उपचार और आस्था दोनों जरूरी

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चाहिए कर्म और धर्म का समन्वय
एडवोकेट भंडारी ने बताए अपने अनुभव


जयपुर.
जयपुर के एडवाकेट पूनमचंद भंडारी वकालात के साथ सामाजिक क्षेत्र में भी काफी सक्रिय है। कोरोना बीमारी से संघर्ष के दौरान हुए अनुभव उन्होंनेे बताए है। एडवोकेट भंडारी का कहना है कि उपचार के साथ आस्था मनोबल बढ़ा देती है। कर्म के साथ धर्म का समन्वय हमारे जीवन में संतुलन लाता है साथ ही जल्द स्वस्थ्य होने में सहायक होता है। साथ ही अपने धर्म का दृढ़ता के साथ पालन करना चाहिए।
एडवोकेट भंडारी के ही शब्दों में कि दिनांक 18 मई को मुझे कोरोना से लड़ते हुए 22 दिन हो गए थे लेकिन खांसी बहुत ज्यादा थी कम नहीं हो रही थी कमजोरी बहुत आ गयी थी। सुबह छोटा भाई और बहु खाना लाते और मुझे खांसते देख बहुत परेशान होते। भाई गजराज भी बहुत नाराज हो रहा था कह रहा था खांसी की दवाई बदलो मैं डाक्टर से लिखवा कर लाया हूं। मैने कहा मैं होम्योपैथी और यूनानी दवाई ले रहा हूं वो बोला आप किसी की सुनते नहीं हो। बेटा एडवोकेट अभिनव भंडारी भी बहुत नाराज था।
तब मैं परेशान होकर हमारे धर्म स्थल ’जैन स्थानक’ हरी मार्ग मालवीय नगर पर गाड़ी लेकर 10.25 पर पहुंच गया। बारिश बहुत तेज आ रही थी। मैंने वस्त्र बदले और 10.30 बजे एक सामायिक ले ली और स्वाध्याय करने लगा समय का पता ही नहीं लगा। 50 मिनट बाद एक सामायिक और ले ली। दूसरी सामायिक पूरी हुई तो धर्मपत्नी नम्रता भंडारी भी आकर मेरे सामने कुर्सी लगाकर बैठ गई। मैं लगातार भगवान् की प्रार्थनाएं और भजन गाता रहा और सामायिक लेता रहा। चार सामायिक होने पर मैंने सामायिक पाल ली और पत्नी से कहा हम चार बजे यहां से घर चलेंगे और मन में ये धारणा कर ली कि आज रात को यहीं वापस आकर संवर करूंगा और बक्से में से शयन बिस्तर दरी चादर का पलेवणा किया और हम दोनों घर आ गए। लेकिन एक चमत्कार हुआ कि इन साढ़े पांच घंटों में मुझे एक बार भी खांसी नहीं आई और ना ही कमजोरी महसूस हुई।
घर आकर पेट भर कर खाना खाया बारिश लगातार आ रही थी मन बार बार स्थानक जाने का कर रहा था। आखिर 8.30 पोशाक बदल कर गाड़ी लेकर स्थानक पहुंचा बारिश लगातार हो रही थी मैंने स्थानक में प्रवेश किया और विधिनुसार संवर का पचकाण किया और लेट गया हालांकि रात भर नींद नहीं आईं लेकिन खांसी बिलकुल नहीं आई। सुबह 7.00 बजे मैं स्थानक से निकला और दूध लेकर घर पहुंचा और पत्नी से कहा कॉफी बनाओ। कॉफी पी बादाम खाए और छोटे भाई गजराज से फोन पर बात की और सारा वाकया बताया और कहा अब खांसी बिलकुल नहीं है और 10 मिनिट की वार्ता में कोई खांसी भी नहीं आईं।
अब मै खाना वगैरह खाकर वापिस 10.30 बजे स्थानक जाऊंगा और 4.00 बजे तक वहीं रहूंगा और रात को स्थानक में संवर करुंगा। यह अनुभव मैं इसलिए साझा कर रहा हूं कि हर व्यक्ति अपने धर्म पर पूर्ण विश्वास करे और कर्म जरूर करे सिर्फ भगवान भरोसे नहीं रहे यदि ये करोंगे तो मौत आपके पास आने से डरेगी। अपने कमजोर रिश्तेदारों व मित्रों की आर्थिक मदद इस तरह से करें जैसे आपने उनसे कर्ज लिया है और आप वह चुका रहे हैं आपको असीम आनन्द मिलेगा।

आस्था के साथ कीजिए अपना पुरूषार्थ

मैंने 19 मई को मेरा अनुभव साझा किया था कि किस तरह मैं कोरोना और खांसी से पीडि़त था लेकिन अपने धर्म स्थान पर सच्चे मन से जाने से चमत्कार हुआ और मुझे पूरी राहत मिली तब से मैं रोज स्थानक पर जाता हूं और 11 बजे से 4 बजे तक एक स्थान पर बैठकर 5 सामायिक करता हूं। प्रार्थना भजन व स्वाध्याय करता हूं और फिर वापिस रात्रि को 9 बजे स्थानक पर आता हूं। हमारे धर्म के नियमानुसार रात को संवर करता हूं दरी पर सोता हूं फिर सुबह प्रतिक्रमण करके 7 बजे घर आता हूं मैं जब बिल्कुल स्वस्थ था तब भी इतनी धार्मिक क्रिया नहीं कर पाता था ये इसलिए संभव हुआ कि अपने धर्म पर पूरी आस्था रखी। धर्म और विज्ञान दोनों पर विश्वास और अच्छे कर्म ये आपको कभी तकलीफ नहीं आने देंगे अगर आप बीमार है तो ईलाज भी करवाइए और अपने धर्म पर भी अटूट विश्वास रखें। अपना कर्म पूरा कीजिए, अपना पुरूषार्थ जरूर कीजिए और फिर अपने धर्म पर पूरी आस्था रखिए आपको जीवन में कोई तकलीफ नहीं आएगी।

सीखिए मानवता

कोरोना आपको इंसानियत सिखाने आया है आप इस संकट की घड़ी में आप अपने रिश्तेदारों व मित्रों की मदद करें। कई परिवार कोरोना से खत्म हो गए उनकी धन संपत्ति का कोई वारिस नहीं है पता नहीं कौन उसका उपयोग या दुरूपयोग करेगा इसलिए ये दृश्य देखकर आप समझ जाइए और अपनी दौलत का सदुपयोग करें। जब आप निस्वार्थ भाव से मदद करेंगे कि आप उस परिवार का कर्ज चुका रहे हैं तो उस परिवार के लिए आप भगवान होंगे और वो परिवार आपको इतनी दुआएं देगा जिसका कोई मोल नहीं। ये सारे विचार मुझे रात को आते हैं जब मैं स्थानक में संवर करता हूं इसलिए मुझे लगता है कि भगवान का यह संदेश आपसे साझा करूं।

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