दिव्यांग बहन को पति ने मारपीट कर घर से निकाला, अब अटकी पेंशन

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कम ही नहीं हो पा रहे दिव्यांग भाई-बहन के दुख
पेंशन शुरू हो तो मिले राहत

जयपुर, 31 मई। सरकारी महकमों की लापरवाही से हर कोई परेशान रहता है। यहां आमजन को न तो जल्दी से कोई संतोषप्रद जवाब मिलता है और न ही कोई राहत। अबकी बार सरकारी महकमों के इसी रवैये के शिकार हुए दिव्यांग भाई-बहन। दिव्यांग प्रमाण-पत्र में सरकारी कारिंदों की लापरवाही से हुई जरा सी गलती के कारण इनकी दिव्यांग पेंशन स्वीकृत नहीं हो पा रही है। ये दोनों भाई बहन कई माह से सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन इन्हें कहीं से भी संतोषप्रद जवाब नहीं मिल पा रहा है।

नाम में गलती से अटकी पेंशन

मामले के अनुसार लिक्ष्वी और बुद्विप्रकाश भाई-बहन हैं। दोनों के हाथों की लम्बाई कोहनी से हथेली तक आधी है व हाथ टेढ़े-मेढ़े है। ये अपने रोजमर्रा के काम भी बामुश्किल निपटा पाते हैं। इन दोनें भाई-बहन का बड़ी मुश्किल से दिव्यांग प्रमाण-पत्र बना था और उसमें भी सिर मुंडाते ओले पड़ गए। लिक्ष्वी के प्रमाण पत्र में गलती से नाम लक्ष्मी लिख दिया गया है। इससे दिव्यांग पेंशन की स्वीकृति अटक गई। वहीं भाई बुद्धिप्रकाश की पेंशन तो स्वीकृत हो गई। पेंशन खाते में भी आ जाती है, लेकिन इसके बाद राशि खाते से वापस लौट जाती है। बुद्धिप्रकाश को कोई यह नहीं बता रहा कि उसकी राशि खाते से वापस क्यों हो जाती है।

उम्मीद की किरण

श्रम विभाग की ओर से बालश्रमिकों शिक्षा से जोड़ने व सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के नन्हें हाथ कलम के साथ अभियान फेज द्वितीय चलाया जा रहा है। इसका कारवां दल आमेर पंचायत समिति के बीलपुर ग्राम पंचायत पहुंचने पर दिव्यांग भाई-बहन ने अपना दर्द इस दल के बाल मित्रों के साथ साझा किया। बाल मित्र सोना बैरवा ने 181 पर सहायता के लिए जानकारी चाही तो बताया कि तकनिकी रूप से लिक्ष्वी और लक्ष्मी के अन्तर के कारण ई-मित्र आवेदन एक्सेप्ट नही कर रहा है। अब अभियान दल ने इस दिव्यांग भाई -बहन को पेंशन दिलवाने की प्रक्रिया शुरू की है।

पति ने मारपीट कर घर से निकाला

लिक्ष्वी बताती है कि पिता मालीराम बुनकर मजदूरी कर भाई बहन को पाल रहे हैं। उसकी शादी भी दौलतपुर के मनोज बुनकर से हुई थी, जो विकलांग था। तीन वर्ष पूर्व मारपीट कर घर से निकाल दिया। फिर 2021 में साहपुरा निवासी मोहनलाल से शादी हुई, वो भी प्रतिदिन शराब पीकर मारपीट करता था। पिछले एक वर्ष से अपने पिता के साथ रह रही है। जब उन्हें पेंशन मिलने की उम्मीद बंधी तो उनके चेहरे पर खुशी देखने लायक थी।

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