जल्द जगमगाएगा चित्तौड़ का दुर्ग

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सौंदर्यीकरण और फसाड लाइटिंग पर खर्च होंगे 8 करोड
एएसआई से स्वीकृति मिलते ही शुरू होगा काम

चित्तौड़गढ़, 7 नवम्बर। राजस्थान का गौरव, दुर्गों का सिरमौर और राजस्थान के सबसे बड़े लिविंग फोर्ट में जल्द ही हर रात दिवाली-सा नजारा होगा। चित्तौड़गढ़ दुर्ग के सौंदर्यीकरण पर लगभग 8 करोड़ रूपये खर्च किए जाएंगे। इस काम के लिए जिला कलक्टर अरविंद कुमार पोसवाल, राज्य धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह जाड़ावत, सांसद सी.पी. जोशी और नगर परिषद सभापति संदीप शर्मा ने नियमित रूप से बैठक कर राज्य और केन्द्र सरकार के स्तर पर आवश्यक स्वीकृति, बजट सहित अन्य अहम बिंदुओं पर चर्चा कर रोडमैप तैयार किया। जिला कलक्टर अरविंद कुमार पोसवाल और सांसद सीपी जोशी ने हाल ही भारत सरकार के संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के चित्तौड़गढ़ प्रवास के दौरान उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलकर भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग से फसाड लाइटिंग के लिए जल्द एनओसी दिलवाने का आग्रह किया। इसके तहत ऐतिहासिक किले की प्राचीर और किले में स्थित विजय स्तम्भ, नवलखा भण्डार, मीरा मंदिर, कालिका मंदिर, गौमुख, कीर्ति स्तम्भ, रतन सिंह पैलेस सहित अन्य महत्वपूर्ण स्मारकों पर अत्याधुनिक फसाड लाइटिंग की जाएगी। यूनेस्को द्वारा संरक्षित स्मारक और पुरातत्व महत्व को देखते हुए इसके लिए भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग की एनओसी मिलती है फसाड लाइटिंग का काम शुरू हो जाएगा।

नाइट टूरिज्म को मिलेगा बढ़ावा- जिला कलक्टर अरविंद कुमार पोसवाल
जिला कलक्टर अरविंद कुमार पोसवाल ने बताया कि चित्तौड़गढ़ दुर्ग पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखता है। यह राजस्थान का गौरव है और इस पर हम सभी को गर्व है। लंबे समय से दुर्ग पर लाइटिंग की मांग की जा रही थी। यूआईटी की ओर से बजट पास कर वर्कऑर्डर जारी कर दिया गया है। जल्द ही चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर हर रात दिवाली-सा नजारा होगा। इससे नाइट टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलेगा। चित्तौड़ दुर्ग में आने वाला हर व्यक्ति चित्तौड़गढ़ के गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा लेता है। यहां के कण-कण में त्याग, बलिदान और शौर्य की गाथाएं हैं। चित्तौड़गढ़ के इस गौरवशाली इतिहास के साक्षी चित्तौड़ दुर्ग के सौंदर्यीकरण के लिए जिला प्रशासन कटिबद्ध है। किले की प्राचीन दीवार और स्मारकों की मौलिकता बरकरार रहे, इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा।

हर दिन बदलेगा कलर कॉम्बीनेशन, खास मौकों पर थीम बेस्ड डेकोरशन
फसाड लाइटिंग के तहत दुर्ग पर हर दिन एक नई थीम के अनुसार लाइटिंग की जाएगी। इसमें कंप्यूटर से लाइटिंग का पैटर्न, कलर कॉम्बीनेशन और थीम ऑटोमैटिक बदलेगी। वहीं, होली-दिवाली, 15 अगस्त, 26 जनवरी सहित अन्य महत्वपूर्ण दिवस पर उस दिन की थीम के अनुरूप लाइटिंग होगी। प्रोजेक्शन मैपिंग की अत्याधुनिक तकनीक से किले की दीवारों पर हर दिन नया कलर कॉम्बीनेशन नजर आएगा। जिस कंपनी को यह काम दिया गया है, उसके साथ जिला कलक्टर की अध्यक्षता में तीन से ज्यादा बैठक हो चुकी है। जिला कलक्टर ने कंपनी को काम शुरू करने से पहले विजय स्तंभ पर प्रेक्टिकल डेमो दिखाने के निर्देश दिए हैं। आधुनिक इंटीरियर डिजाइनिंग में फसाड लाइटिंग का चलन है। इसमें किसी भी बिल्डिंग के बाहरी हिस्से के सबसे महत्वपूर्ण एरिया को हाईलाइट किया जाता है। इससे बिल्डिंग को आर्टिस्टिक फील मिलता है और सूर्यास्त के पश्चात इमारत की रंगत और भी निखर जाती है।

एएसआई की एनओसी का इंतजार
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट घोषणा में चित्तौड़गढ़ शहर को स्मार्ट सिटी योजना में शामिल किया है। इस योजना के तहत चित्तौड़गढ़ दुर्ग के विकास और पर्यटकों की दृष्टि से सौंदर्याीकरण के लिए राज्य सरकार ने आठ करोड़ का बजट रखा है। चित्तौड़ दुर्ग के सौंदर्यीकरण और पर्यटकों की सुविधा के लिए दुर्ग की प्राचीन दीवार और अन्य महत्वपूर्ण स्मारकों पर फसाड लाइटिंग के प्रस्ताव को प्रशासनिक और वित्ताय स्वीकृति मिल चुकी है और निविदा भी आमंत्रित की जा चुकी है। यूआईटी, चित्तौड़गढ़ द्वारा लगभग 8 करोड़ की लागत से यह काम करवाया जाएगा। एएसआई की एनओसी मिलते ही काम शुरू हो जाएगा।

यूआईटी को सौंपा जिम्मा
चित्तौड़ दुर्ग पर फसाड लाइटिंग का कार्य नगर विकास न्यास, चित्तौड़गढ़ की ओर से करवाया जाएगा। फसाड लाइटिंग का रख-रखाव और बिजली बिल का वहन भी यूआईटी के द्वारा किया जाएगा। रोज रात तीन- चार घंटे के लिए किले की दीवारों और महत्वपूर्ण स्मारकों को फसाड लाइटिंग से हाइलाइट किया जाएगा।

नहीं होगी सिर्फ चार दिन की चांदनी
गौरतलब है कि अभी तक हर साल दीपावली के अवसर पर ही नगर परिषद की ओर से चार दिन के लिए के लिए किले की दीवारों और अन्य स्मारकों पर फ्लड लाइट लगाई जाती है। यह कार्य पूरा होने के बाद वर्ष भर रात को चित्तौड़ किला दीपावली की तरह जगमगाएगा। फसाड लाइटिंग से किले की भव्यता और खूबसूरती बढ़ेगी और यह देश-विदेश के पर्यटकों के लिए भी आकर्षक का केंद्र बनेगी।

वर्षों पुराना सपना होगा साकार, रोशन होगा नाइट टूरिज्म
विश्व विरासत दुर्ग चित्तौड़गढ़ पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए वर्ष 1990 में राज्य पर्यटन विभाग एवं केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के संयुक्त प्रयासों से राशि रूपये 20 लाख से चित्तौड़गढ़ दुर्ग के महत्वपूर्ण स्मारकों पर फ्लड लाइटिंग प्रोजेक्ट स्वीकृत किया गया था। वर्ष 1992-93 में विजय स्तंभ, कालिका माता मंदिर, मीरा मंदिर एवं हनुमान पोल पर फ्लड लाइटिंग कार्य कार्यकारी एजेंसी आरटीडीसी द्वारा करवाया गया था। उक्त फ्लड लाइटिंग कार्य के बाद चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर पर्यटकों की संख्या में वृद्धि देखी गई थी। उसके पश्चात द्वितीय चरण में पुनः वर्ष 1993-94 में दुर्ग के शेष स्मारकों पर फ्लड लाइटिंग कार्य का प्रोजेक्ट केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा स्वीकृत किया गया। इस चरण में शिव मंदिर, गणेश पोल एवं फतेह प्रकाश महल पर फ्लड लाइटिंग कार्य किया गया। वर्ष 1998-99 में तृतीय चरण में दुर्ग कोट दीवार पर भी फ्लड लाइटिंग कार्य करवाया गया। समय के साथ फ्लड लाइट टूटने, चोरी हो जाने के कारण पुनः वर्ष 2007-08 में पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा राशि रूपये 55 लाख का प्रोजेक्ट स्वीकृत किया गया। इससे दुर्ग के महत्वपूर्ण स्मारकों एवं कोट दीवार पर फ्लड लाइट लगवाई गई, लेकिन कुछ ही वर्षों में बंदरों द्वारा तोड़ दी गई, चोरी हो गई। गत 10 वर्षों से दुर्ग पर लाइटिंग नही होने से पर्यटकों के लिए रात्रि में कोई आकर्षण उपलब्ध नही है।

चित्तौड़गढ़ का इतिहास- एक नजर में
राजपुताने का गौरव, शौर्य और बलिदान की स्थली – चित्तौड़गढ़ मेवाड़ की राजधानी रहा। सातवीं से सोलहवीं सदी के मध्य तक राजपूत सत्ता का मुख्य केंद्र रहा। जनश्रुति के अनुसार इस किले का निर्माण मौरी वंश के राजा चित्रांगद ने सातवीं सदी में करवाया था। महाराणा कुम्भा (1433-1468 ई.) ने अपने समय में किले में स्थित अधिकांश मंदिरों तथा भवनों का जीर्णाेद्धार करवाया। शौर्य गाथाओं में आज भी यहाँ की कहानियां सुनने को मिलती हैं। चित्तौड़गढ़ का क़िला, 180 मीटर ऊँची पहाड़ी पर बना और 700 एकड़ में फैला सर्वाेत्तम तथा सबसे बड़ा क़िला है। इस क़िले को तीन बार शक्तिशाली दुश्मनों का हमला सहना पड़ा। आज भी चित्तौड़ की शौर्य गाथाएं सुनकर दंग रह जाते हैं। सन् 1303 में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खि़लजी ने, उसके बाद 1533 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने इस किले पर हमला कर, तबाही मचाई। फिर चार दशक बाद 1568 में मुग़ल सम्राट अकबर ने हमला कर अधिकार कर लिया। सन् 1616 ई. में मुगल सम्राट जहाँगीर के शासनकाल में यह क़िला राजपूतों को वापस सौंप दिया गया।

स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना
किले में स्थित भामाशाह महल, कुम्भा महल, पद्मिनी महल, रतन सिंह महल, कीर्ति स्तम्भ, तोपखाना बिल्डिंग, कुम्भा स्वामिन (कुम्भाश्याम) मंदिर, मीरा मंदिर, कालिका माता मंदिर, समाधीश्वर मंदिर, क्षेमांकरी मंदिर, ईटों के मंदिर, जैन शांतिनाथ मंदिर, सत्त-बीस देवरी मंदिर के अलावा गोमुख कुंड, कुकडेश्वर कुंड, सुखाड़िया तालाब और भीमलत तालाब स्थापत्य कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं।

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