आपसी विवाद के कारण संस्कृति-संस्कार का नाश

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मुनि पूज्य सागर की डायरी से


भीलूड़ा.

अंतर्मुखी की मौन साधना का 12 वां दिन
सोमवार 16 अगस्त 2021 भीलूड़ा

आपसी विवाद के कारण संस्कृति-संस्कार का नाश

मुनि पूज्य सागर की डायरी से

आज चिंतन में पीड़ा थी। पीड़ा भी यही थी कि जिनकी आराधना से कर्मों का नाश होता है आज उनकी ही आराधना के नाम पर अहंकार में आकर भगवान के अभिषेक-पूजन के नाम पर लोग लड़ झगड़ रहे हैं। आने वाली पीढ़ी में धर्म के नाम पर बंटवारे का जहर दे रहे हैं। इतनी कषाय हो गई कि पंथ के नाम पर जिनेन्द्र की मूर्ति और संत के नाम संतों को नमस्कार तक नहीं कर रहे हैं। धर्म के नाम पर शंकाएं बहुत हो रहीं हैं पर उनका समाधान आगम के ग्रन्थों के नाम बताए बिना किया जा रहा है। प्राचीन तीर्थों के नाम परिवर्तन हो रहे हैं। प्राचीन ग्रन्थों का स्वरूप बदला जा रहा है। वास्तु-ज्योतिष के नाम पर प्राचीन मंदिरों का स्वरूप बदला जा रहा है इन सबके कारण समाज कई भागों में बंट रहा है और आने वाली युवा पीढ़ी को जहर से भरा धर्म सौंप रहे हैं। इन सब के चलते आज देव शास्त्र और गुरु के प्रति आस्था श्रद्धा विश्वास कमजोर हो रहा है। समाज के लोगों के पास आज मानवता, सभ्यता, विनय, सहनशीलता, सहनशक्ति जैसे गुण ही नहीं रहे। आपस के विवाद के कारण हम संस्कृति, संस्कार और इतिहास का नाश हो रहा है।
मुझे तो चिंतन में यह एहसास हुआ कि कहीं हम अपने धर्म की हत्या तो नहीं कर रहे। अब तो ऐसा लगता है कि अगर इन विवादों को विराम नहीं दिया तो आने वाले समय में जैनधर्म के मूल सिद्धान्तों को पालने वाला ही नहीं रहेगा। अब समय आ गया है इन विवादों को विराम देने का। क्या इन सब विवादों को जैन धर्म के बड़े संत जिनकी बात को समाज संस्थाएं एक स्वर में स्वीकार करती तो वह कब अपनी चुप्पी तोडकऱ आपस में चर्चा कर समाज की पूजा आदि पर निष्कर्ष निकाल कर समाज के विवादों में समाप्त करेंगे।

संतान को शुभकर्म की प्रेरणा दें

अंतर्मुखी की मौन साधना का 13वां दिन
मंगलवार 17 अगस्त 2021 भीलूड़ा

मुनि पूज्य सागर की डायरी से

आज चिंतन में चिन्ता थी। पिता अपनी संतान को धन, वैभव, जमीन आदि देना अपना कर्तव्य मानता है। यही वर्तमान में चल भी रहा है। हम सब यह समझ कर देते है कि संतान को सुख शांति और समृद्धि मिलेगी। यही जीवन का सबसे बड़ा भ्रम है। राम और राम के जीवन पर नजर डालने से यह भ्रम टूट जाएगा। रावण के पास धन, वैभव, जमीन, रिद्धि सब कुछ था पर जीवन में उसे शांति, सुख और समृद्धि नहीं मिली। जो था वह भी चला गया यहां तक कि परिवार का भी नाश हो गया।
राम जब जंगल के लिए घर से निकले तो उनके पास कुछ नहीं था पर धीरे धीरे उनका वैभव, शक्ति, धन बढ़ता गया। यह सब इतना बढ़ा कि रावण जैसे शक्तिशाली योद्धा पर भी उन्होंने विजय प्राप्त कर ली। यह अब कैसे हुआ। जिसका था वह भी चला गया और जिसके पास कुछ नहीं था उसका सब कुछ हो गया। यह सब शुभ-अशुभ कर्म से हुआ। राम और रावण को जीवन से समझना होगा कि पिता संतान को धन आदि के बजाए  शुभ कर्म करने की प्रेरणा दे उन्हें संतों के पास तीर्थों पर ले जाए समय-समय पर धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन करे तभी वह अपनी संतान को शुभकर्म दे सकता है।  

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