व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण

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मदनगंज-किशनगढ़.
पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन शास्त्र सभा को संबोधित करते हुए पंचायत अध्यक्ष विनोद पाटनी ने कहा कि ने कहा कि मन-वचन-काय से पांचों इन्द्रियों के विषयों का त्याग कर देना ब्रह्मचर्य है। ब्रह्म आत्मा में रमण करने का नाम ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्र्य की उत्कृष्ट साधना का सुअवसर मात्र मनुष्य के पास है क्योंकि उसके पास बुद्धि है विवेक है सोचने की क्षमता है। वह जानता है कि वासना दुरूख का कारण है।
ब्रह्मचर्य व्रत की चर्चा करना जितना सरल है उसको धारण करना उतना ही कठिन है। निश्चय से आत्मा में रमण करना ही ब्रह्मचर्र्य धर्म है। व्यवहार में स्त्री मात्र से मैथुन का त्याग करना ब्रह्मचर्र्य धर्म है। पाटनी ने कहा कि कलिकाल में आज व्यक्ति का मन इतना चलायमान हो गया है कि दृष्टि पढते ही अंदर की वासनाएं जागृत हो जाती है। इसका कारण क्या है मुख्य कारण है प्राचीन धर्म संस्कारों, नैतिक संस्कारों, मर्यादा आदि का अभाव तथा पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव। प्रायरू लोग टीवीए मोबाइल में फैशन के अश्लील कपड़े को देखकर वैसे ही अश्लील कपड़ों को पहनकर अपने को श्रेष्ठ मानते है। पाटनी ने कहा कि आज दस धर्मों को यदि कोई कलशारोहण है तो वह उत्तम ब्रह्मचर्र्य धर्म से ही है। शीलव्रत अंक है और सारे व्रत शून्य है। जिस प्रकार से अंक नहीं होगा तो शून्य का कोई महत्व नहीं होगा। उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बताया है यदि कोई साधक मंत्र को साधना चाहता है तो कहा कि यदि साधक ब्रह्मचर्य को रखकर साधना करें तो मंत्र सिद्ध होगा नहीं तो नहीं होगा। जिनागम में कहे है कि व्यक्ति उपवास करे तो ब्रह्मचर्य धारण करें। सम्पूर्ण पर पदार्थों से ममत्व भाव का त्यागकर देना और अपनी आत्मा के शुद्ध स्वरूप में रमण करता है। वह ब्रह्मचर्र्य कहा गया है। हमारे यहां 18000 शीलव्रत कहे गय है। मुनिराज इन व्रतों को धारण करने वाले होते हैं।

वसुपूज्य भगवान की पूजन की

श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगंबर जैन पंचायत के तत्वाधान में आयोजित रूपनगढ़ रोड स्थित श्री मुनिसुव्रतनाथ मंदिर में पयुर्षण पर्व के दसवें एवं अंतिम दिन उत्तम ब्रह्मचर्र्य धर्म दिवस के दिन पर प्रात: श्रीजी के अभिषेक शांतिधारा व पूजन की गई। मंत्री सुभाष बडज़ात्या ने बताया कि सौधर्म इंद्र बनकर श्री जी के अभिषेक शांतिधारा करने का सौभाग्य विमल कुमार महेंद्र कुमार समर्थ पाटनी परिवार उरसेवा वाले को प्राप्त हुआ। श्रावक-श्रविकाओं द्वारा पंच परमेष्ठी पूजन, वीस तीर्थंकर पूजन पंच मेरु पूजन नवदेवता पूजन नंदीश्वर दीप पूजन सोलह कारण पूजन दसलक्षण पूजन उत्तम ब्रह्मचर्य पूजन भगवान वासुपूज्य पूजन कर प्रभु गुणगान किया। वासुपूज्य भगवान के मोक्ष कल्याणक पर्व पर आज 12वे तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य की विशेष पूजन करते हुए निर्वाण मोदक समर्पित किया। अनंत चतुर्दशी महापर्व होने के कारण अधिकांश समाजनों ने अपनी शक्ति अनुसार उपवास एवं व्रत किए एवं अपने प्रतिष्ठान बंद रखें। सायंकालीन मूलनायक मुनिसुव्रतनाथ भगवान महावीर भगवान पार्श्वनाथ आचार्य वर्धमान सागर महाराज पद्मावती माता एवं क्षेत्रपाल बाबा की वीर संगीत मंडल की मधुर लहरियों पर नाचते गाते भक्ति भाव से संगीतमय आरती की गई। आरती के पश्चात पंचायत अध्यक्ष द्वारा शास्त्र वाचन करते करते हुए ब्रह्मचर्य धर्म के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी।

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