत्याशी की न्यूनतम आयु 35 वर्ष और अधिकतम 70 वर्ष होना चाहिए।
प्रत्याशी के पास इमानदारी से कमाया हुआ धन हो, करदाता हो और उसका घर अतिक्रमण मुक्त जमीन पर ही होना चाहिए।
जनप्रतिनिधि के दो कार्यकाल के बीच 3 साल का अंतर जरूरी। अधिकतम पांच बार ही चुना जा सकता है।
प्रत्याशी के लिए न्यूनतम शिक्षा का भी प्रावधान था। उस समय के हिसाब से वेदों का ज्ञान अतिरिक्त योग्यता मानी जाती थी
सामान्य शिक्षित प्रत्याशी के पास एक चौथाई ‘वेली’ (जमीन मापने की यूनिट) यानी करीब आधा एकड़ टैक्स पैड जमीन होना जरूरी
यदि किसी प्रत्याशी को एक वेद का भी ज्ञान है (उच्च शिक्षित) तो छूट का प्रावधान था। उसके पास 1/8 वेली जमीन होना भी पर्याप्त
अयोग्यता
घूसखोरी, व्यभिचारी होना सबसे बड़ी अयोग्यता थी।
किसी कमेटी के सदस्य द्वारा आय व्यय, संपत्ति का ब्यौरा नहीं देना, अयोग्यता के दायरे में आता था।
यदि पद पर रहते हुए घूसखोरी, भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया तो स्वयं के रक्त संबंधी के साथ उसका मामा, ससुराल पक्ष से जुड़ा हर सदस्य भी उसके पूरे जीवन काल के लिए अयोग्य होगा।
पंच महापाप जैसे अवैध संबंध रखना, हत्यारा, शराबी, चोरी, अतिक्रमण, ठगी (420) करने वाला उम्र भर के लिए अयोग्यता के दायरे में रखने का प्रावधान था।
परिवारिक व्यभिचार, बलात्कार करने वाला और उसका परिवार 7 पीढ़ियों तक चयन के लिए अयोग्य।