अब तीन घंटे में हो सकेगी कोरोना जांच

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करने होंगे नमक के पानी के गरारे
नागपुर स्थित वैज्ञानिक संस्थान ने खोजा तरीका


जयपुर.
कोरोना की जांच अब जल्द ही तीन घंटे में हो सकेगी। इसके लिए नमक के पानी के गरारे करने होंगे और इसके नमूने की जांच होगी। इसकी लागत भी कम होगी। नागपुर स्थित वैज्ञानिक संस्थान ने यह खोज की है।
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के तहत नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने नमक के पानी से गरारे सलाइन गार्गल आरटीपीसीआर विधि ढूंढ ली गयी है। इस विधि से कई प्रकार के लाभ एक साथ मिलते हैं। यह विधि सरल, तेज, लागत प्रभावी, रोगी के अनुकूल और आरामदायक है और इससे परिणाम भी जल्दी मिलते हैं। न्यूनतम बुनियादी ढांचा आवश्यकताओं को देखते हुए यह विधि ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। पत्र सूचना कार्यालय से बातचीत में राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसन्धान संस्थान (एनईईआरआई) में पर्यावरण विषाणु विज्ञान प्रकोष्ठ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कृष्णा खैरनार ने कहा कि यह आरामदायक और रोगी के अनुकूल है। नमूना तुरंत ले लिया जाता है और तीन घंटे में ही परिणाम मिल जाएगा।

स्वयं एकत्र कर सकते है अपना नमूना

डॉ. खैरनार के अनुसार यह विधि गैर आक्रामक और इतनी सरल है कि रोगी स्वयं नमूना एकत्र कर सकता है। नमक के पानी से गरारे (सेलाइन गार्गल की आरटी.पीसीआर विधि) में नमक के पानी सेलाइन वाटर से भरी एक साधारण संग्रह ट्यूब का उपयोग किया जाता है। रोगी इस घोल से गरारे करता है और उसे ट्यूब के अंदर डाल देता है। संग्रह ट्यूब में यह नमूना प्रयोगशाला में ले जाया जाता है जहां इसे कमरे के तापमान पर एनईईआरआई द्वारा तैयार एक विशेष बफर घोल (सोल्युशन) में रखा जाता है। इस घोल को गर्म करने पर एक आरएन टेम्प्लेट तैयार किया जाता है जिसे आगे रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज चेन रिएक्शन आरटी.पीसीआर के लिए संसाधित किया जाता है। नमूना एकत्र करने और उसे संसाधित करने की यह विशेष विधि हमें आरएनए निष्कर्षण की दूसरी अन्य महंगी ढांचागत आवश्यकता के स्थान पर इसका प्रयोग करने के लिए सक्षम बनाती है। लोग इससे स्वयं का परीक्षण भी कर सकते हैं क्योंकि इस विधि अपना नमूना खुद ही लिया जा सकता है। यह विधि पर्यावरण के अनुकूल भी है क्योंकि इसमें अपशिष्ट उत्पादन कम से कम होता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में परीक्षण के लिए वरदान

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि परीक्षण की यह अनूठी तकनीक ऐसे ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से लाभप्रद सिद्ध होगी जहां अभी तक बुनियादी ढांचे की आवश्यकताएं एक बाधा के रूप में सामने आ सकती हैं। इस गैर तकनीक को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की मंजूरी मिल गई है। साथ ही एनईईआरआई से कहा गया है कि वह देश भर में इसके प्रयोग में मदद करने के लिए अन्य परीक्षण प्रयोगशालाओं को प्रशिक्षित आवश्यक प्रशिक्षण की व्यवस्था करें।

नागपुर से होगी शुरूआत

नागपुर नगर निगम ने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी है जिसके बाद एनईईआरआई में स्वीकृत परीक्षण प्रोटोकॉल के अनुसार परीक्षण शुरू हो गया है। एनईईआरआई में पर्यावरणीय विषाण ुविज्ञान प्रकोष्ठ (एनवायरनमेंटल वायरोलॉजी सेल) के वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और लैब तकनीशियनों ने विदर्भ क्षेत्र में बढ़ते कोविड-19 संक्रमणों के बीच इस रोगी अनुकूल तकनीक को विकसित करने के लिए अनथक प्रयास किए हैं। डॉ. खैरनार और उनकी टीम को उम्मीद है कि इस पद्धति को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाएगा जिसके परिणामस्वरूप तेजी से और अधिक नागरिक अनुकूल परीक्षण होंगे। साथ ही महामारी के खिलाफ हमारी लड़ाई को और मजबूती मिलेगी।

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