गोद लेने के लिए नहीं मिल रहे बच्चे
नई दिल्ली। भारत में एक ओर जहां जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है तो दूसरी ओर 28 हजार से ज्यादा ऐसे लोग हैं, जो बच्चा गोद लेने के लिए काफी समय से इंतजार कर रहे हैं। इनमें से भी 16 हजार तो ऐसे दंपती हैं, जो तीन साल से अधिक समय से बच्चा गोद लेने का इंतजार कर रहे हैं। अधिकारियों ने इसके लिए उन बच्चों की कम उपलब्धता को जिम्मेदार ठहराया है, जिन्हें कानूनी रूप से आसानी से गोद लिया जा सकता है।
तीन साल से उम्मीद के सहारे
केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) के अधिकारियों की ओर से दिए गए आंकड़ों के अनुसार देशभर में ऐसे 28,501 संभावित माता-पिता हैं, जिनकी गृह अध्ययन रिपोर्ट को मंजूरी दे दी गई है और वे बच्चे को गोद लेने की कतार में हैं। आंकड़ों के अनुसार, इनमें से 16,155 संभावित माता-पिता की गृह अध्ययन रिपोर्ट तीन साल पहले स्वीकृत की जा चुकी है और वे अब तक बच्चे को गोद लेने का इंतजार कर रहे हैं।
दत्तक ग्रहण केंद्रों में हैं 7 हजार बच्चे
आंकड़ों पर गौर करें तो 28 जून तक भारत में 3,596 बच्चे कानूनी रूप से गोद लेने के लिए उपलब्ध थे, जिनमें विशेष जरूरतों वाले 1,380 बच्चे भी शामिल हैं। इस संबंध में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, गोद लेने की औसत प्रतीक्षा अवधि दो से ढाई वर्ष है और फिर ऐसे बच्चों की संख्या बेहद कम है, जो कानूनी रूप से आसानी से गोद लेने के लिए उपलब्ध हैं। इससे भावी माता-पिता के लिए गोद लेने की खातिर बच्चों को ढूंढ़ना और मुश्किल हो जाता है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसियों में 2,971 बच्चे रहते हैं, जो गोद लेने योग्य नहीं की श्रेणी में आते हैं, जबकि विशेष दत्तक-ग्रहण केंद्रों में लगभग 7,000 बच्चे मौजूद हैं।
किन बच्चों को नहीं ले सकते गोद
वहीं, एक अन्य अधिकारी ने समझाया कि ‘गोद लेने योग्य नहीं’ श्रेणी में वे बच्चे आते हैं, जिनके जैविक अभिभावकों ने उन्हें गोद देने की स्वीकृति नहीं दी है। उन्होंने बताया कि ऐसे बच्चों को बाल आश्रय गृहों में इसलिए रखा जाता है, क्योंकि उनके माता-पिता उनकी परवरिश का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं। अधिकारी के अनुसार, अगर बच्चे की उम्र पांच साल से अधिक है तो गोद देने से पहले उसकी मंजूरी लेना भी जरूरी है।
संसद के पिछले सत्र में एक संसदीय समिति ने भारत में गोद देने की प्रक्रिया को सरल बनाने और इसे नियंत्रित करने वाले विभिन्न नियामकों पर दोबारा गौर फरमाने का सुझाव दिया था।
यही नहीं, केंद्र सरकार ने पिछले साल किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन किया था, जिसके तहत देश में गोद लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए जिलाधिकारियों को अधिक शक्तियां और जिम्मेदारियां दी गई थीं। पहले, गोद देने की प्रक्रिया अदालतों के दायरे में आती थी।
यह है गोद लेने की प्रक्रिया
भारत में बच्चे को गोद लेने के लिए संभावित माता-पिता को सीएआरए की वेबसाइट पर प्रासंगिक दस्तावेजों के साथ गोद लेने से संबंधित अपना आवेदन अपलोड करना होता है, जिसके बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा गृह अध्ययन किया जाता है। गृह अध्ययन को मंजूरी मिलने के बाद विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसियों द्वारा गोद लेने के लिए कानूनी रूप से उपलब्ध बच्चों का प्रोफाइल संभावित माता-पिता के साथ साझा किया जाता है। संभावित माता-पिता मनचाहे बच्चे का चयन करते हैं, जिसके बाद जिलाधिकारी पूरी प्रक्रिया को देखते हैं।