Parliament में 3 विधेयक पेश, नए कानून में नाबालिग से गैंगरेप पर सजा-ए-मौत का प्रावधान

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दुष्कर्म के मामलों में न्यूनतम सजा 7 से बढ़ाकर 10 साल
पुरुषों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए अब कोई कानून नहीं

नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में शुक्रवार को पुराने कानूनों में सुधार के लिए तीन विधेयक पेश किए। इसमें अब नाबालिग से गैंगरेप पर अब मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित विधेयक देश की आपराधिक न्याय प्रणाली को बदल देंगे और भारतीय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की भावना लाएंगे। अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि मैं आज जो तीन विधेयक पेश कर रहा हूं, उनमें आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए सिद्धांत कानून शामिल हैं। गृहमंत्री ने भारतीय न्याय संहिता विधेयक, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक और भारतीय साक्ष्य विधेयक पेश किए। ये तीनों विधेयक भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)-1860, आपराधिक प्रक्रिया अधिनियम-1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम-1872 की जगह लेंगे। उन्होंने कहा कि हम इन कानूनों को खत्म कर देंगे, जो अंग्रेजों द्वारा लाए गए थे।

भारतीय दंड संहिता किए ये 13 बदलाव

  1. नए विधेयक में रेप के मामलों में सजा बढ़ाई गई है। इसमें न्यूनतम सजा जो पहले 7 साल थी, अब 10 साल कर दी गई है।
  2. नाबालिग के साथ बलात्कार के मामले में नया कानून बनाया गया है। लिहाजा नाबालिग के साथ रेप की सजा को बढ़ाकर 20 साल कर दिया गया। यह आजीवन कारावास की सजा है। रेप के कानून में एक नया प्रावधान शामिल किया गया है, जो परिभाषित करता है कि विरोध न करने का मतलब सहमति नहीं है। इसके अलावा गलत पहचान बताकर यौन संबंध बनाने वाले को अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
  3. नए कानून के तहत नाबालिग से गैंगरप पर मौत की सजा का प्रावधान किया गया है।
  4. रेप विक्टिम्स की पहचान को बचाने के लिए नया कानून बनाया गया है।
  5. अप्राकृतिक यौन अपराध धारा 377 अब पूरी तरह से समाप्त कर दी गई है। लिहाजा पुरुषों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए अब कोई कानून नहीं है। नए कानून के तहत अब पुरुषों के खिलाफ अप्राकृतिक यौन अपराधों के लिए सजा का कोई प्रावधान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 के तहत फैसले में कहा था कि “सहमति देने वाले वयस्कों” पर “अप्राकृतिक कृत्यों” के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
  6. बच्चों के विरुद्ध अपराधों के लिए नया चैप्टर शामिल किया गया है। इसमें परित्याग, बच्चे के शरीर का निपटान और बाल तस्करी आदि शामिल हैं।
  7. लापरवाही से मौत की सजा 2 साल से बढ़ाकर 7 साल कर दी गई है।
  8. संगठित अपराध के विरुद्ध नए कानून का प्रावधान किया गया है। इसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो मृत्युदंड की सजा होगी।
  9. आतंकवाद के खिलाफ नए कानून यानी मौत की सजा का प्रावधान किया गया है।
  10. राजद्रोह के कानून को “भारत की एकता, संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य” के रूप में परिभाषित किया गया है। इसके लिए न्यूनतम सजा को 3 साल से बढ़ाकर 7 साल कर दिया गया है। बता दें कि अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों, अलगाववादी गतिविधियों या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों के खिलाफ नया कानून पेश किया गया है, इसने राजद्रोह पर कानून का स्थान ले लिया है।
  11. नए कानून के तहत भारत में सजा के नए रूप में सामुदायिक सेवा की शुरुआत की गई है।
  12. आईपीसी में बदलाव के तहत महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर नया चैप्टर शामिल किया गया है।
  13. मैरिटल रेप एक ऐसा अपवाद है जो कि अभी तक अछूता है। भारत में वैवाहिक बलात्कार अभी भी अपराध नहीं है।

पहली बार सामुदायिक सेवा करने का प्रावधान

गृह मंत्री ने कहा कि भारतीय न्याय संहित विधेयक में ऐसे प्रावधान हैं, जो राजद्रोह को निरस्त करने और मॉब लिंचिंग और नाबालिगों से बलात्कार जैसे अपराधों के लिए अधिकतम मृत्युदंड देने का प्रावधान करते हैं। विधेयक में छोटे अपराधों के लिए दंड के रूप में पहली बार सामुदायिक सेवा प्रदान करने का भी प्रावधान है। इसके साथ ही चुनाव संबंधी अपराधों पर भी कानून लाया गया है, इसमें चुनाव में मतदाताओं को रिश्वत देने पर एक साल की कैद का प्रावधान है।

‘विधेयक आपराधिक न्याय प्रणाली को बदल देंगे’

अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि मैं सदन को आश्वस्त कर सकता हूं कि ये विधेयक हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली को बदल देंगे। हमारा उद्देश्य दंड देना नहीं, बल्कि न्याय प्रदान करना होगा. अपराध रोकने की भावना पैदा करने के लिए दंड दिया जाएगा. अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून गुलामी के संकेतों से भरे हुए थे, जिनका उद्देश्य उनके शासन का विरोध करने वालों को दंडित करना था. गृह मंत्री ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से तीनों विधेयकों को गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति को जांच के लिए भेजने का भी आग्रह किया.

क्या है धारा 377

भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत “जो कोई भी स्वेच्छा से किसी भी पुरुष, महिला या जानवर के साथ अप्राकृतिक शारीरिक संबंध बनाता है, तो उसे आजीवन कारावास या 10 साल के कारावास या जुर्माना की सजा हो सकती है, सजा की इस अवधि को बढ़ाया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था

वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने आईपीसी की धारा 377 को हटा दिया था, कोर्ट ने फैसला सुनाया गया था कि “सहमति वाले वयस्कों” के बीच यौन संबंध आपराधिक अपराध नहीं होगा। पांच न्यायाधीशों की बेंच ने 6 सितंबर 2018 को फैसला सुनाया था कि सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध मानने वाली धारा 377 तर्कहीन, अक्षम्य और स्पष्ट रूप से मनमानी है। इसे समानता के अधिकार का उल्लंघन होने के कारण इसे आंशिक रूप से रद्द कर दिया गया था, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जानवरों और बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध से संबंधित धारा 377 के पहलू लागू रहेंगे।

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