डॉ. मशेलकर अमेरिकी कम्पनी से 3 साल लड़कर लाए हल्दी व बासमती चावल का पेटेंट

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जयपुर। पद्म विभूषण, पदम भूषण और पद्मश्री से सम्मानित वैज्ञानिक डॉ. आर. ए. मशेलकर शुक्रवार को जेके लक्ष्मी पंत यूनिवर्सिटी के वार्षिक कार्यक्रम में आए। यूनिवर्सिटी की ओर से डॉ. मशेलकर को जेकेएलयू लाॅरिएट अवाॅर्ड से नवाजा गया। डॉ. मशेलकर को पेटेंट मैन के नाम से जाना जाता है। इनके ही नेतृत्व में सीएसआईआर ने हल्दी और बासमती चावल के अमेरिकी कंपनी का पेटेंट रद्द करवाया था।

अमेरिका ने ले लिया था हल्दी का पेटेंट

यूएस पेटेंट एंड ट्रेडमार्क ऑफिस ने 1994 में मिसिसिपी यूनिवर्सिटी के दो रिसर्चर्स सुमन दास और हरिहर कोहली को हल्दी के एंटिसेप्टिक गुणों के लिए पेटेंट दे दिया था। सीएसआईआर ने इसके खिलाफ केस लड़ा। उस समय सीएसआईआर के अध्यक्ष मशेलकर थे। भारत ने दावा किया था कि हल्दी के एंटिसेप्टिक गुण भारत के पारंपरिक ज्ञान में आते हैं और इनका जिक्र तो भारत के आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी है। सीएसआईआर ने अमेरिका के दावे को मानने से इनकार कर दिया था। सीएसआईआर ने कहा था कि हल्दी पिछली कई सदियों से भारत में लोगों के घावों को ठीक करने के लिए प्रयोग की जा रही है। सीएसआईआर ने कई दस्तावेज पेश किए, जो कई साइंस जर्नल और किताबों में छपे थे। इसके बाद पीटीओ ने अगस्त 1997 में दोनों रिसर्चर्स का पेटेंट यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि पेटेंट में किए गए दावे स्पष्ट और प्रत्याशित थे। साथ ही सहमत हुए कि हल्दी का उपयोग घाव भरने का पुराना ज्ञान था।

बासमती का पेटेंट भी कराया निरस्त

यूएस पेटेंट कार्यालय ने बासमती चावल के एक स्ट्रेन के लिए टेक्सास की कंपनी को बासमती राइस लाइंस एंड ग्रेन शीर्षक उपन्यास से ‘राइसटेक’ को एक पेटेंट प्रदान किया था। 1997 में अपने पेटेंट आवेदन में राइसटेक ने यह भी स्वीकार किया कि अच्छी गुणवत्ता वाले बासमती चावल पारंपरिक रूप से उत्तरी भारत और पाकिस्तान से आते हैं। राइसटेक ने जो पेटेंट कराया था, वह बासमती चावल का जीनोम या आनुवंशिक रूप से विकसित किस्म नहीं था। कानूनी लड़ाई के बाद 2002 में न्यायिक और राजनीतिक चुनौतियों के परिणामस्वरूप राइसटेक ने 15 दावों को वापस ले लिया। अमेरिका ने भारतीय चावल निर्यात की बाधाओं को दूर कर दिया।

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