धर्म और धर्मात्माओं पर सवाल न उठाएं

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मुनि पूज्य सागर की डायरी से


भीलूड़ा.

धर्म और धर्मात्माओं पर सवाल न उठाएं

अन्तर्मुखी की मौन साधना का 36 वां दिन
गुरुवार, 9 सितम्बर 2021 भीलूड़ा

मौन साधना का 36वां दिन। व्यक्ति अपने आपसी झगड़े और मनमुटाव के चलते धर्म और धर्मात्माओं को माध्यम बनाकर धार्मिक अनुष्ठानों में बाधाएं डालते हैं। क्या ऐसा व्यक्ति अपना धर्म कर रहा है या अशुभ कर्मों का बंध कर रहा है व्यक्ति अपने आपसी झगड़ों में इतने कषायों से भर जाता है कि धर्म और धर्मात्माओं पर सवाल उठाकर समाज में नकारात्मक वातावरण पैदा करता है। एक-दूसरे के प्रति द्वेष की भावनाएं पनपा रहा है। इसी के परिणामस्वरूप युवा पीढ़ी धर्म और धर्मात्माओं से दूर होती जा रही है।
कोई धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होना नहीं चाहता। व्यक्ति धर्म और धर्मात्माओं की सेवा कर्तव्य पालन और पुण्य अर्जन के लिए नहीं बल्कि मान सम्मान के लिए कर रहा है। व्यक्ति संत की सेवा को भी एक काम ही समझ रहा है और यहां से भी कुछ अपेक्षा रख रहा है। व्यक्ति संत से अपेक्षा रखता है कि संत उसे पूछें। इससे अधिक नकारात्मक सोच और क्या हो सकती है लोग धर्म के नाम पर धन एकत्रित करते हैं। जब धर्म के लिए खर्च करने की बात आती है तो मन बेईमान बन जाता है। यह सोचने की बात है कि जब बेटे-बेटी की शादी करते हो तो खुले मन से खर्च करते हैं या बेईमान मन से फिर धर्म प्रभाव में क्यों मन बेईमान बन जाता है।
इन्हीं वजह से समाज संत और पंथ के नाम पर बंट रहा है और इन सब में उनका भी फिजूल में नुकसान हो रहा है जिन्हें इन सबसे कुछ मतलब नहीं होता। जो सिर्फ  धर्म करना चाहते हैं संतसेवा करना चाहते हैं और अपने धन का सदुपयोग करना चाहते हैं उन्हें नुकसान हो रहा है। आखिर व्यक्ति यह सब क्यों कर रहा है इसका जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा व्यक्ति को इन बातों पर विचार करना चाहिए तभी शायद वह अपने आपको बदल सके। परिवारों में रण हो रहा है बच्चे गलत संगति में जा रहे हैं। पाश्चात्य संस्कृति-संस्कारों का परिवार और समाज में प्रवेश हो रहा है। समाज और परिवार से संस्कार और संस्कृति दूर हो रही है। यह सब धर्म और धर्मात्मा पर लांछन लगाने के कारण ही हो रहा है। इन्हीं वजह से मूल धर्म तो गौण हो गया है। समाज में संस्कार और संस्कृति की रक्षा के लिए काम नहीं हो रहे हैं। व्यक्ति केवल एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं।
मेरा मानना है आज हमारी संस्कृति और संस्कारों को पाश्चात्य संस्कृति से उतना नुकसान नहीं है जितना खतरा धर्म और धर्मात्माओं के नाम पर अपनी आपसी लड़ाई लडऩे वालों से है। यदि आज सुधार का संकल्प नहीं लिया गया तो हमारे पास हमारी पहचान ही नहीं बचेगी।

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