धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति न बरतें उदासीनता

Spread the love

मुनि पूज्य सागर की डायरी से


भीलूड़ा.

अन्तर्मुखी की मौन साधना का 33वां दिन
सोमवार, 6 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा

मौन साधना का 33वां दिन। इंसान का मन पापमल से इतना दूषित होता जा रहा है कि धर्म प्रभावन के निमित्त से अनेक प्रकार के होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों को करने का भी मन नहीं होता। मन वचन और काय अन्यत्र प्रेरित कर देते हैं। कोई अगर करता भी है तो उसे भी नकारात्मक सोच देकर नहीं करने का भाव बना देता है।
शास्त्र में कहानी है कि अंजना ने अपने पूर्व भव में ईष्र्या के कारण जिन प्रतिमा को वेदी से कुछ समय के लिए अलग कर दिया था। इसी के चलते अंजना को 22 वर्षों तक पति का वियोग सहना पड़ा। धार्मिक अनुष्ठानों में मोल-तोल करने की प्रवृत्ति इस बात का संकेत है कि हमारी संस्कृति और संस्कार नाश की ओर जा रहे हैं। आज घर, परिवार और समाज में धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति उदासीनता से मन की मलिनता इतने बढ़ती जा रही है कि उनका प्रभाव इंसान के कपड़े, पहने, भोजन, उठने-बैठने और बोलने में दिखाई दे रहा है। ऐसा लगता है जैसे लज्जा. शर्म रही ही नहीं।
कहने की जरूरत नहीं कि जैसे-जैसे धार्मिक अनुष्ठानों की संख्या में कमी होती जाएगी वैसे. वैसे परिवार में पापमल की मात्रा बढ़ती जाएगी। पापमल की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि एक पिता मां बच्चे को कुछ कहने में भी हिचकते हैं कि कहूं कि नहीं और कहूंगा तो बुरा तो नहीं मानेगा। इससे क्या अधिक मन मलिन होगा कि पिता पुत्र से डर रहा है। मन के पापमल से मलिन पूर्व भव में राम ने अपनी माता की मुनि को आहार देने की बात नहीं सुनी और वह वन जाने की बात पर अड़ा रहा तो राम के भव में उसे वनवास जाना पड़ा। सीता का मन निर्मल था तो पति द्वारा वन भेज दिए जाने पर उसने राम के लिए वन से संदेश यही भेजा कि लौकिक अपवाद के कारण धर्म को कभी ना छोड़े। पर आज परिस्थितियां अलग हो गई हैं। धर्म और धर्मात्मा के प्रति आस्था, विश्वास कम होता जा रहा है और धर्म की जगह धन बल और सांसारिक कार्य को महत्व दिया जा रहा है। यह वास्तव में पापमल का कारण है। इन सब परिस्थितियों का जन्म धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति उदासीनता के भाव होने से हुआ है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.