सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग कर देना ही आकिंचन धर्म

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मदनगंज किशनगढ़.
पर्यूषण पर्व के नौवें दिन उत्तम आकिंचन दिवस पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए पंचायत अध्यक्ष विनोद पाटनी ने कहा कि आज का दिन खाली रिक्त व हल्का होने का दिन है। सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग कर देना ही आकिंचन धर्म है। अभी तक हम क्रोध मान माया लोभ से भरे थे अब अपनी आत्मा में रम जाने का नाम आकिंचन धर्म है। जब तक संसार की किसी भी वस्तु से हमारा संबंध है जब तक बंधन है राग का परिणाम है। जब तक हम पर से संबंध बनाते है तब भी हमारे अंदर भिखारीपना आ जाता है। पदार्थ प्राप्ति की आकांक्षा जागृत हो जाती है। मान माया आदि समस्त परिग्रह से मुक्त रहना और आवश्यकता से अधिक धन पदार्थों का संचय न करना उत्तम आकिंचन धर्म है। आकिंचन्य का अर्थ है. न मेरा था न मेरा है और न मेरा होगा। आत्म स्वभाव ही मेरा है अन्य नहीं। वास्तविकता को वास्तविकता एवं सत्य को सत्य जान लेना ही आकिंचन्य है। चेतन एवं अचेतन दोनों प्रकार के अतरंग एवं बहिरंग परिग्रह का त्याग कर देना ही उत्तम आकिंचन्य धर्म है।

उत्तमआकिंचन्य धर्म की पूजन

श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगंबर जैन पंचायत के तत्वाधान में आयोजित रूपनगढ़ रोड स्थित श्री मुनिसुव्रतनाथ मंदिर में पयुर्षण पर्व के नौवे दिन उत्तम आकिंचन्य धर्म दिवस के दिन पर प्रात: श्रीजी के पंचामृत अभिषेक शांतिधारा व पूजन की गई। उपमंत्री दिनेश पाटनी ने बताया कि सौधर्म इंद्र बनकर श्री जी के पंचामृत अभिषेक शांतिधारा एवं सायंकालीन महाआरती करने का सौभाग्य पवन कुमार नेमीचंद राजकुमार दोषी परिवार पालडी वाले को प्राप्त हुआ। श्रावक भक्तों द्वारा पंच परमेष्ठी पूजन वीस तीर्थंकर पूजन पंच मेरु पूजन नवदेवता पूजन नंदीश्वर दीप पूजन सोलह कारण पूजन दसलक्षण पूजन उत्तम आकिंचन्य पूजन कर प्रभु गुणगान किया। भक्तों द्वारा दसलक्षण पर्व के दौरान निरंतर सामायिक प्रतिक्रमण कर यथाशक्ति अनुसार व्रत एवं उपवास किए जा रहे हैं।
कार्यकारिणी सदस्य विमल बाकलीवाल ने बताया कि सायंकालीन मूलनायक मुनिसुव्रतनाथ भगवान महावीर भगवान पाŸवनाथ भगवान आचार्य वर्धमान सागर महाराज पद्मावती माता एवं क्षेत्रपाल बाबा की वीर संगीत मंडल की मधुर लहरियों पर नाचते गाते भक्ति भाव से संगीतमय आरती की गई। आरती के पश्चात पंचायत अध्यक्ष द्वारा शास्त्र वाचन करते हुए आकिंचन्य धर्म के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी।

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